पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/६०

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बगदना २३५३ बगराना विशेषस शम्बका प्रयोग बहुधा बोदों की चास संबंध नव मंद। नाभा । (ख) गोपिन के मंसुवन भरी सदा में ही होता है। पर कभी कभी हास्य या व्यंग्य में लोग उसोस अपार । गर गर नै रही बगर बगर के बार।- मनुष्यों के संबंध में भी बोल देते हैं। बिहारी । (ग) मैं तो चाहे छादों पै मोंको यह न छाबत बगदना-कि० अ० [सं० विकृत, हिं० विगढ़ना] (1) विगवना । है, फेरि लेति फेरि म्याधि आपने बगर की।-पाकर । ख़राब होना । (२) बहकना । भूलना । (३) व्युत होना । (३) घर । कोठरी । उ०-(क) टटकी धोई धोक्ती , ठीक रास्ते से हट जाना। चटकीली मुख जोति । फिरति रसोई के बगर अगरमगर बगदर-संज्ञा पुं० [ देश. ] मार । दुति होति ।-बिहारी । (ख) जगर जगर दुति दूनी केलि बगदधाना-क्रि० स० [हिं० गदना ] (6) बिगपवाना। ख़राब मंदिर में, बगर बगर धूप अगर बगारे त् ।-पाकर। कराना । (२) भुलवाना। श्रम में गलना । (३) लड़काना। (४) द्वार के सामने का सहन । आँगन । उ.-(क) गिरा देना। (४) प्रतिज्ञा मंग कराना । अपने वचन से नंदमहर के बगर तन अब मेरे को जाय । नाहक कहुँ हटाना। गदि जायगो हित काँटो मन पाय ।-रसखानि । (ख) बगदहा* :-वि० [हिं० वगदना+हा (प्रत्य०)] [स्त्री० बगदही ] राम उर रावन के नगर डगर पर बगर बगर आजु कथा चौंकने या बिगड़नेवाला । विगल । उ.-तुम चढ़ि काहे भाजि जान की । हनुमान । (५) वह स्थान जहाँ न टेरी कान्हा गइयाँ दूर गई। धाई जात सबन के आगे गाएँ बाँधी जाती हैं। बगार । बाटी । उ०-क) नगर जेहि वृषभानु दई । धेरे न घिरत तुम बिनु माधौ जू मिलत । बसे नगरे लो सुनिये नागर नारि । पगरे गरे सुमन के नहीं बगदई। बिडरत फिरत सकल बम महियाँ एक एक गरे बगर बहारि ।-रस निधि । (ख) यसुमति तेरो बारी गई। सूर। नान्हो अति अचगरी दुध दही माखम है शरि देत बगदाना-क्रि० स० [हिं० बगदना ] (1) विगाहना । खराब। सगरो । भोर उठि नित्य प्रति मोंसों करत है मगरी। करना । (२) स्युत करना । ठीक रास्ते से हटाना । (३) ग्वालबाल संग लिये सब घेरि रहै बगरो।-सूर । भुलाना । भटकाना। संज्ञा स्त्री० दे० "यगल" । उ०—ससवा की सरिया में बगना-कि० अ० [सं० वक-गति ] अमना फिरमा । उ. सोने के किनरिया उजरिया करत मुख जोति । अगर अगर नंबर यशोदा के लवाइसे कुँअर हिय हेरे वार गोरिन के जरतरघा लगल बाद जगर मगर दुप्ति होति ।- खोरिन बगे रहैं। चैन न परत देव देखे बिनु बैन सुने मिलत: धिरहा । बनै न तव नैन उमगे रहैं। देव। बगरना*1-क्रि० अ० [सं० विकिरण ] फैलना। बिखरना । छित- बगनी-संशात्री० [देश॰] एक प्रकार की घास जिसे कहीं कहीं राना । उ०—(क) तनपोषक नारि नरा सिगरे । परनिंदक लोग भाँग के साथ पीस कर पीते हैं। इससे उसका नशा ते जग मों वगरे ।--तुलसी। (ख) रीझे श्याम नागरी बहुत बढ़ जाता है। दे० "बगई"। उ०-मगनी भंगा रूप। तैसी ये स्ट वगरी ऊपर सवत नीर अनूप ।-सूर। खाइ कर मतवाले माजी।-दादू। (ग) कीथिन में, ब्रज में, नलिन में, वेलिन में, बनन में, गमेल-संक्षा पुं० [हि. बाग+मेल ] (1) दूसरे के घोड़े के साथ . बागन में, बगरी बसंत है।-पद्माकर । बाग मिला कर चलना । पाँति बरकर चलना । बराबर बगरा-संज्ञा पुं० [देश॰] एक प्रकार की मछली जो संयुक्त बराबर चलना । उ.-जो गज मेलि हौद सँग लागे । तो प्रांत और बंगाल में होती है। यह छ: सात अंगुल बगमेल करहु सँग लागे ।-जायसी । (२) घराबरी। लंबी होती है और ज़मीन पर उमलती या उडान भरती समानता। तुलना । उ.--भूधर भनप्त ताकी बास पाय है। यह स्थाने में स्वादिष्ट होती है। इसे शुभा भी सोर करि कुत्ता कोतवाल को बगानी बगमेला में।-भूधर । कहते हैं। क्रि० वि० वति.सर । बाग मिलाए हुए । साथ साथ । उ०- बगराना-क्रि० स० [हिं० बगरना का सक० रूप ] फैलाना। (क) आ गये बगमेल धरहु धरहु धावत सुभट । यथा छितराना । छिटकाना । उ.-(क) ते दिन विसरि गए विलोकि अकेल बालमविहि घेरत दनुज ।-तुलसी । (ख) पो आए । अति उम्मत्त मोह मद छाये फिरत केश बग- हरखि परस्र मिलन हित कामुक चले बगमेल 1 जनु बानंद राए ।-सूर । (ख) सजनी इह गोकुल में विष सो समुद्र दुइ मिलत बिहाइ सुबेस।-तुलसी। कारागोनंद के सावरिया। सवानि । (ग) जानिये बगर*1-संशा पुं० [सं० प्रघण, पा० पघण) (1) महरू । प्रासाद।। आली यह छोहरा जसोमति को बाँसुरी बजाइगो विष (२) बड़ा मकान पर 30-(क) आस पास वा बगर के : बगराइगो । रसवानि। जहँ विहरत पशुचंद । बज बड़े गोप परजम्य पुतनीके श्री । कि० अ० बगरना । फैलना। बिखरना । उ-कहाँ लौं