पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/३३

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२३२६ फूलडोल (खि. व्यंग्य) फूलों का गहना=(१) फूलों की माला, (१२) गर्भाय । (१३) बुटने या पैर की गोल हड्डी। हार आदि सिंगार या सजावट का सामान । (२) ऐसी नाजुक चकी। टिकिया।(१४) वह हड़ी जो शव जलाने के पीछे और कमजोर चीज जो थोड़ी देर की शोभा के लिए हो। बच रहती है और जिसे हिंदू किसी तीर्थस्थान या गंगा में फूलों की छड़ी-वह छटी जिसमे फूलों की माला लपेटी । छोड़ने के लिए ले जाते हैं। रहती है और जिससे चौथी खलते है । फूलों की सेज-वह : क्रि० प्र०-चुनना। पलंग या शय्या जिसपर सजावट और कोमलता के लिए (१५) सूखे हुए साग या भांग की पत्तियाँ (बोलचाल)। फूला का पखड़ियां बिछा हो । आनंद की सेज । (शृंगार की जैसे, मेथी के दो फूल दे देना । (१६) किसी पतले या एक सामग्री ) पान फूल सा अत्यंत सुकुमार । द्रव पदार्थ को सुखाकर जमाया हुआ पत्तर या वरक । (२) फूल के आकार के बेल बृटे या नकाशी । उ०--- जैसे, स्याही के फूल । (१७) एक मिश्र या मिली जुली मनि फूल रचित मखतूल की झलन जाके तूल न कोउ । धातु जो ताँबे और राँगे के मेल से बनती है। यह धातु गोपाल । (३) फूल के आकार का गहना जिसे स्त्रियाँ कई उजली और स्वच्छ चाँदी के रंग की होती है और इसमें अंगों में पहनती है। जैसे, करनफल, सीसफल । उ० रखने से दही या और खट्टी धीजें नहीं बिगड़तीं । अच्छा (क) कानन कनकफूल छवि देहीं ।-नुलसी । (ख) फूल बेधा कहलाता है । साधारण फूल में चार भाग तौबा कानन कनकफूल, उपवीत अनुकूल पियरे वृकूल बिलस्त और एक भाग राँगा होता है पर बेधा फूल में १०० भाग आछे छोर हैं ।-सुलसी । (ग) पुनि नासिक भल फल ' ताँबा और २७ भाग राँगा होता है और कुछ चाँदी भी पड़ती अमोला। पुनि राते मुख खाय तमोला ।-जायसी।। है। यह धातु बहुत खरी होती है और आघात लगने पर (घ) पायल औ पगपान सुनपुर । चुटकी फल अनौट चट टूट जाती है । इसके लोटे, कटोरे, गिलास, आवस्खोरे सुभृपुर ।-सूदन । (७) चिराग की जलती बत्ती पर पड़े आदि बनते हैं। फल काँसे से बहुत मिलता जुलता है पर हुए गोल दमकते दाने जो उभरे हुए मालूम होते हैं। काँसे से इसमें यह भेद है कि कांसे में तांबे के साथ जस्ते गुल। का मेल रहता है और उसमें खट्टी चीजें बिगड़ जाती है। मुहा०-फल पड़ना- बत्ती में गाल दान दिखाई पडना । संज्ञा स्त्री० [हिं० फूलना ] (1) फलने की क्रिया या भाव। फल करना-बुझना (सिस का)। प्रफुल्ल होने का भाव । उत्साह । उमंग। उ०--(क) फूलि (५) आग की चिनगारी। फलि तरु फूल बढ़ावत । मोहत महा मोद उपजावत ।- क्रि० प्र०-पहना। केशव । (ख) फरक्यो चंपतराय को दच्छिन भुज अनुकूल । (६) पीतल आदि की गोल गाँठ या बुडी जिसे शोभा । बड़ी फौज उमड़ी सुनी भई जुद्ध की फल-लाल । (२) के लिए छड़ी, किवाय के जोर आदि पर जलते हैं। आनंद । प्रसन्नता । उ०-(क) करिए अरज कबूल । जो फुलिया। (७) सफेद या लाल धब्बा जो कुष्ट रोग के | चित चाहत फूल ।-सूदन । (ख) फूल श्याम के उर लग कारण शरीर पर जगह जगह पड़ जाता है। सफेद दाग । फल श्याम उर आय।-रहीम । श्वेत कुष्ट। . फूलकारी-संशा सी० [हिं० फल-+फा. कारी ] बेल बूटे बनाने क्रि०प्र०—पड़ना। का काम। (८) सत्त । सार । जैसे, अजवायन का फूल। फूलगोभी-संज्ञा स्त्री० [हिं० फूल-+गोभी ] गोभी की एक जाति क्रि० प्र०-निकालना।-उतारना। जिसमें मंजरियों का धंधा हुआ ठोस पिंड होता है जो (९) वह मच जो पहली बार का उतरा हो । कवी देशी तरकारी के काम में आता है। इसके बीज असाद से कुमार शराब। तक बोए जाते हैं। इसके बीज की पहले पनीरी तैयार विशेष-यह शराब बहुत साफ़ होती है और जलाने से जल करते हैं। फिर पौधों को उखाद उखाद कर क्यारियों में उठती है। इसी को फिर खींचकर दोभातशा बनाते हैं। लगाते हैं। कहीं कहीं पौधे कई बार एक स्थान से उखाड़ उ.-योको ही सो चास्त्रिया भाँदा पीया धोय । फल दूसरे स्थान में लगाए जाते हैं। दो ढाई महीने पीछे फलों पियाला जिन पिया रहे कलाला सोय।-कबीर । की चुडियाँ दिखाई देती है। उस समय कीड़ों से बचाने के (१०) आटे चीनी आदि का उत्तम भेद । (११)त्रियों लिए पौधों पर राख छित्तराई जाती है। कलियों के फूटकर का वह रक्त जो मासिक धर्म में निकलता है। रज।। अला होने के पहले ही पौधे काट लिए जाते हैं। फूलडोल-संज्ञा पुं० [वि. फूल+डोल ] एक उत्सव जो चैत्र मि०प्र०-आना। शुक्ल एकादशी के दिन मनाया जाता है। इस दिन भगवान् समा