पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/१६३

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बिछावन २४५६ बिजली चीज़ को ज़मीन पर कुछ दूर तक फैला देना। बिखेरना। यह फालतू सामान और काठ कवाद आदि जो जहाजों के बिखराना । जैसे, चूना बिछाना, बताशे बिछाना । (३) पदे में बहुमूल्य पदार्थों को सी, आदि से बचाने के (मार मार कर) जमीन पर गिरा या लेटा देना। लिये उनके नीचे, अथवा उनको टक्कर आदि से बचाने और संयो० कि०-डालना ।—देना । उन्हें कसा रखने के लिये उनके बीच में बिछाया जाता है। बिछावन -संज्ञा पुं० दे० "विछोना"। (लश०) बिछावना-क्रि० म. दे. "दिछाना"। क्रि० प्र०-करना।डालना।—बिछाना । बिछिना-संशा स्त्री० [हिं० बिह+स्या (प्रत्य०)। पैर की उंगलियों . बिजउग-संज्ञा पुं० दे० "बिजौरा"। में पहनने का एक प्रकार का छल्ला । बिजड़-संज्ञा स्त्री० [ic | तलवार । खड्ग । विछिन्न-वि० दे० "विक्षिप्त"। बिजन *-संशा पुं० [सं० न्य जन ] हवा करने का होटा पंग्वा जो बिछा -संशा पु० [हिं० बिच्छू 1 (1) पैर में पहनने का एक हाथ से हिलाया जाता है । बेना। गहना । (२) एक प्रकार की छोटी टेर छुरी । एक विजनी-संज्ञा स्त्री० [सं० विजन ] हिमालय की एक जंगली जाति । छोटा सा शस्त्र। (३) सन की पूली। (४) अगिया यह उप प्रदेश में बसती है जहाँ ब्रह्मपुत्र नद हिमालय को या भाबर नाम का पौधा । विशेष-दे. अगिया"। काट कर तिब्बत से भारत में आता है। चिन्छन -संज्ञा दी | हिं . बिछुड़ना ] (1) बिछड़ने या अलग बिजयखार-कमा पुं० दे० "विजयसार"! होने का भात्र। (२) वियोग । विरह । जुदाई। बिजयघंट-संक्षा पुं० [सं० विजय+2 ] बड़ा घंटा जो मंदिरों में बिछुड़ना-कि. अ. | मं० विच्छद ] (1) साथ रहनेवाले दो लटकाया रहता है। व्यक्तियों का एक दूसरे से अलग होना । जुदा होना। बिजयसार-मा पु. । सं० विजयसार एक प्रकार का बहुत बड़ा अलग होना । (२) प्रेमियों का एक दूसरे से अलग जंगली पेड़ जिसके पत्ते पीपल के पत्तों से कुछ छोटे होते होना । वियोग होना। हैं। इसमें आँवले के समान एक प्रकार के पीले फल भी संयोक्रि-जाना। लगते हैं। इसके फूल, कड़वे, पर पाचक और वादी उत्पन्न चिरंता-संज्ञा पुं० [हिं० बिना अना (साग) | (1) करनेवाले होते हैं। इसकी लकड़ी कुछ कालापन लिए बिछड़नेवाला । (२) जो बिछड़ गया हो। लाल रंग का और बहुत मजबूत होती है, और प्रायः ढोल, बिना -कि- अ. दे. "बिछुबना"। तबले आदि बनाने के काम में आती है। इसमे अनेक बिछुनि*-संक्षा या दे० " विन"। प्रकार को स्थाहियों और रंग भी बनते हैं। वैद्यक में इसे बिछुवा-संज्ञा पु० दे. “बिछुआ" । कुष्ट, विपर्प, प्रमेह, गुदा के रोग, कृमि, कफ, रक्त और बिछना*-शा पुं० [ हिं . बिना ] बिना हुआ। जो विड़ पित्त का नाशक माना है। विजयग्वार । गया हो। उ०—मिले रहम चाहिय भा दृना । कित रोय | बिजली-संजा श्री० [सं० विथन् । (१) एक प्रसिद्ध शक्ति जिसके जउ मिला बिना ।-जायसी।। कारण वस्तुओं में आकर्षण और अपकर्षण होता है और बिछोई-संज्ञा पुं० [हिं० विछोह + ई (प्रत्य॰) । (१) वह जो जिससे कभी कभी तार और प्रकाश भी उत्पन्न होता है। बिछड़ा हुआ हो। जिसका वियोग हुआ हो। (२) जो विरह विद्युत् । का दुःख सह रहा हो। विरही। विशेष--यह शक्ति सब वस्तुओं में और सदा नहीं होती, बिछोड़ा-संज्ञा पुं० [हिं० विछटना] (1) बिछड़ने की क्रिया या बल्कि कुछ विशिष्ट क्रियाओं को सहायता से उत्पन्न होती भाव । अलग होना। (२) विरह होना । प्रेमियों का । है। यह शक्ति एक तो घर्षण से और दूसरे रासायनिक वियोग होना। क्रियाओं से उत्पज होती है। मोरपंख को थोड़ी देर बिछीय संझा पुं० [सं० विच्छेद ] वियोग । जुदाई। उ०-। तक उँगलियों से, लाह के टुकड़े को फलालीन से अथवा एक दिन ऐसा होगा सबसे परे बिछोय । राजा राना शीशे को रेशम से रगड़ने पर यह शक्ति उत्पन्न होती है। रावरक सावध क्यों नाहि होय ।-कबीर। ऐसी त्रिज्ली के धनारमफ और ऋणात्मक ये दो भेद होते बिछोह-संज्ञा पुं० [हिं० बिछडना ] बिछोड़ा। जुदाई । बिरह । हैं। जय दो वस्तुओं को एक साथ रगड़ते हैं, तो उनमें से वियोग। एक में से धन विद्युत् और दूसरी में से ऋण विद्युत् उत्पन्न बिछौन-संज्ञा पुं० [हिं० बिछाना ] वह कपड़ा जो सोने के । होती है। बिजली कुछ विशिष्ट पदार्थों में चलती भी है काम के लिये बिछाया जाता हो। दरी, गहा, चाँदनी आदि और अत्यंत वेग से ( प्रति सेकेंर २९०... मील अभया जो सोने के लिये बिछाए जाते हैं। बिछावन । बिस्तर । (२) प्रकाश के वेग की अपेक्षा प्रायः स्योने वेग से) चलती है।