पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/४८८

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मुदिर की नायिका जो पर-पुरुष-प्राति संबंधी कामना की मुदत-संभा स्त्री० [अ०] (1) अवधि । जैसे,—इस हुंडी की आकस्मिक प्राप्ति से प्रसन्न होती है। उ०—रखि प्रेमवश मुक्ष्त पूरी हो गई है। पर पुरुष हरपि रही मन मैन । तय लगि मुकि आई घटा मुहा०-मुहत काटना=यांक माल का मूल्य अवधि में पहले देने अधिक अँधेरी रैन।-नाकर । (२) हर्ष । आनंद । (३) पर अवधि के बाकी दिनों का मृद करना । (कोलीवाला ) योग शाला में समाधि योग्य संस्कार उत्पन करनेवाला एक (२) बहुत दिन । अरसा । जैसे,—पाद मुहत के आज परिकर्म जिसका अभिप्राय है-पुण्यात्माओं को देखकर हर्ष । आपकी शक्ल दिग्याई दी है। उत्पन्न करना। (ये परिकर्म चार कहे गए हैं-मैत्री, ' मुहती--वि० [अ० मत + (अन्य)] वह जिसके साथ कोई करुणा, मुदिता और उपेक्षा) मुहत लगार हो। वह जिसमें कोई अवधि हो । जैसे,- मुदिर-संक्षा पुं० [सं०] (1) वादल । मेघ । उ०-(क) धाराधर मुद्दती हुंडी-4 मिका रुपया छ निश्चित समय पर जलधर जलद जग-जीवन जीमूत । मुदिर बलाहक तदितपति देना पड़े। परजन जश-सुपूत ।-नंददास । (ख) कर मतिरामदीने मुद्दाअलेह-संज्ञा पुं० [अ० ] वह जिनके ऊपर कोई दावा किया दीरथ दुरदद मुदिर में मेदुर मुदित मतवारे हैं।-: जाय। वह जिस पर कोई मुकदमा चलाया गया हो। मतिराम। (२) वह जिसे काम-वासना बहुत अधिक हो। प्रतिवादी। कामुक । (३) मंढक। मुहालेह-संशा पुं० दे० "महाअलेह"। मुग-संज्ञा पुं० [सं०] मूंग नामक अ जिससे दाल बनाई जाती मुद्ध-वि० दे. "मुग्ध"। है। वि० दे० 'मैंग"। मुद्रण-संगा पं० [ 10 ] (१) किसी चीज़ पर अक्षर आदि अंकिन मुद्गगिरि-संज्ञा पुं० [सं० ] मुंगेर और उपके आस पास के करना । छाई। (२) टप्पे आदि की सहायता से अंकित प्रांत का प्राचीन नाम। करके मुद्रा तैयार करना । (३) ठीक तरह से काम चलाने मुद्गला-संशा स्त्री० [सं०] मुद्गपर्णी । बनमूंग । के लिए नियम आदि बनाना और लगाना। मुद्गपर्णी-संशा स्त्री० [सं०] बनमूग । मुगवन । मुद्रणा-संज्ञा स्त्री० [सं० ] अँगूठी। मुद्गभोजी-संशा पुं० [सं० विभाजिन् ] घोड़ा । मद्रणालय-संar पुं० [सं० ) (१) यह स्थान जहाँ किसी प्रकार मुद्गर-संज्ञा पुं० [सं०] (१) काठ का बना हुआ एक प्रकार का का मुद्रण होता हो। (२) छापाग्वाना । प्रेम। गावदुमा दंड जो मुड की ओर पतला और आगे की ओर मद्रांक-संज्ञा पुं० [सं०] मुद्रा पर का चिह । बहुत भारी होता है। इसे हाथ में लेकर हिलाने हुए मद्रांकन-संशा पुं० [सं०11 वि. गद्रांकिन ] (1) किया प्रकार पहलवान लोग कई तरह की कसरत करते है। इससे की मुद्रा की सहायता में अंकित करने का काम । (२) कलाइयों और बाँहों में पल आता है। इसकी प्राय: जोड़ी | छापने का काम । छपाई। होती है जो दोनों हाथों में लेकर बारी बारी से पीठ के पीछे मद्रांकित-वि० [सं०] (5) मोहर किपा हुआ। (२) जिक से घुमाते हुए सामने लाकर तानी जाती है। मुगदर। शरीर पर विष्णु के आयुध के चिह्न गरम लोहे मे दागकर क्रि० प्र०-फेरना ।—हिलाना। बनाए गए हों। ( वैष्णव ) (२) प्राचीन काल का एक अस्त्र जो दंड के आकार का होता | मद्रा-संज्ञा स्त्री० [सं०] (1) किसी के नाम की छाप । मोहर । था और जिसके सिरे पर बड़ा भारी गोल पत्थर लगा , उ०—मुद्रित समुद्र सात मुद्रा निज मुद्रित के, आई शिथि होता था। (३) एक प्रकार की 'चमेली । मोगरा । (१) दमो जाति सेना रघुनाथ की।-केशव । (२) रुपया, एक प्रकार की मछली। अशरफी आदि । सिक्का। (३) अंगूठी। छाप । छया। मगल-संज्ञा पुं० [सं०] (1) रोहिप नामक तृण। (२) एक! उ.-धनचर कौन देश त आयो। कह व राम कहीं व गोत्रकार मुनि का नाम, जिनकी स्त्री इंद्रसेना थी। (३) लछिमन क्यों करि मुद्रा पायो ।-सूर । (४) टाइप के छपे एक उपनिषद् का नाम । हुए अक्षर। (५) गोरखपंथी साधुओं के पहनने का एक मुद्गष्ट-संज्ञा पुं० [सं०] मुगवन । यन-मुंग। कर्णभूषण जो प्राय: काँच वा स्फटिक का होता है। यह महआ-संशा पुं० [अ० ] अभिमाय । तात्पर्य । मसलन । । कान की लौ के बीच में एक बड़ा छेद करके पहना जाता है। मुद्दई-संज्ञा पुं० [अ० ] [ सी० मुद्दश्या ] (1) दावा करनेवाला । उ.--(क) थंगी मुदा कनक खपर ले करिही जोगिन भेय। दावादार । वादी। (२) दुश्मन । बैरी । शत्रु। उ०-मोहन —सूर । (ख) भसम लगाऊँ गात चंदन उतारों तात, कुंडल मीत समीत गो लखि तेरो सनमान । अब सुदगा दे तू उतारों मुद्रा कान पहिराय छौं ।हनुमान। (१) हाय, चल्यो अरे मुद्दई मान ।-पमाकर । पात्र, आँस्त्र, मुंह, गईन आदि की कोई स्थिति । (७)