पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/३८०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

मलखानी २६७१ मलना - फोउ न जग में होत कुटिल मैले मलवाने। उसर बैठि सज्ञा पुं० (१) शाल्मली कंद। सेमल का मुसला । (२) मरजाद भ्रष्ट आचार न जाने ।-गिरधरदास । कचनार का एक भेद । मलपन । संज्ञा पुं० [सं० मल+सेन ] (1) महोये के राजा परमाल के मलनी-संज्ञा स्त्री० [सं०] नागदौना । भतीजे का नाम । यह पृथ्वीराज चौहान का समकालीन मलज-संज्ञा पुं० [सं०] पीव । था। (२) पश्चिमी संयुक्त प्रांत में बसनेवाले एक प्रकार के मल ज्वर-संशा पुं० [सं० मल+ ज्वर ] अमृत सागर के अनुसार राजपूत जो मुसलमान बना लिए गए थे। इन लोगों का एक प्रकार का ज्वर जो मल के स्कने के कारण होता है। आचार विचार अब तक प्रायः हिंदुओं का सा है। इसने रोगी के पेट में शूल और सिर में पीड़ा होती है, मलखानी-संगा स्त्री० [हिं० मलग्बम ] एक ऊँचा और सीधा मुंह सूखा रहता है, जलन होती है, भ्रम होता है और पतला खंभा जिस पर बेंत से मलरवम की कसरत की कभी कभी मूळ भी आती है। जाती है। इसे बाँस और लम्गी भी कहते हैं। वि. दे. मलमन-संज्ञा पुं० [देश॰] एक प्रकार की बेल जो बागों में "मलखम"। लगाई जाती है। मलगजा*-वि० [हिं० मलना+गीजन! ] मला दला हुआ। गीजा मलट-संज्ञा पुं० [सं० मैलेट ] (१) लकड़ी का हथौड़ा जिग्मन्ये हुआ। मरगजा। यूँ टे आदि गादे जाते हैं। (२) काठ का वह हाड़ा जिससे संज्ञा पुं० बेसन में लपेटकर तेल या घी में आने हुए बैंगन छापने के पहले पीने के अक्षर ठोंककर बैठाए और वरावर के पतले टुकड़े। किए जाते हैं। मलगिरी-संज्ञा पुं० [हिं० मलयागिरि ] एक प्रकार का हल्का कत्थई मलद-संशा पुं० [सं०] वाल्मीकीय रामायण के अनुग्ार एक रंग। यह रंग रंगने के लिए कपड़ा पहले हद के हलके काढ़े प्रदेश का नाम । कहते हैं कि ताड़का यहीं रहती थी। इसे में और फिर कसीस के पानी में डुबोते हैं और फिर उसे मल्लभूमि भी कहते थे। एक रंग में जिसमें कत्था, चूना, मेंहदी की पत्ती और चंदन मलदूषित-वि० [सं० ] मलीन । मैला। का चूरा पीसकर घोला रहता है और छल छबीला, नागर- मलद्रावी-संज्ञा पुं॰ [सं० मलद्राविन् ] जयपाल । जमालगोटा । मोया, कपूर कचरी, नख, पाँजर, बिरमी, सुगंधवाला, मलद्वार-संज्ञा पुं॰ [सं०] (1) शरीर की वे इंद्रियाँ जिनसे मल सुगंध कोकल, थालछ, जरांकुश, कुढ़ना, सुगंध मैत्री, लौंग, निकलते हैं। (२) पाखाने का स्थान । गुदा । इलायची, केशर और कस्तू का चूर्ण मिला रहता है, मलधात्री-संशा स्त्री० [सं०] वह धाय जो बच्चों का मल-मूत्र डालकर पहर भर उबालते हैं और उतारने पर उसे दिन धोने पर नियुक्त हो। रात उसी में पड़ा रहने देते हैं। दूसरे दिन कपड़े को मलधारी-संज्ञा पुं० [सं० मलधारिन् ] एक प्रकार के जैन साधु जो उसमें से निकालकर निचोड़ लेते हैं और वर्तन के रंग को शरीर में मल लगाए रहते हैं और उसको धोते और शुद्ध छानकर उसमें हिना का इन्त्र मिलाकर उसमें फिर उप नहीं करते। कपड़े को डुबाकर सुखाते हैं। पर आजकल प्रायः रंगरेज मलन-संशा पुं० [सं०] (1) मईन । मीजना । (२) पोतना। मलगिरी रंग रंगने में कपड़े को कत्थे और चने के रंग में लेप करना । लगाना । गते हैं। फिर उसे कसीस के पानी में हुधा देते हैं। इसके मलना-क्रि० स० [सं० मलन ] (१) हाथ अथवा किसी और बाद रंगे हुए कपड़े को आहार देकर निचोदते और सुखाते पदार्थ से किसी तल पर उसे साफ़, मुलायम था अच्छा हैं और अंत में उसपर हिना का इत्र मल देते हैं। करने के लिए रगड़ना । हाय या किसी और चीज़ से दबाते वि० मलगिरी रंग का। हुए घिसना । मदन । मीजना । मसलना । जैसे, लोई मलधन-संशा पुं० [सं० मलन ] एक प्रकार का कचनार, जो लता मलना, घोड़ा मलना, बरतन मलना। उ०—(क) यहि रूप में होता है और हिमालय की तराई, मध्य भारत और सर धड़ा न बूबता मंगर मलि मलि न्हाय । देवल बृदा टेनासरम के जंगलों में पाया जाता है। इसकी छाल मलू कलस लों पक्षि पियामा जाय ।-कधीर । (ख) चलि कहलाती है जिस पर रंग अच्छा बढ़ता है और जो कूटने पर सखि तेहि सरोवर जाहि। जेहि सरोवर कमल कमला रवि ऊन की तरह चमकदार हो जाती है। इसे जन में मिलाकर बिना विकसाहि। हम उज्वल पंख निर्मल अंग मलि मलि तागा काता जाता है। जिससे ऊनी कपड़े बुने जाते हैं।। महाहि । मुक्ति मुक्ता अंबु के कल तिन्हैं सुनि धुनि खाहि । यह छाल ऐसी साफ़ होती है कि उन में मिलाने पर इसकी -सूर। मिलावट बहुत कम पहचानी जाती है। संयोकि०-डालना।-देना। मलन-वि० [सं०] [ स्त्री. मलनी ] मलनाशक । मुहा०-दलना मलना=(१) braryपास कर डकले टुकड़े