पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/५२७

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मैनाक २८१८ है। यह इसी बोली के लिए प्रसिद्ध है। सारिका । सारो। संशा पुं० (१) गर्द, धूल, किट्ट आदि जिसके पड़ने या जमने संशा सी० [सं० मेनका ] पार्वतीजी की माता, मेनका। से किसी वस्तु की शोभा या चमक-दमक नष्ट हो जाती संज्ञा पुं॰ [देश॰] एक जाति जो राजपूताने में पाई जाती है। मलिन करनेवाली वस्तु । मल। गंदगी । जैसे,—(क) है और "मीना" कहलाती है। उ.--(क) कुच उतंग घकी के पुरजों में बहुत मैल जम गई है । (ख) ऑग्ब या गिरिवर गद्यौ मैना मैन मवास ।-बिहारी। (स्थ) सुकवि कान आदि में मैल न जमने देनी चाहिए। गुलाब कहै अधिक उपाधिकारी मैना मारिमारि करे अखिल यौ०-मैलखोरा। अभूत काज । -गुलाब। महा-हाथ की मैल-तुच्छ वस्तु, जिसे जब चाहें तब प्राप्त कर मैनाफ-संज्ञा पुं० सं०] (१) पुराणानुसार एक पर्वत का नाम लें । जैसे, रुपया पैसा हाथ की मैल है। जो हिमालय का पुत्र माना जाता है। कहते हैं कि इंद्र से (२) दोष । विकार । जैसे,--मन-मैल मिटे, तन-तेज बढ़े, सरफर यह पर्वत समुद्र में जा छिपा था; इस कारण यह करे भंग अंग को मोटा । (गीत) अब तक सपक्ष है। लंका जाते समय समुद्र की आज्ञा से महा-मन में मैल रखना=मन में किसी प्रकार का दर्भाव या इसने हनुमान जी को आश्रय देना चाहा था। उ०—सिंधु वैमनस्य आदि रखना। पचन सुनि कान सुरत उठ्यौ मैनाक तव । -तुलसी । संज्ञा पुं० [देश० ] फीलवानों का एक संकेत जिसका पो०-हिरण्यनाम । सुनाभ । हिमवत् सुत । व्यवहार हाथी को चलाने में होता है। (२) हिमालय की एक ऊँची चोटी का नाम । मैलखोरा-वि० [हिं० मैल+फा खार खानेवाला ] ( रंग आदि) मैनापली-संशा स्त्री० [सं०] एक वर्णवृत्त जिसका प्रत्येक वरण जिस पर जमी हुई मैल जल्दी दिखाई न दे। मैल को चार तगण का होता है। छिपा लेनेवाला (रंग)। जैसे,----काला या खाकी रंग मैमंत-वि० [सं० मदमत्त ] (१) मदोन्मत्त । मतवाला । मैलखोरा होता है। उ.-कुंभ लसत दोज गज मैमता। (२) अहंकारी । संज्ञा पुं॰ (1) वह वस्त्र जो शरीर की मैल से शेष कपड़ों अभिमानी । उ०-(क) बारि बैस गई प्रीति न जानी। की रक्षा करने के लिए अंदर पहना जाय । जैसे, गंजी, तरुन मई मैमंत भुलानी।--जायसी। (ख) अरी ग्वारि । कमीज आदि । (२) काठी या जीन के नीचे रखा जाने- मैमंत बचन बोलत जो अनेरो।-सूर। वाला नमदा । (३) साबुन । मैया-संज्ञा स्त्री० [सं० मातृका, प्रा० मातृआ, माइआ ] माता । माँ। मैला-वि० [सं० मलिन, प्रा० मइल ] (१) जिस पर मेल जमी उ.--कहन लागे मोहन मैया मैया ।-सूर।। हो। जिस पर गर्द, धूल या कीट आदि हो। जिसकी मैयारी-संक्षा पुं० [हिं० मटियार ] एक प्रकार की मटियार जमीन चमक दमक मारी गई हो। मलिन । अस्वच्छ । साफ जो बहुत खराब होती है। का उलटा। मैग-संज्ञा पुं० [देश ] सोनारों की एक जाति। यौ० मैला-कुचैला ।। संज्ञा स्त्री० [सं० मृदर प्रा. मिअर-क्षणिक ] साँप के विष (२) विकार-युक्त । सदोष । दूषित । (३) गंदा । दुर्गंधयुक्त की लहर। उ०—(क) तोहि बजे विष जाइ चढ़ि आ संज्ञा पुं० (१) गलीज । गू। विष्ठा । (२) कूड़ा-कर्कट । जात मन मैर । बसी तेरे बैर को घर घर सुनियत धैर। - रसनिधि । (ख) ग्वेलि के फागु भली विधि सों तन सों मैलाकचैला-वि० [हिं० मैला+सं० कुचैलगंदा वल ] (1) जो रंग देखिये मैर मदो सो। बहुत मैले कपड़े आदि पहने हुए हो। (२) बहुत मैरा-संज्ञा पुं० [सं० मयर, प्रा. मयड़ ] खेतों में वह छाया हुआ मैला। गंदा।। मचान जिस पर बैठकर किसान लोग अपने खेतों की रक्षा : मैलापन-संज्ञा पुं० [हिं० मैला+पन (प्रत्य॰)] मैला होने का करते हैं। भास । मलिनता । गंदापन । मेरेय-संशा स्त्री० [सं०] (1) मदिरा । शराब । (२) गुरु और मैहर -संज्ञा पुं० [हिं० मही...मट्ठा ] वह तलछट जो धी वा धौ के फूल की बनी हुई एक प्रकार की प्राचीन काल की मक्खन को गरम करने पर नीचे बैठ जाती है। घी वा मदिरा । (३) एक में मिला हुआ आसव और मध जिसमें : मक्खन तपाने से निकला हुआ मट्ठा । ऊपर से शहद भी मिला दिया गया हो। संज्ञा पुं० दे. "नेहर"। मैलंद-संथा पुं० [प्रा० ] भ्रमर । भौंरा। मो*t-अन्य ० दे० "मैं" | उ.-तनपोषक नारि नरा सिगरे । मैलो-वि० [सं० मलिन, प्रा० माल ] मलिन । मैला । वि० दे० पर निदक ते जग मो बगरे। तुलसी। सर्व० खड़ी बोली के 'मुझ' के समान बज और अवधी में