पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/५१४

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मृगांक रस २८०५ मृतक कर्म विराट के सुरारि राजरांग जानि जू । निमित्त तासु वैव । मृगेंद्रास्य-संज्ञा पुं० [सं० } शिव । ज्यों जप्यौ मृगांक ठानि जू । -रघुनाथ दास । मृगेल-संशा स्त्री० [ देश. ] एक प्रकार की मछली जो संयुक्त प्रांत, मृगांक रस-संशा पुं० [सं०] एक प्रकार का रसौषध । बंगाल, पंजाब तथा दक्षिण की नदियों में पाई जाती है। विशेष—पारा एक भाग, सोना एक भाग, मोती दो भाग, इसकी आँखें सुनहरी होती है। यह डेढ़ हाथ के लगभग गंधक दो भाग और सोहागा एक भाग, इन सब चीजों को। लंबी होती है और तौल में नौ या दस सेर होती है। कॉजी में पीसकर नमक के भाँडे में रखकर चार पहर , मृगेश-संज्ञा पुं० [सं०] सिंह। पकाते हैं। चार रत्ती की मात्रा में सेवन करने से राजयक्ष्मा | मृगैर्वारु-संज्ञा पुं० [सं० ] श्वेतेंद्रवारुणी । सफ़ेद इंद्रायन । रोग नष्ट हो जाता है। राजमृगांक और महामृगांक इस भी मंगोत्तम-संज्ञा पुं० [सं०] मृगशिरा नक्षत्र । होते हैं, जिनमें व्यों की संख्या अधिक होती है। मुच्छकटिक-संज्ञा पुं० [सं०] संकृत का एक प्रसिद्ध नाटक । मृगा-संज्ञा स्त्री० [सं०] महदेई का पौधा। मृज-संज्ञा पुं० [सं०] मुरज नाम का याजा । मृगाझी-संशा स्त्री० [सं०] हरिण के से नेत्रोंवाली। मर-संज्ञा पुं० [सं०] [स्त्री० मृटानी ] शिव । महादेव । मगाजीव-संज्ञा स्त्री० [सं०] (1) वारणी लता । (२) महा-संभा स्त्री० [सं०] दुर्गा । पार्वती। उ०—मृदा चंडिका कस्तूरी। ___ अंबिका भवा भवानी सोय।-नंददास । मृगाद-संज्ञा पुं० [सं० ] सिंह, चीता, बाघ इत्यादि बन जंतु जो मुहानी-संज्ञा स्त्री० [सं०] दुर्गा। भवानी। पार्वती। उ.- मृगों को खाते हैं। अदेवी मृदेवीन की होहु रानी। करें सेव बानी मधौनी मृगादनी-संज्ञा स्त्री० [सं०] (1) इंद्रवारुणी । इंद्रायन । (२) मृडानी।-केशव । सहदेई । (३) ककही। | मुडीक-संशा धुं० [सं०] हिरन । मृगाराति-संज्ञा पुं० [सं० ] कुत्ता। मणाल-संज्ञा स्त्री० [सं०] (1) कमल का डंठल जिसमें फूल मृगाश, मृगाशन-संशा पुं० [सं० ] सिंह । उ०—(क) मूषकादि लगा रहता है । कमलनाल । उ०—(क) तौ शिव धनुष ग्रह में रहैं बहिर मृगाश शकुंतु । गो अश्वादिक जीव बहु मृणाल कि नाई। तोरहिं राम गणेश गोपाई।-तुलसी । जीवहि सब लघु जंतु ।-शंकर दि० वि०। (ख) दवति (ख) आई जु चलि गोपाल धरै ब्रजबाल बिशाल मृणाल सी द्रौपदी देखि दुशायन । जिमि वन में लखि मृगी मृगाशन । बाहीं।-माकर । (२) कमल की जब । मुरार। भसींच। (३) उशीर । खस । मृगित-वि० [सं० ] अन्यपित्त । | मृणालकंठ-संज्ञा पुं॰ [सं०] एक प्रकार का जलपक्षी। मृगिनी-संशा स्त्री॰ [ सं० मृग ] हरिणी । उ०—(क) ज्यौं | मणालिका-संज्ञा स्त्री० [सं०] कमल की इंठी । कमलनाल । मृगिनी वृक झुंड के वाया । त्यों ये अंधसुतन के बासा । उ.-भौरिन ज्यौं भैवत रहत बन धीथिकान, हसिनि ज्यों लल्लूलाल । (ख) मृग मृगिनी दुम बन सारस खग काहू मृदुल मृणालिका चहति है। केशव । नहीं बनायो री।-सूर । (ग) बाँसुरी को शब्द सुनिक लिनी-संज्ञा स्त्री० [सं० ] (१) कमलिनी । (२) वह स्थान यधिक की मृगिनी भई । —सूर । जहाँ कमल हों। (३) कमलों का समूह । मृगी-संज्ञा स्त्री० [सं० ] (1) भृग नामक वन्य पशु की माया । 'मणाली-संवा स्त्री० [सं०] कमल का उँटल । कमलनाल 130- हरिणी । हिरनी । उ०-मनहु मृगी मृग देखि दिया से।-. (क) धरे एक बेणी मिली मलमारी। मृणाली मनों पंक तुलसी । (२) एक वर्णवृत्त जिसके प्रत्येक चरण में एक सो कादिरी।-केशव । (ख) मैलते सहित मानों कंचन रगण (15) होता है। जैसे,-री प्रिया मान तू! मान की लता लोनी, पंक लपटानी ज्यों मृणाली दरसाई है। ना । ठान तू । इसे 'प्रिय वृत्त' भी कहते हैं। (३) कश्यप ऋषि की क्रोधवशा नाम्नी पत्नी से उत्पन्न दस कन्याओं में मृत-वि० [सं०] (1) मरा हुआ। मुर्दा । (२) माँगा हुआ। से एक, जिससे मृगों की उत्पत्ति हुई है और जो पुलह ऋषि थाचित । की पत्नी थी । (४) पीले रंग की एक प्रकार की कौड़ी मतकंबल-संशा पुं० [सं० ] वह कपड़ा जिससे मुर्दे को टॅकते है जिसका पेट सफेद होता है । (५) अपस्मार नामक रोग। कफन । (६) कस्तूरी। मृतक-संज्ञा पुं० [सं० ] (1) मरा हुआ प्राणी। मुर्दा । (२) मृगीपति-संशा पुं० [सं०] श्री कृष्ण । मरण का अशौच। मृगेंद्र-मंशा पुं० [सं०] सिंह। । मृतक कर्म-संज्ञा पुं० [सं० ] मृतक पुरुष की शुख गति के लिये मृगेंद्रचटक-संज्ञा पुं० [सं०] बाज पक्षी। किया जानेवाला कृत्य । प्रेम कर्म । जैसे, दाह, पारशी, ७०२