पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/३७९

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मर्यादा २६७० मलखाना भागा। कबीर । (२)रीति । रसम । प्रथा । (३) चाल । ऐव। (८) हीरे का एक दोष । (९) जैन शास्त्रानुसार दंग। (४) विवाह में वर पक्षवालों का वह भोज जो उन्हें आत्माश्रित दुष्ट भाव । ग्रह पाँच प्रकार का माना गया है- विवाह के तीसरे दिन कन्यापक्ष की ओर से दिया जाता मिथ्या ज्ञान, अधर्म, मक्ति, हेतु और ज्युति । (१०) कपूर । है। बड़हार ! बदार। (११) प्रकृति-दोष । जैसे, वात, पित्त, कफ़ । मुहा०---मर्याद रहना-बरात का विवाह के तीसरे दिन ठहरकर । [ देश० ] फीलवानों का एक सांकेतिक शब्द जो हाथियों भोन में सम्मिलित होना । को उठाने के लिए कहा जाता है। मर्यादा-संशा सं० [सं०] (9) सीमा। हद । (२) कूल। मलकना-क्रि० अ० [हिं० मलकाना ] (1) हिलना डोलना । नदी का किनारा । (३) दो वा दो से अधिक मनुष्यों के । (२) इतराना । इठलाना । बीच की प्रतिज्ञा। मुआहिदा । करार । (४) नियम । (५) | मलकरन-संज्ञा पुं॰ [देश० ] बरतन पर नकाशी करनेवालों का सदाचार । (६) मान । प्रतिष्ठा । गौरव । एक औज़ार जिससे ग्बीदने पर दोहरी लकीर बनती है। क्रि० प्र०—रखना। मलकाछ-संज्ञा पुं० [हिं० मल्ल+काछ ] ठाकुरों के शृंगार के लिए (७) धर्म । एक प्रकार की कछनी जिसमें तीन शब्बे लगे होते हैं। मर्यादाबंध-पुंज्ञा पुं० [सं०] (1) अधिकार की रक्षा । (२) मलकाना-क्रि० स० [ अनु० ] (१) हिलाना । डोलाना । विच- नजरबंदी। लित करना । जैसे, आँख मलकाना । मादी-वि० [सं० मर्यादिन् ] सीमावान् । सीमायुक्त। क्रि० अ० बना बनाकर बातें करना । मरी-संशा सी० [हिं० मरना ] वह भूमि जो कर्ज लेनेवाले ने | मलखंभ-संज्ञा पुं० दे० "मलवम"। सूद के बदले में महाजन को दी हो। मलखम-संज्ञा पुं० [सं० मल+हिं . खंभा ] (1) लकड़ी का एक मर्ष-संशा पुं० [सं० ] शांति । प्रकार का खंभा जिस पर कसरत करनेवाले फुरती से चढ़ मर्षण-संज्ञा पुं० [सं०] (1) क्षमा माफी। (२) घर्षण । रगद । और उतरकर कसरत करते हैं । मलखम तीन प्रकार वि० (७) नाशक । ध्वंसक । (२) दूर करनेवाला । रोकने । के होते हैं-गड़ा मलखम, लटका मलखम और बेत का या हटानेवाला। मलखम । गहा मलखम एक लंबा मोटा चार पाँच हाथ मर्षणीय-वि० [सं०] क्षमा करने के योग्य । क्षम्य । ऊँचा मुगदर के आकार का खंभा होता है जो भूमि में मलंग-संशा पुं० [फा०=आप से बाहर ] (1) एक प्रकार के मुस गड़ा रहता है। लटका हुआ वा लटकाओं मलखम छस ल्मान साधु । ये मदारशाह के अनुयायी होते है और सिर या किसी और धरन के सहारे ऊपर से अधोमुख लटका के बाल बढ़ाते और नंगे सिर और नंगे पैर अकेले भीख रहता है। जब इस खंभे की जगह धरन आदि में बत मांगते फिरते हैं। उ०-(क) कौडा आँसू बूंद, करि माँकर लटकाया जाता है, तब इसे बँत का मलखम कहते हैं। यहनी सजल । काने बदन न मूंद, ग मलंग बारे रहै ।----- इस पर कसरत करनेवाले बेंत को हाथ में पकड़कर उस बिहारी। (ख) किधी मैन मलंग पदयौ पल सुंग अंजीर पर अनेक मुद्राओं से कसरत करते है। इसे बाँस, लगी असे न पर झटकी।-मुकुंदलाल ! (२) एक प्रकार का । था मलावानी भी कहते हैं । मलबम की कसरत बमा बगला जो स्वच्छ साकेद रंग का होता है। यह भारत- । भारतवर्ष की एक प्राचीन मल्ल नामक क्षत्रिय जाति वर्ष और बरमा में होता है; और प्रायः एकांत में और की निकाली हुई है। इसी मल्ल जाति की आविष्कार अकेला रहता है। की हुई कुश्ती को मल्लयुद्ध भी कहते हैं। मलखम मलंगा-संज्ञा पुं० दे. "मलंग"। पर चढ़ने उतरने को 'पकर' कहते हैं। इस कसरत मल-संक्षा पु० [सं०] (1) मैल । कीट । जैसे, धातुओं का मल । से मनुष्य में फुरती आती है और पैर की राने ढ़ उ.-लीला सगुन जो कहहि खखानी । सोइ स्वच्छता होती है। मालखंभ । (२) वह कसरत जो मलखम पर वा करइ मल हानी।—तुलसी । (२) बारीर से निकलनेवाली उसके सहारे मे की जाय । (३) पत्थर वा लकड़ी के पुरानी मैल चा विकार । ये मल बारह प्रकार के माने गए हैं-(1) घाल के कोष्ट्र में लकड़ी का एक खूटा जो कातर वा पाट बला, (२) शुक्र, (३) रक्त, (४) मजा, (५) मूत्र, (६) में कोह से दूसरी छोर पर गाड़ा जाता है और जिसमें विष्ठा, (७) कर्णमल वा खूट, (4) नख, (९) श्लेष्मा वा देके की रस्सी बांधी जाती है; अथवा जिसमें रस्सी लगा कक, (१०) आँसू, (११) शरीर के उपर जमी हुई मैल और कर ढंकी बाँधकर जाट के ऊपर लगाते हैं। इसे मरखम (१२) पसीना । (३) विष्ठा । पुरीष । (४) दूषण । विकार । भी कहते हैं। (५) शुद्धतानाशक पदार्थ । (९) पाप । (७) दोष । पुराई। मलखाना-वि० [हिं० मल+खाना ] मह खानेवाला । 30-