पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/३६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

फेंटना २३२९ फेफड़ा - - मुहा०-फेंट धरना या पकड़ना-जाने न देना । रोकना । इस क्रि० म० दे० "फेंकरना"। प्रकार पकड़ना कि भागने न पाए। उ०-(क) अब लौं तो फेकारना-क्रि० स० [सं० अप्रखर=बिना मूल का ?] ( सिर) तुम विरद खुलायो भई न मोसों भेंट । तजौ बिरद के मोहि खोलना या नंगा करना । उबारी सूर गही कसि फॅट । -सूर । (ख) जो तू राम नाम फण-संज्ञा पुं० दे० "फेन" । चित धरतो। अब को जन्म आगिलो तेरो दोऊ जन्म ! फेदा -संज्ञा पुं० [देश॰] धुंइया । अरुई। सुधरतो। यम को त्रास सबै मिटि जातो भगत नाम तेरो ! फेन-संशा पुं० [सं०] [वि. फेनिल ] (1) महीन महीन चुलबुलों परतो। तंदुल धिरित सँवारि श्याम को संत परोसो करतो। का वह गठा हुआ समूह जो पानी या और किसी वध होतो नफा साधु की संगति मूल गाँठि ते टरतो। सूरदास पदार्थ के खूब हिलने, सड़ने या खौलने से ऊपर दिखाई बैकुंठ पैंट में कोउ न फेंट पकरतो।-सूर । फेंट कसना या पड़ता है। झाग । बुख़ुद-संघात । बाँधना-कटिबद्ध होना। कमर कसकर तैयार होना। सन्नद्ध क्रि०प्र०-उठना ।-निकलना। होना। उ०—(क) ढोल बजावती गावती गीत मचावती | (२) रेंट। नाक का मल। Vधुर धूरि के धारन । फेंट फते की कसे द्विजदेव जू चंचलता | फेनक-संज्ञा पुं० [सं०] (8) फेन । साग। (२) टिफिया के बस अंचल तारन ।-द्विजदेव । (ख) पाग बैंच खैच दे आकार का एक पकवान या मिठाई। बतासफेनी । (३) लपेटि पट फैट बाँधि, ऐंडे ऐंड़े आवे पैने टूटे टीम डीम ते ।। शरीर धोने या मलने की एक किया (संभवत: रीठी आदि -हनुमान । के फेन से धोना जिस प्रकार आज-कल साबुन मलते हैं। (३) फेरा । लपेट । घुमाव । फेनका संज्ञा स्त्री० [सं०] पानी में पका हुआ चावल का चूर । संशा स्त्री० [हिं० फेंटना ] फेंटने की क्रिया या भाव। । फेनदुग्धा-संज्ञा स्त्री० [सं०] दूधफेनी नाम का पौधा जो दवा फैटना-क्रि० स० [सं० पिष्ट, प्रा पिट्ठ+ना (प्रत्य॰)] (1) गाढ़े के काम में आता है। यह एक प्रकार की दुधिया धास है। द्रव पदार्थ को उँगली घुमा घुमा कर हिलाना । लेप या | फेनना-क्रि० स० [हिं० फेन ] किसी तरल वस्तु को उँगली लेई की तरह चीज को हाथ या उँगली से मथना । जैसे, | घुमाते हुए इस प्रकार हिलाना कि उसमें से झाग उठने लगे। पीठी फॅटना, बेसन फेंटना, तेल फेंटना। फेनमेह-संज्ञा पुं० [सं०] एक प्रकार का मेह । इसमें वीर्य फेन संयो० क्रि०-देना।-लेना। की भाँति थोड़ा थोड़ा गिरता है। यह श्लेष्मज माना (२) ऊँगली मे हिलाकर खूब मिलाना । जैसे, इस जाता है। बुकनी को शहद में फेंट कर चाट जाओ । (३) फेनल-वि० [सं० ] फेनयुक्त । फेनिल । गड्डी के तासों को उलट पलट कर अच्छी तरह फेनाप्र--संज्ञा पुं० [सं०] बुबुद् । खुलघुला । मिलाना। फेनाशनि-संज्ञा पुं० [सं०] इंद्र। फेंटा-संज्ञा पुं० [हिं० फेंट1 (1) कमर का घेरा। (२) धोती का | फेनिका-संज्ञा स्त्री० [सं० ] फेनी नाम की मिठाई। वह भाग जो कमर में लपेटकर बाँधा गया हो। (३) फेनिल-वि० [सं०] फेनयुक्त। जिसमें फेन हो। फेनवाला । पटुका । कमरबंद। उ०--अब मैं नाच्यों बहुत गुपाल । संज्ञा पुरीठा । रीठी। काम क्रोध को पहिरि चोलना कठ विषय की माल ।...... | फेनी-संशा स्त्री० [सं० फेनिका ] लपेटे हुए सूत के लच्छे के तृष्णा नाद करत घट भीतर नाना बिधि दै ताल। माया ____ आकार की एक मिठाई। को कटि फेंटा बाँध्यो लोभ तिलक दियो भाल।-सूर । विशेष-दीले मुंधे हुए मैदे को थाली में रखकर घी के (४) वह वस्त्र जो सिर पर लपेटकर बाँधा जाता है। छोटी साथ चारों ओर गोल बढ़ाते हैं फिर उसे कई बार उँगुलियों पगड़ी । (५) अटेरन पर लपेटा हुआ सूत । सूत की बड़ी पर लपेटकर बढ़ाते हैं। इस प्रकार बढ़ाते और लपेटते अंटी। जाते हैं। अंत में घी में तलकर चाशनी में पागते या यों फेंटी-संशा स्त्री० [हिं० फेंट ] सूत का पोला । अटेरन पर लपेटा ही काम में लाते हैं। यह मिठाई दूध में भिगोकर खाई हुआ सूत। जाती है। उ०—(क) फेनी पापर भूजे भए अनेक प्रकार । फेंसी-वि० [अं॰] दे. "सी"। भइ जाउर भिजियाउर सीझी सब जेवनार-जायसी । केकरना-कि० अ० [हिं० फेकारना] ( सिर का ) खुलना। (ख) घेवर फेनी और सुहारी । खोवा सहित खाय बलि. (सिर का ) आच्छादन-रहित होना नंगा होना। उ०- हारी।-सूर। फेकरे मुंद वर जनु लाए । निकसि दाँत मुंह बाहर आए। फेफड़ा-संज्ञा पुं० [सं० फुप्फुस+ड़ा (प्रत्य॰)] शरीर के भीतर थैली -जायसी। के भाकार का यह अवयव जिसकी क्रिया से जीव साँस