पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/५२५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

मेहरा मैथिली महग-शा पुं० [हि महग) () स्त्रियों की मी चेष्टावाला । (३) मलद्वार । गुदा । (४) ब्राह्मण ! (५) सूर्योदय के स्त्री-प्रकृतिवाला । जनखा । (२) स्त्रियों में बहुत रहनेवाला । समय के उपरांत उससे तीसरा मुहर्स । (६) प्राचीन काल (३) जुलाहों की घरखी का घेरा। की एक वर्णसंकर जाति । (७) मित्र का भाव । मित्रता । मांज्ञा पुं० [ मेहर (मूल पुरुष) ] खत्रियों की एक जाति । दोस्ती। (८) वेद की एक शारदा । मंहगव-संवा स्त्रा० [अ०] द्वार के ऊपर का अर्द्धमंडलाकार | वि० मिन-संबंधी । मित्र का। बनाया हुआ भाग। दरवाजे के ऊपर का गोल किया हुआ | मैत्रक-संज्ञा पु० [स. ] मित्रता । दोरती। हिस्सा। मैत्रम-संशा [सं०] अनुराधा नक्षत्र । विशेष-मेहराब बनाने की राति प्राचीन हिन्दू-शिल्प में मैत्राक्ष-सज्ञा पुं॰ [सं०] एक प्रकार का प्रेत । प्रचलित न भी। विदेशियों, विशेषतः मुसलमानों के द्वारा मैत्राक्षज्योतिक-संज्ञा पुं० [ स०] मनु के अनुसार एक योनि ही, इस देश में इसका प्रचार हुआ है। जिसमें अपने कर्त्तव्य में भ्रष्ट होने वाला वैश्य जाता है। मेहरावदार-वि० [अ०+फा . ] ऊपर की ओर गोल कटा हुआ । ' मैत्रायण-संज्ञा पुं० [सं०] (१) गृह्यसूत्र के प्रणेता एक प्राचीन (दरवाजा ) ऋषि । (२) मैत्र नामक वैदिक शाम्बा । मेहरारू-संज्ञा स्त्री. ( सं० महना । स्त्री औरत। मैत्रायणि-संशा पु० म०] एक उपनिषद् का नाम । मेहरिया -संज्ञा स्त्री. दे. "महरी"। मैत्रारुवणि-संज्ञा पुं० [सं०] (१) सोलह ऋत्विजों में से पाँचा महरी-संशा 1 [सं० मेहन। ] (1) स्त्री । औरत । (२) पस्त्री। ऋत्विज । (२) त्रि और वरुण के पुत्र, अगस्त्य । (कहते जोरू। 30-मेहरिन्ह संदुर मेला, चंदन देवरा देह । है कि उर्वशी को देखकर मित्र और वरुण दोनों देवताओं जायगी। का वीर्य एक जगह रखलित हो गया था। उसी वीर्य से मैं--सर्व० [ सं० अहं ] सर्वनाम उत्तम पुरुष में कर्ता का रूप । | अगस्त्य और वशिष्ठ इन दो ऋषियों का जन्म हुआ था।) स्वयं । खुद। | मैत्रि-संज्ञा पु० [ स०] एक वैदिक आचार्य जिनके नाम पर

  • अन्य० दे० "मैं"।

मन्युपनिषद् की रचना हुई है। मैंढला-संशा पु० [हिं० मैनफल ] मैनफल । मदनफल । मैत्री-संज्ञा स्त्री० [सं०] दो व्यक्तियों के बीच का मित्र भाव । मै*-अव्य. दे. "मय"। उ०-श्रम मौकर माँवरी देह लस मित्रता। दोस्ती। मैत्रीबल-संशा पु० [म. ] बुद्ध का एक नाम । (मैत्री, मुदिता मैका-सा पुं० दे. "मायका"। उ.---(क) नेवते गइलि नन· आदि योग के चार साधन कर्म हैं, जो बुद्ध को प्राप्त हो दिया मैके मासु । दुलहिनि तोरि ग्ववरिया आ आँसु। __ गए थे; इसी लिए उनका यह नाम पड़ा।) रहीम 1 (ग्व) तेरे मेके ते हम आये । तुव दिग जननी जनक मैत्रय-संज्ञा पुं० मं०] (१) एक बुद्ध का नाम जो अभी होने- पठाये ।-रघुराज । वाले हैं। (२) भागवत के अनुसार एक ऋषि का नाम जो मंगल-संज्ञा पुं० [सं० मदकल ] मत्त हाथी । मम्त हाथी । उ०-। पराशर के शिष्य थे और जिनम् विष्णुपुराण कहा (क) माधव ज मन मय ही विधि पोच । अति उनमत ! गया था। (३) सूर्य। (४) प्राचीन काल की एक वर्णसंकर निरंकुश मैगल चिंता-राहन असोच ।-सूर । (ब) ऐडति जाति जो वैदेह पिता और अयोगव माता से उत्पन्न कही अति पैड मध्य मत्त मैगल, सी, ग्वाय करि है बल पी गई है। इग्यका काम दिनरात की घड़ियों को पुकारकर लचति लचाक रुक ।-भुवनेश । (ग) भक्ति द्वार है साकरा बताना था। राई दम भाय । मन तो मैगल है रह्यौ कैसे होय समाय । | मैत्रयी-भज्ञा स्त्री० [सं०] (१) याज्ञवल्क्य की स्त्री का नाम जो -कबीर। ब्रह्मवादिनी और बड़ी पंडिता थी। (२) अहल्या का वि० मत्त । मस्त । ( हाथी के लिए) एक नाम। मैच-संज्ञा पुं० [अ० किसी प्रकार के गंद के सेल की अथवा | मैश्य-संशा पु० [सं० ] मित्रता । दोस्ती। इसी प्रकार के और किसी पहेल की बाजी। मैथिल-वि० [स] (1) मिथिला देश का । (२) मिथिला. मैजल *-संशा ना [ अ० भाजिल ] (1) उतनी दूरी जितना संबंधी। कोई पुरुष एक दिन भर धरकर तै करे । मंजिल । (२) संज्ञा पुं० (8) मिथिला देश का निवासी । (२) राजा जनक सफर । यात्रा । उ०—द्रीष्म ऋतु पुनि मैजल भारी। पद का एक नाम । झलकत झलका जनु बारी ।—विश्राम । मैथिली-सज्ञा स्त्री० [स. ] मिथिला देश के राजा की कन्या, मंत्र-संज्ञा पु. [ सं०] (१) अनुराधा नक्षत्र । (२) सूर्य-लोक। जानकी । सीता।