पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/२५५

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भरी भर्ग-संशा पुं० [ भर शब्द से अनु० ] (१) पक्षियों की उड़ान । मुहा०-भले ही ऐसा हुआ करे। इससे कोई हानि नहीं। (२) एक प्रकार की चिड़िया। अच्छा ही हैं। जैसे,--भले ही वे चले जायें। उ०-हृदय भरीना-क्रि० अ० [ भरे से अनु.] भरी भरी शब्द होना । जैसे, हेरि हारेउ सय ओरा । एकहि भौति मलेहि भल मोरा - आवाज़ भर्शना। सुलसी। (इस प्रयोग से कुछ उपेक्षा या संतोष का भाव भर्सन*+-संज्ञा स्त्री० [सं० भद्मन ] (1) निदा। अपवाद । प्रकट होता है।) शिकायत । (२) फटकार । डाँट-डपट । भलाई-संज्ञा स्त्री० [हिं० भला+ई (प्रत्य॰)] (१) भले होने का भलंदन-संज्ञा पु० [सं०] पुराणानुसार कनौज के एक राजा का भाव । भला-पन । अच्छा-पन । (२) उपकार । नेकी। नाम जिपको यज्ञकुंड मे कलावती नाम की एक कन्या (३) सौभाग्य । मिली थी। भलापन-सेश। पुं० दे. "भलाई"। भल-संशा पुं० [सं० ] (१) मार डालने की क्रिया । बध । (२) भले-कि. वि० [हिं० भला ] (1) भली भांति । अच्छी तरह । दान । (३) निरूपण । पूर्ण रूप से । जैसे,—आप भी भले रुपया देने आए। भलका -संज्ञा पु० [ देश ] (1) एक विशेष आकार का बना । (व्यंग्य) (कविता में इसका प्रायः “भलि के" हो जाता है। हुआ सोने या चाँदी का टुकड़ा जो शोभा के लिये नथ में उ.-हाथ हरि नाथ के बिकाने रघुनाथ जनु सील सिंधु जड़ा जाता है। (२) एक प्रकार का बांस। तुलसीस भलो मान्यौ भलि के। तुलसी।) भलटी-संशा सी० [देश॰] हँसिया नाम का लोहे का औज़ार।। अव्य ० बच । वाह । जैसे,—तुम कल शाम को आनेवाले भलपति-संज्ञा पुं० [हिं० भाला+सं० पति ] भाला रखनेवाला ।! थे, भले आए। नेजेघरदार । उ०-ऊपर कनक मजूसा, लाग चवर औ-भलेरा -संशा ० दे०।"भला"। उ-है जब तब तुम्हहि दार । भलपति बैठ भाल ले औ बैठ धन्कार ।-जायसी ने तुलसी को भलेरी।-तुलसी। भलमनसत-संशा 10 [ हिं, भला+मनुष्य+त (प्रत्य॰)] भले भल्ल-संज्ञा पुं० [सं०] (१) वध । हत्या। (२) दान । (३) मानस होने का भाव । मजनता । शराफ़त । भालू। (४) बृहत्संहिता के अनुसार एक प्राचीन देश । भलमनसाहत-संज्ञा स्त्री० दे० "भलमनमत"। (५) पुराणानुसार एक प्राचीन तीर्थ । (६) प्राचीन काल की भलमनसी--संशा स्त्री. दे. "भलमनसत"। एक जाति । (७) प्राचीन काल का एक शस्त्र जिससे शरीर भला-वि० [सं० भद्र ] (१) जो अच्छा हो । उत्तम । श्रेष्ठ। में धंसा हुआ तीर निकाला जाता था। (८) एक प्रकार का जैसे, भला काम । भला आदमी । उ०-वलहु करहि भल: बाण ! (९) दे "भाला"। पाइ सुसंगृ । मिटर न मलिन सुभाउ अभंग।-तुलसी। मल्लक-संशा पुं० [सं० ] (१) भालू । (२) इंगुदी का वृक्ष । (३) यौ०--भला चंगा-शरीर से स्वस्थ । भिलावा। (४) एक प्रकार की चिड़िया। (५) एक प्रकार (२) बढ़िया । अच्छा। का सन्निपात । दे. "भलु"। यौ०-भला बुरा=(१) उलट। सीधी बात । अनुचित बात । भल्लुपुच्छी-संज्ञा स्त्री० [सं० ] गोरखमुंडी। (२) डांट फटकार । जैसे,—जब तुम भला बुरा सुनोगे, भल्लय-संज्ञा पुं० [सं० ] ईशान दिशा का एक प्राचीन प्रदेश । तब सीधे होगे। भल्लाक्ष-वि० [सं०] जिसे कम दिखाई देता हो। मंद दृष्टि । संज्ञा पुं० (1) कल्याण । कुशल । भलाई । जैसे,—तुम्हारा भल्लात, भल्लातक-संज्ञा पुं॰ [सं० ] भिलाषाँ । भला हो । (२) लाभ । नफा । प्राप्ति । जैसे,—इस काम भल्लु-संज्ञा पुं० [सं०] एक प्रकार का सन्निपात ज्वर जिसमें में उनका भी कुछ भला हो जायगा। शरीर के अंदर जलन और बाहर जादा मालूम होता है, यौल-भला बुरा हानि और लाभ । नफा-नुकमान । जैसे, प्यास बहुत लगती है, सिर, गले और छाती में बहुत दरद तुम अपना भला बुरा समझ लो। रहता है, बड़े कष्ट से कफ और पित्त निकलता है, अन्य ० (1) अच्छा । खर । ॐस्तु । जैसे,-भला, मैं उनसे साँस और हिचकी बहुत आती है और आँखें प्राय: बंद समझ लूंगा। उ०- मलेहि नाथ कहि कृपानिकेता। उत्तरे रहती हैं। तह मुनि वृद समेता ।-सुलमी। (२) "नहीं" का सूचक भल्लुक-संज्ञा पुं० [सं०] भालू। अव्यय जो प्रायः वाक्यों के आरंभ अथवा मध्य में रखा भल्टूक-संज्ञा पुं० [सं०] (१) भालू (२) सुश्रुत के अनुसार शंख जाता है। जैसे,—(क) भला कहीं ठंढा लोहा भी पीटने से . की तरह का कोश में रहनेवाला एक प्रकार का जीव । (३) दुरुस्त होता है। (अर्थात् नहीं होता) (ख) वहाँ भला एक प्रकार का श्योनाक । (५) कुत्ता। चित्रकारी को कौन पूछता है ( अर्थात्-कोई नहीं पूछता) भव-संज्ञा स्त्री० दे० "भौंह"। .