पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/३९३

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मसूसना २६८४ कत इहाँ मसूखन मरिए। सूर । (ब) सूरन के मिस ही पूरी जवान पर आने के कारण आपे से बाहर हो रहा हो। मन मूमति होस मसूमनहीं फिर कोठनि ।-देव ।। यौवन मद से भरा हुआ। जैसे, मस्त हाथी, मस्त औरत। मसूमना-कि० अ० [हिं० मरोकना या फा० अफसोस, पं० मसंम?] (४) जिसमें मद हो। मदपूर्ण । जैसे, मस्त आँखें। (५) (1) पैठना । रोकना । बल देना । (२) निछोडना 1 (३) परम प्रसन्न । एन । आनंदित । जैसे,-वह अपने वाल- किवी मनोवेग को रोकना । जबत करना । (१) मन ही मन बच्चों में ही मस्त रहता है । (६) अभिमामी । धर्मशी। रंज करना । कुदना । कल्पना। (इस अर्थ में यह शब्द जैसे,—आज कल ये मज़दूर मस्त हो रहे हैं, इनसे काम बहुधा मन शब्द के साथ आता है।) उ.-(क) डाँट लेना कुछ सहज नहीं है। दीजिये, हम मन ही मन मसूसकर रह जाय। राधाकृष्ण- मस्तक-संज्ञा पुं० [सं०] सिर । उ.--मस्तक टीका काँध जनेऊ । दास । (ख) सोवति सजीवति न दूसति न तूपनि मसूसति कवि विआस पंडित सहदेऊ ।-जायसी। रिसाति रस रूसति हँसति सी।-देव। मस्तकी-संज्ञा स्त्री० दे० "मस्सग"। मसूण-वि० [सं०] जो रूम्बा या कदा न हो। चिकना और मस्तगी-संज्ञा स्त्री० [अ० मस्तकी ] एक प्रकार का बदिया पीला मुलाप्रम। गोंद जो भूमध्यसागर के आस पास के प्रदेशों में होनेवाली मम्मोढ़ा-संज्ञा पुं० । देश.] सोना, चाँदी आदि गलाने की । एक प्रकार की सदायहार शादी के तनों को पायकर निकाला घरिया । ( कुमाऊँ) जाता है; और जो अपने उत्पत्ति-स्थान रूम के कारण प्रायः संज्ञा पुं० दे० "मम्मूगा"। "रूमी मस्तगी" कहलाता है। यह गोंद वार्निश में मिलाया मम सना-कि० अ० दे० "मसूपना"। जाता है और ओपधि-रूप में भी काम में आता है। दांतों मनौदा-संच पुं० [अ० मसविदा ) (१) काट छाँट करने, दोह के अनेक रोगों में यह बहुत उपकारी होता है। इससे दातों राने और साफ़ करने के उद्देश्य में पहली बार मिला हुआ का हिलना, पीदा, दुर्गन्धि आदि दूर होती है। और भी लेख । खर्रा । मसविदा । (२) उपाय । युक्ति । तरकार। कई रोगों में इसका व्यवहार किया जाता है। मुहा०-मसौदा गाँठना या बाँधना कोई काम करने की युक्ति मरतरी-संशा स्त्री० [सं० मा ] धातु गलाने की भट्ठी । (शाह- या उपाय सोचना । तरकीब निकालना। जहाँपुर )। यो०-मसौदेबाज । , मरताना-वि० [फा० मस्तानः ] (१) मस्तों का सा। मस्तों की मसौदेबाज-संज्ञा पुं० [अ० मसौदा+फ्रा बान (प्रत्य॰) । (१) बह तरह का । जैसे, मस्ताना चाल । (२) मस्त । मत्त। जो अच्छा उपाय निकालता हो । अच्छी युक्ति सोचनेवाला । कि० अ० [ फा मस्त+आना (प्रत्य॰)] मस्ती पर आना। (२) धूर्स । चालाफ । मस्त होना । मत होना। मस्कर-संज्ञा पुं० [सं० 1 (9) वंश । खानदान। (२) गति। संयोकि०-जाना । (३) ज्ञान । क्रि० स०-मस्ती पर लाना । मरत करना । मत्स करना। मस्करा*-संज्ञा पु० दे० "सम्पखरा"। . संयोगक्रि०-देना। मस्करी-संशा पुं० [सं० मस्करिन् ] (१) वह जो चौथे आश्रम में . मस्तिक-संज्ञा पुं० दे. "मस्तिष्क"। हो। संन्यासी । (२) भिक्षु । (३) चन्द्रमा । मस्तिशी-संज्ञा स्त्री० दे० "मस्तगी"। संज्ञा स्त्री० दे० "मसखरी"। । मस्तिष्क-संज्ञा पुं० [सं०] (1) मस्तक के अंदर का गूदा । मस्का -संज्ञा पुं० [अ०1 (1) मक्खन । नवनीत । (२) दे. "मर.का"। भेगा। मगज। मस्कुर-संशा पुं० दे. "मसूड़ा"। विशेष-कहा जाता है कि भोजन का परिपाक होने पर जो मसवरा-संज्ञा पुं० दे. "मसखरा"। रख बनता है, वह क्रमशः मस्तक में पहुँचकर स्मिन्ध रूप मस्जिद-संज्ञा स्त्री० दे० "मसजिद"। उ.-क्या भी धजू व धारण करता है और उसी के द्वारा स्मृति और बुरि काम मज्जन कीन्हें क्या मस्जिद सिर नाये । दया कपट निमाज करती है। उसी को "मस्तिरक" कहते है। गुजार कह भो मका जाये। कबीर । (२) बुद्धि के रहने का स्थान । दिमाग । मरत-वि० [फा०, मि० सं० मत्त ] (1) जो नशे आदि के कारण : मस्ती-संशा स्त्री० [ 10 ] (1) मरत होने की क्रिया या भाव। मस हो। मतवाला । मदोन्मत। जैसे,---वह दिन रात : मत्तता । मतवालापन । शराब में मस्त रहता है। (२) जिसे किसी बात का पता ' क्रि०प्र०-आना-उतरना ।-चदना ।-दिखाना। न लगता हो । जिसे किपी की चिन्ता या परवाह न होती मुहा०-मस्ती भवना-मस्ती दूर होना । मस्सी मारना हो। सदा प्रसन्न और निधिन्स रहनेवाला। (३) जो अपनी मस्ती दूर करना ।