पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/४४५

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मालहायन २७३६ मालालिका मालहायन-संज्ञा पुं० [सं०] एक गोत्र-प्रवर्तक ऋषि का नाम । रंग टेसू और नासफल से बनाया जाता है । सेर भर टेसू मालांक-संशा पुं० [सं० ] भूस्तृण । का फूल पानी में आठ दिन तक भिगोया जाता है जिसे माला-संज्ञा स्त्री० [सं०] (1) पंक्ति । अवली । जैसे, पर्वतमाला। दिन में दो बार चलाया जाता है। इसी प्रकार आध सेर (२) फूलों का हार । गजरा । नासफल की बुकनी पानी में भिगोई जाती और प्रतिदिन विशेष-मालाएँ प्रायः फूलों, मोतियों, काठ वा पत्थर के दो यार चलाई जाती है। फिर आठ दिन बाद दोनों के मनकों, कुछ वृक्षों के बीजों अथवा सोने, चाँदी आदि धातुओं रंग अलग अलग छान लिए जाते और फिर मिला दिए से बने हुए दानों से बनाई जाती हैं। फूल या मनके आदि जाते हैं। फिर इसमें डेढ़ माशे हरा रंग मिला दिया जाता धागे में गुथे होते हैं और धागे के दोनों छोर एक साथ है और तब उसमें दो बार कपड़ा रंगा जाता है। सुगंध किसी बड़े फूल वा उसके गुच्छे वा दाने में पिरोकर बाँध के लिए इसमें कपूरकचरी की जड़ भी पीसकर मिलाई दिए जाते हैं। मालाएँ प्राय: शोभा के लिए धारण की जाती जाती है। हैं। भिम भिन्न संप्रदायों की मालाएँ भिन्न भिन्न आकार वि. मालागिरी रंग में रंगा हुआ। और प्रकार की होती है और उनका उपयोग भी भिन्न होता. मालागुण-संज्ञा पुं० [सं०] गले का हार । है। हिंदुओं को जप करने की मालाएँ १०८ दानों या मालागुणा-संज्ञा स्त्री० [सं०] एक प्रकार का असाध्य रोग जिसे मनकों की अथवा इसके आधे, चौथाई वा छठे भाग की लूता कहते हैं। होती है। भिन्न भिन्न संप्रदायों के लोग भिन्न भिन्न पदार्थों मालातृण-संज्ञा पुं० [सं०] भूस्तृण । की मालाएँ धारण करते हैं। जैसे, वैष्णव तुलसी की, शैव मालादीपक-संशा पुं० [सं०] एक अलंकार का नाम । इसमें रुद्राक्ष की, शाक्त रक्तचंदन, स्फटिक वा रुद्राक्ष की तथा एक धर्म के साथ उत्तरोत्तर धर्मियों का संबंध वर्णित होता अन्य संप्रदाय के लोग अन्य पदार्थों की मालाएँ धारण है या पूर्व-कथित वस्तु को उत्तरोत्तर वस्तु के उत्कर्ष का करते है। वह माला जिएरमें अठारह या नौ दाने होते हैं, हेतु बतलाया जाता है। इस अलंकार को कविराज मुरारिदान सुमिरनी कहलाती है। ने संकर अलंकार माना है और इसे दीपक तथा शृंखला- पा-मालप । स्रक । मालिका । गुणिका । गुणं तिका । लंकार का समुच्चय कहा है। उ०-रस सो काव्य अरु मुहार-माला फेरना--जपना । जप करना । भजन करना । काय्य सों सोहत बच्चन महान । वाणी ही सो रसिकतन (३) समूह । झुंड । जैसे, मेघमाला । (४) एक नदी का तिन सों समा सुजान। नाम । (५) दूब । (६) भुई आँवला । (७) उपजाति छंद 'मालादूर्वा-संज्ञा स्त्री० [सं०] एक प्रकार की दूब जिसमें बहुत के एक भेद का नाम । इसके प्रथम और द्वितीय चरण में .. सी गाँठे होती हैं। इसे गंड दूर्वा भी कहते है। ग्रक में जगण, तगण, जगण और अंत में दो गुरु तथा तीसरे और इसका स्वाद मधुर, तिक्त और गुण पित्त तथा कफ-नाशक चौथे चरण में दो तगण, फिर जगण और अंत में दो गुरु माना गया है। होते हैं।(6) काठ की लंबी डोकिया जिसमें बच्चों के मालाधर-संज्ञा पुं० [सं०] सत्रह अक्षरों के एक वनिक वृत्त लगाने का उबटन और तेल आदि रखा जाता है। का नाम जिसके प्रत्येक चरण में नगण, सगण, जगण फिर मालाकंठ-संशा पुं० [सं०] (1) अपामार्ग। (२) एक गुल्म सगण और यगण और अंत में एक लघु और फिर गुरु होता का नाम । है । उ०-फिरत हम साथ बंधु तुम्हरीहि चिंता भरे । मालकंद-संशा पुं० [सं०] एक प्रकार का फंद । वैद्यक में इसे मालाधार-संज्ञा पुं० [सं०] दिव्यावदान के अनुसार बौद्धों के तीक्ष्ण, दीपन, गुल्म और गंडमाला रोग को हरनेवाला : एक देवता का नाम । तथा वात और कफ का नाशक लिखा है। मालाप्रस्थ-संज्ञा पुं० [सं०] एक प्राचीन नगर का नाम । पर्या०-मालकंद। वलकंद । पंक्तिकंद । त्रिशिखदला। मालाफल-संज्ञा पुं० [सं०] रुद्राक्ष । ग्रंथिदला । कदलता। . मालामंत्र-संज्ञा पुं० [सं०] एक प्रकार का मंत्र । मालाकार-संज्ञा पुं० [सं०] [स्त्री० मालाकारी] (1) पुराणा- मालामणि-संशा पुं० [सं०] रुद्राक्ष । नुसार एक वर्णसंकर जाति का नाम । ब्रह्मवैवर्त पुराण के मालामनु-संज्ञा पु० [सं०] माला-मन्न। अनुग्मार यह जाति विश्वकर्मा और श्रद्धा से उत्पन्न है पर मालामाल-वि० [फा०] धन-धान्य से पूर्ण । संपन्न । पराशर पद्धति के अनुसार यह तेलिन और कर्मकार से उत्पन्न मालारिष्ठा-संज्ञा स्त्री० [सं०] पाटी लता जिसके पत्तों की गणना है। (२) माली। सुगंधि दध्य में होती है। मालागिरी-संज्ञा पुं० [हिं० मलयागिरि ] एक रंग का नाम । यह मालालिका-संज्ञा सी० [सं०] गृका । असवरग ।