पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/४७६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

मुँहप्रखरी २७६७ मुअम्मा मुँहश्रखरी* -वि० [हिं० मुँह+अक्षर ] जो केवल मुंह से कहा महबंद-वि० [हिं० मुंह+बंद1 (8) जिसका मुंह बंद हो, खुला जाय, लिखा न जाय । जबानी । शाब्दिक। न हो। जैसे, मुँहवंद बोतल । (२) कुंआरी। अक्षत- मुँहकाला-संशा पुं० [हिं० मुँह+काला] (1) अप्रतिष्ठा बेज़ती। योनि । ( बाजारी) (२) बदनामी । (३) एक प्रकार की गाली । जैसे,—जा मुँहबंधा-संज्ञा पुं० [हिं० मुंह+धना ] जैन साधु जो प्राय: मुंह तेरा मुँह काला हो। पर कपड़ा बांधे रहते हैं। मुँहचटौघल-संज्ञा स्त्री० [हिं० मुंह+चाटना+औवल (प्रत्य॰)] : मुँहबोला-वि० [हिं० मुँह+बोलना ] (संबंधी ) जो वास्तविक (७) चुबन । चूमाचाटी । (२) यक कक । बकवाद। न हो, केवल मुँह से कहकर बनाया गया हो। बचन द्वारा मुँहचार-संज्ञा पुं० [हिं० मुंह+चार ] वह जो तृसरों के सामने निरूपित । जैसे, मुँहबोला भाई, मुँहबोली बेटी। जाने से मुंह छिपाता हो। लोगों के सामने जाने में संकोच मुँहभराई-संज्ञा स्त्री० [हिं० मुंह+भरना+आई (प्रत्य॰)] (१) मुंह करनेवाला। भरने की क्रिया या भाव । (२) वह धन आदि जो फिली मुँहछुआई-संज्ञा स्त्री० [हिं० मुंह+छूना+आई (प्रत्य॰)] केवल का मुँह बंद करने के लिए, उसे कुछ कहने था करने से मुंह छुने के लिए, ऊपरी मन से कुछ कहना । रोकने के लिए, दिया जाय । रिश्वत । घूस । मुंहछुट-वि० [हिं० मुँह-+छूटना ] जिसका मुँह ओछी या क्टु क्रि० प्र०-देना।-लेना। बातें कहने के लिए खुला रहे । मुँहफट । मैंहमांगा-वि० [हिं० मुंह+मांगना ] अपनी इच्छा के अनुसार । मुँहजोर-वि० [हिं० मुंह+जोर ] (१) वह जो बहुत अधिक अपने मांगने के अनुसार । इच्छानुकूल । जैसे, मुँह माँगा बोलता हो। यकवादी । (२) दे० "मुँहफट"। (३) जो घर पाना । मुंह मांगी मुराद पाना । मुँह मांगा दाम जल्दी किली के वश में न आता हो। तेज । उइंड। पाना । मुँह मांगी मौत नहीं मिलती। (कहा.) जैसे, मुंहजोर घोड़ा। मुँहामुँह-क्रि० वि० [हिं० मुंह+मुंह ] मुंह तक । अंदर से बिल- मुँहजोरी-संशा स्त्री० [हि मुंहजोर+ई (प्रत्य॰)] (१) मुंहलोर । कुल ऊपर तक । लबालव । भरपूर । जैसे,—(क) गगरा होने की क्रिया या भाव। (२) तेजी। उहंडता। मुँहामुँह तो भरा है, और पानी क्यों डालते हो ? (ख) मुँहदिखलाई-संज्ञा स्त्री० दे० "मुंहदिखाई"। अब की एक ही वर्षा में तालाब मुँहामुंह भर गया। मुंह दिखाई-संज्ञा स्त्री० [हिं० मुंह+दिखाई ] (1) नई वधू का मुँहासा-संशा पुं० [हिं० मुंह+आसा ( प्रत्य॰) । मुँह पर के वे मुँह देखने की रस्म । मुंह देखनी। (२) वह धन जो दाने या फुपियाँ जो युवा अवस्था में निकलती है और मुँह देखने पर वधू को दिया जाय। यौवन का चिह्न मानी जाती हैं। इनसे चेहरा कुछ भहा हो मुँहदेखा-वि० [हिं० मुह+देखा ] [ स्त्री० मुँहदेखी] (1) केवल जाता है। इन्हें हादसा' भी कहते हैं। ये केवल युवावस्था सामना होने पर होनेवाला (फाम या व्यवहार )। जो में ही २० से २५ वर्ष तक प्रकट होती हैं। इसके पूर्व या पर हार्दिक या आंतरिक न हो। जो किसी को केवल संतुष्ट या बहुत कम रहती हैं। प्रसन्न करने के लिए हो। जैसे, मुंहदेखी बात । (२) सदा मुश्रज्जन-संज्ञा पुं० [अ० ] वह जो मसजिद में नमाज़ के समय आज्ञा की प्रतीक्षा में रहनेवाला । सदा मुंह ताकता : अज़ान देता है। नमाज़ के लिए सव लोगों को पुकारने रहनेवाला। वाला। मुँहनाल-संशा स्त्री० [हिं० मुंह+नाल=नली ] (1) धातु की 'मुअत्तल-वि० [अ० ] (१) जिसके पास काम न हो। खाली। बनी हुई वह नली जो हुक्के की सटक या नै आदि के अगले (२) जो काम से कुछ समय के लिए, दंड-स्वरूप, अग भाग में लगा देते हैं और जिसे मुँह में लगाकर धूमा कर दिया गया हो। खींचते हैं। (२) धातु का वह टुकड़ा जो म्यान के सिरे पर: क्रि० प्र०-करना । होना। लगा होता है। मुअत्तली-संज्ञा स्त्री० [अ० मुअत्तल+ई (प्रत्य॰)] (1) मुअत्ता मुँहपड़ा-संज्ञा पुं० [हिं० मुंह+पना ] वह जो सब लोगों के होने का भाव । बेकारी । (२) काम से कुछ दिन के fine मुंह पर हो। प्रसिद्ध । मशहूर । (क.) अलग कर दिया जाना। मुँहफट-वि० [हिं० मुंह+फटना ] जो अपनी जबान को वश में | मुअम्मा-संज्ञा पुं० [अ०] (1) रहस्य। भेद । न रख सके और जो कुछ मुँह में आवे, कह दे। ओछी या मुहा०--मुअम्मा खुलना या हल होना रहस्य खुलना । भेद कटु बात कहने में संकोच न करनेवाला । जिसकी वाणी प्रकट होना। संयत न हो । बोलने में इस बात का विचार न करनेवाला (२) पहेली। (३) धुमाव-फिराव की बात । ऐसी बात कि कोई बात किसी को बुरी लगेगी या भली । पद-जबान । जो जल्दी समझ में न आवे ।