पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/१८३

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बीजित २४७६ बीतना बीजित-वि० [सं०] जिप्समें बीज बोया जा सका हो। बोया । करना। किसी काम के करने के लिये हामी भरना। पण बाँधना । हुआ। उ.-कविरा निंदक मर गया अब क्या कहिए जाइ । बीजी-वि० [सं० वाजिन् ] (१) बीज्वाला । (२) वीज संबंधी । ऐसा कोई ना मिले बीमा लेड उठाइ।-कीर । (२) जिसका संबंध बीज से हो। उद्यत होना । मुस्तैद होना । उ०—कहे कस मन लाय संशा स्त्री० [सं० बीज+ई (प्रत्य॰)] (1) गिरी। मांगी। भलो भयो मंत्री दयो । लीने मल्ल बुलाय आदर कर बीरा (२) गुठली। लयो। लल्लू। बीना बालना वा रखना=किसी कठिन काम संज्ञा पुं० [सं० वी जिन् ] पिता । के करन के लिये सभा में लोगों के सामने पान की गिलौरी रख बीजु-संज्ञा स्त्री० [सं० विद्युत् , प्रा. विजु ] बिजुली । उ. कर यह कहना कि जिसमें यह काम करने की योग्यता या साहस हरि मुख देग्विए बसुदेव । कोटि काम स्वरूप सुदर . है। वह इसे उठा ले । जो पुरुष उसे उठा ले, उसी को उसके कोउ न जानत भेव ।"""""वान सूते पहरुवा यब । करने का भार दिया जाता है । ( यह प्रायः प्राचीन काल के नींद उपजी गेह । निशि अँधेरी श्रीजु चमकै सधन बरपै : दरबारों की रस्म थी, जो अब उठ सी गई है।)। बीड़ा मेह।-सूर। देना-(१) कोई काम करने की आशा देना । काम का भार बीजुपात-संज्ञा पुं० दे० "वनात"। भीपना । दे० 'बीड़ा डालना' । उ.-कस नृपति ने शकट बीजुरी-संशा स० दे० "विजली"। बुलाए लेकर धीरा दीन्हों। आय नंदगृह द्वार नगर में रूप बीज-वि० [हिं० बीज+ऊ (प्रत्य०) ] बीज से उत्पन्न । जो बीज प्रगट निज कीन्हों।-सूर । (२) नाचने गाने बजाने आदि बोने से उत्पन्न हुआ हो । कल्मी का उलटा । जैसे, बीजू . का व्यवसाय करनेवालों को किसी उत्सव में सम्मिलित होकर अपना काम करने के लिये नियत करना । नाचने, गानेवालों संज्ञा पुं० दे० "बिज्जु"। आदि को साई देना । बयाना देना। बीजांदक-संज्ञा पुं० [सं०] ओला। (२) वह डोरी जो तलवार की म्यान में मुंह के पास बँधी बीज्य-संक्षा पुं० [सं०] वह जो अच्छे कुल में उत्पन्न हुआ हो।। रहती है । म्यान में तलवार गलकर यह डोरी तलवार के कुलीन। दस्ते की खूटी में बाँध दी जाती है जिससे वह म्यान से बीझना*-क्रि० अ० [सं० विद्ध, प्रा० विज्झ ] लिप्त होना। निकल नहीं सकती। फैसना । उ.--(क) डोलें बन बन जोर योवन के याच-दीडिया-वि० [हिं० बीड़ा+श्या (प्रत्य०)] बीड़ा उठानेवाला। कन राग वश कीन्ह बन वासी बीझि रहे हैं।-देव । (ख) अगुआ। नेता । दे. "बींडिया"। झींझि झींनि झुकि के विरुनि श्रीझि मेरे बैरी पुरी रीझ बीड़ी-संज्ञा स्त्री० [हिं० बीड़ा ] (१) दे. “बीड़ा" । उ.- रीझिते रिमाए रिमवार री ।—देव । तरिवन श्रवन नैन दोउ अंजनि नाशा बेसरि साजत । बीरा बीझा-वि० [सं० विजन ] जहाँ मनुष्य न हो। मिर्जन । एकांत।: मुख भरि चिबुक रिठौना निरखि कपोलन लाजत । (२) उ.--परेउ आप अब बनखंड माहाँ। दंडकारन्य बीझ धन गडी। दे० "बी"। (३) मिस्सी जिसे स्त्रियाँ दाँत रेंगने जाहाँ। जायसी । के लिये मुँह में मलती है। (३) पत्ते में लपेटा हुआ सुस्ती बीट-संशा स्त्री० [सं० विट ] (1) पक्षियों की विष्टा । चिड़ियों का चूर जिसे लोग सिगरेट या बुरुट आदि के स्थान में का गुह । (२) गुह । मल । (व्यंग्य) सुलगाकर पीते हैं। (३) दे. "विट लवण" । संज्ञा स्त्री० [हिं० बीड़ा ] एक प्रकार की नाव । बीठल-संज्ञा पुं० दे० "विट्ठल"। बीतना-क्रि० अ० [सं० व्यतीत ] (1) समय का विगत होना। बी-संशा स्त्री० [हिं० बीड़ा ] एक के ऊपर एक रखे हुए रुपए जो वक्त कटना । गुज़रना । उ॰—(क) जहँ लोभ मोह के खंभ साधारणत: गुल्ली का आकार धारण कर लेते हैं। दोऊ मन राख्यो है हिंडोर । तह झलहि' जीव जहान जह - संज्ञा पुं० दे."बी"। लागि कतहुँ नाहि थिति ठौर ।...'चौरासी लक्षहु जीव बीड़ा-संज्ञा पुं० [सं० बीटक ] (1) सादी गिलौरी जोपान में चूना, . झलै धरौंह रविसुत धाय । कोटिन कलप युग बीतिया कत्था, सुपारी आदि डालकर और उसे लपेटकर बनाई मानै न अजहुँ हाय।-कबीर । (ख) जनम गयो बादहि जाती है। खीली । उ.-बीरा खाय चले खेलन को सिलि विर बीति । परमारथ पालन न करेउ कछु अनुदिन अधिक के चारो बीर । सखा संग सब मिले बराबर आए सरजू : अनीत।-तुलसी । (ग) कछु दिन पत्र भक्ष करि बीते कछु तीर ।-सूर। लीन्हों पानी। कछु दिन पचन कियो अमुप्रासन रोक्यो मुहा०-धीरा उठाना=(१) कोई काम करने का संकल्प । श्वास यह जानी।-सूर । (घ) सुख सों बीती सब निसा