पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/३२५

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मकरकर्कट मकसूद मंडल कुंडल विवि मकर सुविलसत सदन सदाई।-सूर। | मकरानन-संशा पुं० [सं०] शिव के एक अनुचर का नाम । (११) छप्पय के उनतालीसधै भेद का नाम जिसमें ३२ | मकराना-संज्ञा पुं॰ [देश॰] राजपूताने का एक प्रदेश जहाँ का गुरु, ८८ लघु, १२० वणे या १५२ मात्राएँ अथवा ३२ गुरु, संगमरमर बहुत प्रसिद्ध होता है। ८५, लघु ११६ वर्ण, कुल १४८ मात्राएँ होती हैं। मकरा राई-संशा स्त्री० [ मकरा +राई ] काली राई । संज्ञा पुं० [फा० ] (1) छल । कपट । फरेष । धोखा (२) मकरालय-संशा पुं० [सं०] समुद्र । नखरा । मकराश्व-संशा पुं० [सं० ] मकर पर सवार होनेवाले, वरुण । क्रि० प्र०-रचना ।—फैलाना । मकरासन-संशा पुं० [सं०] तांत्रिकों का एक आसन जिसमें मकरकर्कट-संज्ञा पुं० [सं०] क्रांति वृत्त की वह सीमा जहाँ से हाथ और पैर पीठ की ओर कर लिए जाते है। सूर्य उत्तरायण वा दक्षिणायन होकर लौट आता है। मकरिकापत्र-संज्ञा पुं० [सं०] मछली के आकार का बना हुआ मकरकेतु-संज्ञा पुं० [सं०] कामदेव । चैदन का चिह्न जो प्राचीन काल में स्त्रियाँ अपनी कन- मकरतार-संज्ञा पुं० [हिं० मुकश ] बादले का तार 130-चलु सखि पटियों पर बनाती थीं। चलु सखि प्रेम-बिलास । समर खेलौ सत्तगुरु के पास । श्वेत | मकरी-संज्ञा स्त्री० [सं०] (1) मगर की मादा । मगरी। उ.- सिंहायन छत्र अंजोर । मकरतार पर लागी दोर ।-कबीर । पोखरी त्रिशाल बाहुबल वारिधर पीर मकरी ज्यों पकरि के मकरध्वज-संज्ञा पुं० [सं०] (1) कामदेव । कंदर्प । (२) रस बदन बिदारिये ।-तुलसी । (२) एक प्रकार का वैदिक सिंदूर । चंद्रोदय नामक रस । (३) इंद्र पुष्प । लौंग। गीत । (३) चकी में लगी हुई एक लकड़ी जो अनुमान (2) पुराणानुसार अहिरावण का एक द्वारपाल जो हनुमान आठ अंगुल की होती है और जो किल्ले की नोक पर रखकर का पुत्र माना जाता है । कहते है कि लंका को जलाने के और उसके दोनों सिरों पर जोती लगाकर जुए से बाँधी उपरांत जब हनुमान ने समुद्र में मान फिया था, तब एक रहती है। इस जोती में दोनों ओर मोटी छोटी लकड़ियाँ मछली ने उनके पसीने से मिला हुआ जल पीकर गर्भ धारण लगी होती है जिनके घुमाने से ऊपर का पाट आवश्यकता- किया था जिससे इसका जन्म हुआ। मस्स्योदर । नुसार ऊपर उठाया या नीचे गिराया जा सकता है। जब मकरपति--संज्ञा पुं० [सं०] (१) कामदेव । (२) प्राह । यह ऊपर कर दी जाती है, तब चक्की के ऊपर का पाट भी मकरव्यूह-संशा पुं० [सं० ] एक प्रकार का यूह या सेना-रचना कुछ ऊपर उठ जाता है जिससे आटा कुछ मोटा और जिसमें सैनिक मकर के आकार में खड़े किए जाते हैं। दरदरा होने लगता है। और जब इसे धुमाकर कुछ नीचे मकरसंक्रांति-संज्ञा स्त्री० [सं०] वह समय जब कि सूर्य मकर करते हैं, तब पाट के नीचे आ जाने के कारण आटा महीन राशि में प्रवेश करता है। यह एक पर्व माना जाता है। होने लगता है । (४) जहाज़ में फर्श या खंभों आदि में लगा मकरांफ-संशा पुं० [सं०] (१) कामदेव । (२) समुद्र । (३) : हुआ लकवी या लोहे का वह चौकोर टुकया जिसके अगले एक मनु का नाम। दोनों भाग अंकुसे के आकार के होते हैं और जिनमें रस्सा मकरा-संज्ञा पुं० [सं० वरक ] मडवा नामक अन्न । आदि बांधकर फंसा देते है । (लश.) संज्ञा पुं० [हिं० मकड़ा (1) भूरे रंग का एक कीड़ा जो | मकरूह-वि० [फा०] (1) नरपाक । अपवित्र । (२) जिसे दीवारों और पेड़ों पर जाला बनाकर रहता है। इसकी टाँगे | देखकर घृणा उत्पन्न हो । घृणित । बड़ी बड़ी होती हैं। (२) हलवाइयों की एक प्रकार की | मकरड़ा-संशा पुं० [हिं० मका+एका (प्रत्य॰)] ज्वार वा मक्के घोदिया या चौधदिया जिससे सेव बनाया जाता है। यह का दंठल। एक चौकी होती है जिसमें छाननी की तरह छेद वाला लोहे | मकरौरा-संज्ञा पुं० [हिं० मकसी ] एक प्रकार का छोटा कांदा का एक पात्र जड़ा होता है। इसी पात्र में छोला हुआ जो प्रायः आम के पेड़ों पर चिपका रहता है। बेसन भरकर ऊपर से एक दस्ते से दबाते हैं जिससे नीचे | मकला-संशा स्त्री० [ मकालिया बंदरगाह से ] एक प्रकार का गोंद सेव बनकर गिरता जाता है। जो अदन से बंबई में आता है। यह सफेद या लाली लिए मकराकर-संज्ञा स्त्री० [सं०] समुद्र । (डिं०) पीले रंग का होता है और इसके गोल गोल दाने होते हैं। मकराकार-वि० [सं०] मकर या मछली के आकार का। यह मकालिया नामक बंदरगाह से आता है। इसीलिये मकराकृत-वि० [सं०] मकर या मछली के आकारवाला। मकलाई कहलाता है। मकराक्ष-संज्ञा पुं० [सं०] वर का पुत्र और रावण का भतीजा। मकसद-संशा पुं० [अ० ] (1) मनोरथ । मनोकामना । (२) यह कुंभ और निकुंभ के मारे जाने पर युद्ध में गया था और | अभिप्राय । तात्पर्य । मतलब । राम के द्वारा मारा गया था। | मकसूद-वि० [अ०] उरिता अभिप्रेत।