पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/५१५

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मृतकधूम २८०६ मृदंग दशगान इत्यादि । उ-तब सुग्रीवहि आयसु दीन्हा। मृत्तिका लवण-संज्ञा पुं॰ [सं० ] मिट्टी का लोना । (पुराने घरों मृतककर्म विधिवत् मन कीन्हा । —तुलसी । की मिट्टी की दीवारों पर सीब होने से एक प्रकार का मृतकधूम-संशा १० [ मं0 राख । भस्म । उ०—जम्यो गार भर नमक लग जाता है।) भर रुधिर ऊपर धृरि उड़ाय। जिमि अंगार रासीन्ह पर मृत्तिकावती-संज्ञा स्त्री० [सं०] नर्मदा के किनारे की एक प्राचीन मृतकधम रह छाय।-तुलसी। नगरी। (महाभारत) मतकातक-संज्ञा पु० [सं०] शृगाल । गीदड़। त्यंजय-संक्षा पुं० [सं०] (1) वह जिसने मृत्यु को जीत लिया मतजीव-मंशा पु० [ मं0 1(1) मरा हुआ प्राणी। (२) तिलक वृक्ष। हो । (२) शिव का एक रूप । (३) शिव का एक मंत्र मनजीवनी-मंशा मा [म.] (१) वह विद्या जिससे मुर्दे को जिसके विधिपूर्वक जपने से अकाल मृत्यु टल जाती है।। जिलाया जाता है । उ०-क्यों न जिवावै असुर-गुरु तम मृत्युंजय रस-संशा पुं० [सं० } ज्वर के लिए उपयोगी एक असुरै परभात । सन्ध्यावृत मृत-जीवनी विधा कही न रपौपध। जात । गमान । (२) दुधिया घाम । दुग्धिका । विशेष-पारा एक माशा, गंधक दोमाशे, सोहागा चार माशे, मतधर्मा-वि० [सं० मृतधर्मन् ] नष्ट हो जानेवाला। नश्वर । विष आठ माशे, धतूरे के बीज मोलह माशे तथा सोंठ, मतमत्त-संशा ५० [म. शृगाल । गीदद। मिर्च और पीपल दस दस माशे सात सात रसी, इन सबको मतवत्सा-वि० स्त्री० [सं०] (स्त्री) जिसकी संतति मर मर धतूरे की जड़ के रस में पीसकरमाशे माशे भर की गोलियाँ जाती हो। बना ले; और जैन्या चर हो, उसके अनुसार अनुपान के मतसंजीवन रस-संज्ञा पुं० [सं० ] एक रसीपध जिसका व्यवहार साथ सेवन करे। ___ ज्वर में होता है। • मृत्यु-संशा भी. [सं०] (१) शरीर से जीवात्मा का वियोग । मतसंजीवनी-मज्ञा स्त्री मं०] (1) एक बृटी जिसके विषय में प्राण टूटना । मरण । मौत । (२) यमराज । (३) ग्यारह यह प्रविन्द्व है कि इसके खिलाने से मुर्दा भी जी उठता है। रुद्रों में से एक । (४) विष्णु । (५) ब्रह्मा । (६) माया। उ.--मृतसंजीवनि औषधी अरु करनी संधान। अरु विशल्य (७) कलि । (८) फलित ज्योतिष में आठवाँ ग्रह । (५) करनी सुग्वद ल्यावहु द्रुत हनुमान।-रघुराज । (२) ज्वर कामदेव । (१०) एक साम मंत्र। (११) बौद्ध देवता का एक औपध जो सुरा के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। पद्मपाणि के एक अनुचर । मतसंजीवनी सुग-मशा झी, [ स० ] एक वाजीकरण औषध। मृत्युनाशक-संज्ञा पुं० [सं० ] पारा । मतसूत--संज्ञा पुं० [सं० ] रससिंदूर । मृत्युपा-संज्ञा पुं० [सं०] शिव । मतमूतक-संज्ञा स्त्री० [सं०] (1) मृत संतान उत्पन्न करनेवाली मृत्युपुष्प-संज्ञा पुं० [सं० ] (1) ईख । गन्ना । (२) केला । ___ स्त्री। (२) भस्म किया हुआ पारा । मृत्युफल-संशापु० [सं०] (१) केला। (२) महाकाल नाम की लता। मतम्नात-वि० [सं०] (1) जिसने किसी सजाति या बंधु के मृत्युपंधु-संज्ञा पुं० [सं०] यम। मरने पर उसके उद्देश्य से स्नान किया हो। (२) वह मुरादा, मृत्युबीज-संज्ञा पु० [सं०] याँस । जिस दाह के पूर्व स्नान कराया गया हो। मृत्युरूपी-संज्ञा पुं० [सं० मृत्युरूपिन् ] (1) यमदूत । (२) वर्ण- मतस्नान-संज्ञा पुं० [सं०] (1) किमी भाई बंधु के मरने पर माला का "श" अक्षर । किया जानेवाला मान । (२) मृतक का स्नान । मृत्युलोक-संज्ञा पुं० [सं०] (1) यमलोक 1 1 (२) मर्त्यलोक । मतामद-संशा पुं० [सं०] तुत्य । तृतिया । मृत्युसूति-संज्ञा स्त्री० [सं०] केकड़े की मादा ( जो अंडे देते ही मतालक-संशा पुं० [सं० 1 (3) अरहर । (२) गोपीचंदन । मर जाती है)। मताशौच-संज्ञा पुं० [सं०] वह अशीच (अपवित्रता ) जो मृत्स-वि० [सं०] चिपचिपा । किपी आत्मीय, संबंधी, गुरु, पड़ोसी आदि के मरने पर मुथा*1-क्रि० वि० (१) दे० "वृथा"। (२) दे० "मृषा"। लगता है और जिसमें शुद्ध होने तक ब्रह्मचर्य के साथ देव- मृद्-संज्ञा स्त्री० [सं०] मृत्तिका । मिट्टी। कर्म तथा गृहकर्म से अलग रहना पड़ता है। विशेष-इस शब्द का अधिकतर व्यवहार समस्त पद बनाने मुति-संगा स्त्री० [सं०] मरण । मृत्यु । __ में होता है। मृत्तिका संज्ञा स्त्री० [सं०] (१) मिट्टी । ग्वाक । उ०—(क) मृदंग-संशा पुं० [सं० ] (१) एक प्रकार का बाजा जो ढोलक से कंचन को मृतिका करि मानत । कामिनि काष्ठशिला पहिचा कुछ लया होता है । तबले की तरह इसके दोनों मुंहदे चमड़े नत ।---तुलसी । (ख) जथा हट तंतु घट मृत्तिका सर्प स्रग मे मड़े जाते हैं। इसका ढाँचा पक्की मिट्टी का होता है, दारु करि कनक कटकांगदादी।-तुलसी। (२) अरहर । इससे यह मृदंग कहलाता है। उ.---(क) बाजहिताल मृदंग