पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/५०४

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२७९५ छाल बड़ी चमकीली तथा चिकनी होती है। सींक से यह क्रि० प्र०-देना ।-लेना। छाल उतारकर बहुत सुदर मुंवर इलियाँ खुनी जाती हैं। मूक-वि० [सं०] (1) जिसके मुंह से अलग अलग वर्णन मुंज प्रायः ऊँचे ढालुएँ स्थानों पर बगीचे की बादों या ऊँधी निकल सकते हों। गूंगा। अवाक् । उ.---मूक हो मेड़ों पर लगाई जाती है। मूंज बहुत पवित्र मानी जाती थाचालु पंगु चई गिरिवर गहन |-तुलसी। है। ब्राह्मणों के उपनयन संस्कार के समय बटु को मुंज विशेष-सुश्रुत ने लिखा है कि गर्भवती को जिस वस्तु के मेखला (मूंज की करधनी) पहनाने का विधान है। खाने की इच्छा हो, उसके न मिलने से वायु कुपित होता है प-०- मौंजीतृण । प्राह्मण्य । सेजनाय । पानीरक । मुंज और गर्भस्थ शिशु कुबड़ा, गूंगा इत्यादि होता है। नक । शीरी। दर्भाहय । उरमूल । हदमूल । बटुप्रज। (२) दीन । विवश । लाचार । रंजन । शत्रुभंग। संक्षा पुं० (1) दैत्य । दानव । (२) तक्षक के एक पुत्र मुंडा-संज्ञा पुं० [सं० मुंड] सिर । कपाल । उ०-(क) तुलसी का नाम । की बाजी राखी राम ही के नाम, नत भेंट पितरन को न मूकता-संज्ञा स्त्री० [सं०] गूंगापन । मुंह में बारु है।-सुलसी। मुफना*-क्रि० स० [सं० मुक्त ] (1) दूर करना । अलग मुहा०-मूंद चढ़ना=ढिठाई करना। सिर चढ़ना । मूड चढ़ाना करना । छोलना । त्यागना । उ०-(क) पाल्यो तेरे टूक को ढीठ करना । निडर कर देना । सिर चढ़ाना । मूंग मारना परेर चूक मूकिये न कूर कौड़ी दू को ही आपनी ओर बहुत हैरान होना । बहुत कोशिश करना। उ.-मूंग मारि हेरिये ।-सुलसी । (ख) अय जोर जरा जरि गात गयो मन हिय हारि के हित हेरि हहरि अब घरन सरन तकि आयो।। मानि गलानि कुवानि न मूकी।--तुलमी । (२) बंधन -तुलसी।मूंस मुबाना संन्यासी होना । वि० दे० "सिर"। खोलना । बंधन हटाना। (३) बंधन खोलकर मुक्त करना। इकटा-संज्ञा पुं० [हिं० मूंड+काटना ] दूसरे का सिर काटने बंधन से छुड़ाना। वाला । दूसरे की हानि करनेवाला । धोखा देकर दूसरे को मुकाविका संज्ञा स्त्री० [सं०] (1) दुर्गा का एक नाम । (२) नुकसान पहुँचानेवाला। एक प्राचीन नगरी का नाम । मुंडन-संज्ञा पुं॰ [सं० मुंडन ] मुंडन जिसमें बालक के चाल पहले मूका-संशा पुं० [सं० मूषा=गवाक्ष ] (१) किसी दीवार के आर पहल मुंहाए जाते हैं। चूदाकरण संस्कार । पार घना हुआ छेद । (२) छोटा गोल झरोखा । मोखा । मुंडना-क्रि० स० [सं० मुंडन ] (1) सिर के बाल बनाना । हजा. उ.-मूका मेलि गहे जु छिन हाथ न छोड़े हाथ ।- मत करना । (२) धोखा देकर माल उपाना । ठगना। बिहारी। जैसे,-उसने 10) तुमसे मूंद लिए । (३) भेदों के शरीर संज्ञा पुं० [हिं० मुक्का ] बंधी हुई मुट्ठी का प्रहार । चूसा। पर से ऊन कतरना । (१) चेला बनाना । दीक्षित करना। मुकिमा-संज्ञा स्त्री० [सं०] मूकता । शृंगापन । जैसे, चेला बना। मूखना*-क्रि० स० दे. "मूमना"। मूंडी-संशा स्त्री० [सं० मुंड ] (1) सिर । मस्तक । मूचना*-क्रि० स० दे० “मोचना"। मुहा०—मूंदी काटे स्त्रियों की बोलचाल में पुरुषों के लिए एक | मुज़ी-संज्ञा पुं० [अ०] कष्ट पहुँचानेवाला । दुष्ट । दुर्जन । खल । गाली । मूंदी मरोदना-(१) गला दबाकर मार डालना । (२) मूठ-संज्ञा स्त्री० [सं० मुष्टि, प्रा. मुहि] (१) उँगलियों को मोद धोखा देकर हानि पहुंचाना । कर बाँधी हुई हथेली । मुष्टि । मुट्ठी । वि० दे० "मुट्ठी"। (२) किसी वस्तु का शिरोभाग (जो मूंके आकार का हो)। मुहा--मूठ करना-तांतर, बदेर आदि को मुठ्ठी में पकड़कर मुंडीबंध-संज्ञा पुं० [हिं० मूंडी+बंध ] कुश्ती का एक पेंच जिसमें उनके शरीर में गरमी पहुँनाना जिससे उनमें बल का आना एक पहलवान दूसरे की पीठ पर चढ़कर उसकी बगलों के माना जाता है। मूठ मारना=(१) कबूतर को मुठ्ठी में पकड़ना। नीचे से अपने हाथ ले जाकर उसकी गर्दन दबाता है। (२) हस्त-क्रिया करना। मुंदना-क्रि० स० [सं० मुद्रण ] (1) ऊपर से कोई वस्तु गल या (२) किसी औज़ार या हथियार का वह भाग जो व्यवहार फैलाकर किसी वस्तु को छिपाना । आपछादित करना। करते समय हाथ में रहता है। मुठिया। दस्ता । कसजा। बंद करना । बाँकना । जैसे, आँख मूंदना । उ. जैसे, तलवार की मूठ, छाते की मूठ, कमान की मूठ । मूदिय ऑखि फसहुँ कोउ नाहीं।-तुलसी । (२) छेद, उ.-(क) मूठि कुबुद्धि धार निठुराई। धरी कूबरी सान द्वार, मुँह आदि पर कोई वस्तु फैला या रखकर उसे बंद बनाई।-सुलसी । (ख) टूटि टाटि गोसा गए, कृटि फाटि करना । खुला न रहने देना। जैसे, नाक कान मूंदना, छेद मूठ गई, जेवरि न राखो जोर जानत जगत है। हनुम- मूंदना, सिषकी मूंदना, बड़े का मुँह मूंदना । मकs a nstead आ सके। (१) College of Arts & Commera. O..