पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/१७५

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बिल्लीलोटन २४६८ बिसखपरा हारी पशुओं में से एक जो सिंह, व्याघ्र, पीते आदि की होकर लोटने लगती है। यह दवा में काम आती है। जाति का है और अपनी जाति में सबसे छोटा है। बिल्ली यूनानी हकीम इसे 'यादरंजबोया' कहते हैं। नाम इस पशु की मादा का है पर यही अधिक प्रसिद्ध है। बिल्टूर-संशा पुं० "बिल्लोर"। इस्यका प्रधान भक्ष्य चूहा है। बिल्लोर-संज्ञा पुं० [सं० बैदूर्य्य, प्रा. बलरिय । मि० फा० विल्लूर ] विशेष—इसकी लंबाई एक हाथ से कम होती है और पूँछ डेढ़ (1) एक प्रकार का स्वच्छ सफेद पत्थर जो शीशे के समान दो पालिश्त की होती है। बिल्ली की जाति के और पशुओं पारदर्शक होता है। स्फटिक । ( अगुओं की योजना की के जो लक्षण है, वे सब बिल्ली में भी होते है जैसे टेढ़े पैने विशेषता के कारण इसमें यह गुण होता है---जैसा कि मिश्री नव जी गद्दी के भीतर छिपे रहते हैं और आक्रमण के की स्वच्छ शली में देखा जाता है)। (२) बहुत स्वच्छ समय निकलते है; परदे के कारण आँख की पुतली का घटना शंशा जिसके भीतर मैल आदि न हो। बढ़ना, सिर की यनावट नीचे की ओर झुकती हुई, २८ या बिल्लौग-वि० [हिं० क्लिौर ] (१) बिल्लौर का बना हुआ। बिल्लौर ३० दांतों में केवल नाम मात्र के लिए एक चीभर होना; पत्थर का । जैसे बिल्लारी चूड़ियां । (२) बिल्लौर के समान बिना आहट दिए चलकर शिकार पर झपटना इत्यादि स्वच्छ। इत्यादि। कुत्तों आदि के समान बिल्ली की नाक में भी बिवग्ना-क्रि० अ० [सं० विवरण ] (1) सुलझना । एक में गुथी घ्राग्राही धर्म कुछ ऊपर होता है। इससे वह पदार्थों को . हुई वस्तुओं को अलग अलग करन(२) बँधे या गुथे बहुत दूर से सूंघ लेती है। हुए बालों को हाथ, कंघी आदि मे अलग अलग करके भारतवर्ष में बिल्ली के दो भेद किए जाते हैं, एक बन साफ़ करना । बाल सुलझाना । उ०-दे. "प्योरना" । बिलाव और दूसरा पालतू बिल्ली । वास्तव में दोनों प्रकार बिवराना-क्रि० स० [हिं० विवरना का प्रे०] (१) बालों को की बिल्लयाँ बस्ती में या उसके आय पास ही पाई जानी खुलवा कर सुलभवाना। उ०-पुनि निज जटा राम है। बनविलाव का रंग स्वाभाविक-भृरा कुछ चित्तीदार बिवराये। गुरु अनुवापन माँगि नहाये ।-सुलसी । (२) होता है और वह पालन में कर और बलिष्ट होता है। बाल सुलझाना । पालतू त्रिलियाँ सफेद, काली, बादामी, चितकबरी कई बिवसाइ-संज्ञा पुं० दे० "व्यवसाय"। रंगों की होती है। उनके रोग भी मुलायम होते हैं। पालतू, विशप-संना पुं० [अं०] ईसाई मत का बड़ा पादरी। थिलियों में अंगोरा या पारखी दिल्ली बहुत अच्छी समझी : बिपान-संज्ञा पुं० "विपाण" । जाती है। वह डील में भी बदी होती है और उसके रोण . चिसंच -संज्ञा पुं० [सं० वि+संचय ] (1) संचय का अभाव । भी धने, बड़े बड़े और मुलायम होते है। ऐसी विलियाँ वस्तुओं की सँभाल न रखना। वेपरवाई। उ०-लघु प्रायः काबुली अपने साथ बेचने के लिए लाते हैं। बिल्ली मनुजद को संच कियहु बिसंच रंच न होय ।-रघुराज । बहुत दिनों से मनुष्यों के बीच रहती आई है। रामायण, . (२) कार्य की हानि । बाधा । (३) अमंगल । भय । डर । मनुस्मृति, अष्टाध्याथी सब में दिल्ली का उल्लेख मिलता ।। उ.-चक नहि बिसंच कौशिक सँग जात लखन सह- है। मनुस्मृति में पिला का जूठा खाने का निषेध है। कारी।-रघुराज। बिल्ली पहले पहल कहाँ पाली गई, इसके संबंध में कुछ बिसंभर*-संज्ञा पुं० दे० "विश्वभर"। लोगों का अनुमान है कि पहले पहल प्राचीन मिस्रवाल ने *वि० [सं० उप० वि+दि मॅभार ] (1) जो सँभल न बिल्ली पाली; क्योंकि मिस्त्र में जिस प्रकार मनुष्यों की सके। जिसे ठीक और व्यवस्थित न रख सकें। उ०-तन मोमियाई लाशें मिलती है, उसी प्रकार बिल्ली की भी। बिसंभर मन बाउर लटा । उरझा प्रेम परी सिर जटा।- मिस्रबाले जिस प्रकार मनुष्यों के शव मसाले से सुरक्षित जायसी । (२) बेखबर । गाफिल । असावधान । रखते थे उसी प्रकार पालतू जानवरों के भी। बिसँभाग-वि० [सं० उप० बि+हिं० सँभार ] जिसकी सुध बुध (२) किवाद का सिटकिनी जिसे कोड़े में डाल देने से ढके- . खो गई हो। जिसे तन बदन की खबर न हो। बेखबर । लने पर किवाद नहीं खुल सकते । एक प्रकार का अर्गल । ग़ाफ़िल । असावधान । उ.-परा सुप्रेम समुद्र अपारा । थिलैया । (३) एक प्रकार की मछली जो उत्तरीय भारत लहरहि लहर होई यिसँभारा।--जायसी। और बरमा की नदियों में होती है। पकड़े जाने पर यह । बिस-संशा पुं० दे० "विष"। मछली काटती है जिससे विप सा चढ़ जाता है। बिसखपरा-संज्ञा पुं० [सं० विष+खर्पर ] (१) हाथ सवा हाथ लंबा बिल्लीलोटन-संसः पी० [हिं० बिल्ली+लोटना ] एक प्रकार की बूटी गोह की जाति का एक विपैशा सरीसृप जंतु । इसका काटा जिसके विषय में प्रसिद्ध है कि उसकी गंध से बिल्ली मस्त हुआ जीव तुरंत मर जाता है। इसकी जीभ रंगीन होती है।