पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/२७०

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भारावलंबकत्र भार्याट भारावलंबकत्व-संज्ञा पुं० [सं०] पदार्थों के परमाणुओं का पार- (६) सूजा हुआ। फूला हुआ । जैसे, मुँह भारी होना । स्परिक आकर्षण । (७) प्रबल । जैसे,—वह अकेला दम पर भारी है। (८) विशप-बहुतेरे पदार्थों के परमाओं का परस्पर करण गंभीर । शांत । ऐसा रहता है जो उन पदार्थों को दोनों ओर से स्वींचने में मुहा०-भारी रहना- नुप रहना । (दलाल) प्रतिबाधक होता है जिससे वह टूट नहीं सकते। इसी धर्म भारीपन-संज्ञा पु० [हिं० भाग+पन (प्रत्य॰)] (1) भारी का भाव। को भारावलंबकत्व कहते है। गुरुत्व । (२) गरिष्टता । भारी होना। भारि-मंशा पुं० [सं० ] सिंह । भारुड-संवा पु० [सं०] रामायण के अनुसार एक बन भारी-वि० [हि भार ] (१) जिसमें भार हो। जिनमें अधिक का नाम जो पंजाब में परम्वनी नदी के पास पूर्व बोअहो । गुरु । बोझिल : उ०—(क) लपटहिं कोप पटष्टि में था। तरवारी। ओ गोला ओला जय भारी ।-जायसी । (घ) भारुति-संशा ५० सं०] (1) एक प्रकार का साम । (गान) भारी कहो तो नहिं डरूँ हलका कह तो झीठ । मैं क्या (२) एक ऋषि का नाम जो भारंडि साम के दृष्टा थे। (३) जान राम को नैना कळू न दीठ।-कवीर। एक पक्षी का नाम। पुराणानुसार यह उत्सर कुरु का मुहा०—पेट भारी होना पेट में अपच होना । खाए हुए. पर: रहनेवाला है। का ठीक तरह से न पचना । पैर भारी होना-गभिणी होना। भारू-मा पुं० [हिं० भार धीरे चलने के लिये एक संकेन पट में होना । सिर भारी होना- सिर में पीड़ा होना । गला जिसका व्यहार कहार करते हैं। या आवाज़ भारी होना वा भारी परना-गला पड़ना । गला भागह-वि० [सं० ] भार ले जानेवाला । बैठना । मुह मरक आवान न निकलना । भारी रहा। भंगा पं० मोटिया । मजदूर। (१) नाव का रोकना (मल्लाह) । (२) धीरे चलना (कहार)। भार्गव-संज्ञा पुं० [सं० ! (१) भृग के वंश में उत्पन्न पुरुष । (२) अम्मा । कठिन । कराल । भीषण । उ०—(क) भरि (२) परशुराम । (३) शुक्राचार्य । (४) एक देश का नाम । भाडा दुपहर अति भारी। कैम भरों रैन अँधियारी- यह मार्कडेयपुराण के अनुसार भारतवर्ष के अंतर्गत पूर्व और जायसी । (ख) पुनि नर राव कहा करि भारी । बोल्यो हैं। (५) मार्कंडेय । (६) श्योनाक । (७) कुम्हार। (८) नीला सभा बीच प्रतधारी ।-गोपाल। (ग) गगन निहारि भैंगरा । (९) हीरा । (१०) गज । हाथी । (11) एक उप- किलकारी भारी, सुनि हनुमान पहिचानि भए सानंद पुराण का नारा । (१२) जमदग्नि । (१३) च्यवन । (१४) सचेत है।--सुलसी। एक जाति जो संयुक्त प्रदेश के पश्चिम में पाई जाती है। क्रि० प्र०—लगना। इस जाति के लोग अपने आपको ब्राह्मण कहते है पर (३) विशाल । बड़ा । बृहत् । महा । उ.-(क) दीरघ इनकी वृत्ति बहुधा वैश्यों की मी होती है। कुछ लोग इन्हें आयु भूमिपति भारी। इनमें नाहि पदमिनी नारी ।- पर बनिया भी कहते हैं। जायसी। (ख) जपहिं नाम जन आरति भारी। मिटहि वि. भृगु संबंधी। भृगु का। जै, भार्गव अस्त्र । कुसंकट होई सुखारी।-सुलसी । (ग) जैसे मिटहार भार्गवन-संक्षा पु म पुराणानुसार द्वारका के एक इन भ्रम भारी। कहहु सो कथा नाथ विस्तारी -तुलसी। का नाम । मुहा०-बड़ा भारी-बहुत बड़ा । भारी भरकम या भड़कम भार्गव प्रिय-संपु० [सं० | हीरा । बहुन बहा और भारी। जिसमें अधिक माल-मसाला लगा। भार्गवी-संशा सी० म. ] () पार्वती । (२) लक्ष्मी। (३) दूर्वा । और जो फलतः अधिक मूल्य का हो। बहुमूल्य । ज द य। (2) नीली वृष । (५) सफेद दृश्य । (६) उसीया भारी जोड़ा, भारी गठरी । देश क. एक नदी का नाम । (४) अधिक । अत्यंत । बहुत । उ.--(क) धाइ दामिनी भार्गायन-सं. पुं.. [सं०] भर्ग के गांव के लोग। बेगि कारी । वह सौंपा हीए रिस भारी । —जाया। भार्गी-संशा स्त्री० [सं०] भारंगी। (ख) यह सुनि गुरु बानी धनु गुन तानी जानी द्विज दुम्ब- भाङ्गीं-सका पी० [सं० ] भारंगी। दानि । ताडुका सँहारी दारण भारी नारी अतिदल जाहि।- भार्दाजी-सं[ मी० [सं०] भारद्वाजी । बनकपास। केशव। (ग) अस तप करत गयो दिन भारी। चार पहर भार्या-संभ स्त्री० [सं० ] पनी । जाया । जोस । स्त्री। बीते जुग चारी ।—जायसी । (५) असह्य । दूभर । भार्याट-संना पुं० [सं०] वह जो किसी दूसरे पुरुष को भोग जैसे,-मेरा ही दम उन्हें भारी है। के लिये अपनी स्त्री दे। अपनी स्त्री को परे पुरुष के पास फि०प्र०-पड़ना।-लगना । भेजनेवाला मनुष्य ।