पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/५२४

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मेषकुसुम २८१५ मेहरबानी रहते हैं, तब तक बहुत प्रबल रहते हैं। उच्चांश काल वैशाख आदि के किनारे पर भी लोग शोभा के लिए एक पंक्ति में में प्रथम दस दिन तक रहता है। इसके उपरांत सूर्य इसकी टट्टी लगाते हैं। उच्चांश-च्युत होने लगते हैं। (३) एक लम जो सूर्य के मेष पर्या-नखरंज । कोकदंता । रागगर्भा । राशि में रहने पर माना जाता है। जैसे,—यदि किसी का महा-क्या पैर में मेहंदी लगी है ?-क्या पर काम में नः। जन्म सूर्य के मेष राशि में रहने पर होगा, तो कहा जायगा ला सकते जो उठकर नही आत ? मेहंदी रचना-मदी का कि उसका जन्म मेप लग्न में हुआ। अच्छा रंग आना । जैसे,—उसके पैर में मेहँदी खूब रचती

  • मुहा०-मेष करना-भान गष करना । मामा-छा करना । है । मेहँदी बाँधना-मदी का पत्तिया पामकर लगाना ।

संकल्प-विकल्प करन। । उ०—कियो अकर भोजन दुहुन संग महँदी रचाना-मेहंदी लगाना। मेहंदी लगाना-महमा का लै, नर नारी अज लोग गवै देव। मनो आए संग, देखि पत्तिया पासकर हथला या तलुए में लगाना । ऐसे रंग, मनहि मन परस्पर करत मेपै।-सूर। मह-संज्ञा पुं० [सं०] (1) प्रस्राव । मूत्र । (२) प्रमेह रोग। (४) एक ओषधि । (५) जीवशाक । सुमना । (३) मेष । मेढ़ा। मेपकुसुम-शा धुं० [सं०] चकद नाम का पौधा । चक्रमर्द। संशा पु० [सं० मघ, प्रा. मे ) (1) मेघ । बादल । (२) मेषपाल-गंज्ञा पुं० [सं०] गड़रिया । वर्पा । झड़ी। मेंह। मेषपुष्पा-म। ना. [ गं0 ] मेढ़ासिंगः । कि.प्र.--आना ।---पड़ना ।-बरपना । मेपलांचन-मापुं० [ 10 ] चक्रमर्द । चकवड़। मेहतर संभार { फा०] (1) बुजुर्ग । सबसे बड़ा । जैर-परदार, मेपवल्ली-शा सी. नं0 ] मेढागिः । शहज़ादा,मालिक,हाकिम,अमीरआदि। (२) । महतराना मपविषाणिका-में-स्त्रा. [ मं0 ] महाविंगी। नीच मुसलमान जाति जो झाड़ देने, गंदगी उठाने आदि मपवृषण-मक्षा पुं० [सं०] इंद्र का एक नाम । 30--मेष वृषण का काम करती है। मुसलमान भंगी। हालबोर । अस नाम शक को हहै सब संपारा । वृपण मेप देव | महन-संज्ञा पुं० [सं० ] (१) शिश्न । लिग । (२) मूत्र । मूत । पितरन को देहे तोहि अपारा -रघुराज । मेहनत-संशा त्री० [ अ.] मिहनत । श्रम । प्रयास । मं ग-नशा . [ सं . ] सिंगिया नामक स्थावर विष। क्रि० प्र०—करना ।-पदना।-लेना । —होना । मपथगी-संज्ञा स्त्री० [सं०] मेहासिंगी। महनताना-संज्ञा पु० [अ०+10 ] किसी काम की मजदूरी । मेष संक्रांति-सझा भी । सं0 ] मेष राशि पर सूर्य के आने का परिश्रम का मूल्य । जैसे,-वकील का महनताना। योग वा काल । महनती-वि० [अ० महनत ] मेहनत करनेवाला । परिश्रमी । विशेष-इसी दिन से मार मास के वैशाम्ब का आरंभ होता महना-सं. स्त्री० [सं०] महिला । स्त्री। है। इस दिन हिंदू लोग यत्त दान करते हैं, इससे इसे महमान-मा पु० [फा० | अतिथि । पाहुना। 'सतुआ संक्रांति' भी कहते हैं। मेहमानदारी-सशा स्त्री० [फा०] आतिथ्य । अतिथि-पत्कार । मंपांड-संशा पु० | सं• इंद्र। पहुनाई। मपा-संशा स्त्री० [सं०] (1) गुजराती इलायची । (२) चमड़े : महमानी-संशा स्त्री० [फा० मेहमान+ ई (प्रत्य०) । (१) आतिथ्य । का एक भेद जो ला भेग की खाल से बनता है। अतिथि-सत्कार । पहुनाई। मपालु-संज्ञा पुं० सं० | बरी । बन तुलसी। बबुई। मुहा०---मेहमानी करना-खूब गत बनाना । मारना-पीटना । मेपी-सशास्त्र | मं० ] (१) भेड़ । स्त्री मेष । (२) तिनिश वृक्ष। दंट देना । (व्यम्य) ] 30-नंदमहरि की कानि करति ही (३) जटामासी। मा तरु करति मेहमानी। -सूर । मसूरण-संज्ञा पुं० [सं०] फलित ज्योतिष में दशम लन जा 1 (२) मेहमान बनकर रहने का भाव । जैसे,—वह मेह- कर्म-स्थान कहा जाता है। मानी करने गए है। महँदी-संशा खा0 1 सं० मेन्धी ] पसी झाड़नेवाली एक झाड़ी महर-संज्ञा स्त्री० [फा०] मेहरबानी । कृपा । अनुग्रह । दया। जो बलोचिस्तान के जंगलों में आप से आप होती है और मेहरबान-वि० [सं०] कृपाल । दयालु । अनुग्रह करनेवाला। सारे हिंदुस्तान में लगाई जाती है । इत्पमें मंजरी के रूप , विशेष-बड़ों के संबोधन के लिए अथवा किसी के प्रति में सफेद फूल लगते हैं जिनमें भीनी भीनी सुगंध होती है। आदर दिखलाने के लिए भी इस शब्द का प्रयोग होता है। फल गोल मिर्च की तरह के होते हैं और गुच्छों में लगते । मेहरबानगी-संशा स्त्री० दे० "मेहरबानी"। हैं। इसकी पत्ती को पीसकर जाने से लाल रंग आता मेहरवानी-सशास्त्री० [फा०] दया। कृपा । अनुग्रह । है, इसी से स्त्रियाँ इसे हाथ-पैर में लगाती हैं। बगीचे: क्रि० प्र०—करना । —दिखलाना।-होना।