पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/८४

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बधिरता बनवारी - बधिरता-संज्ञा स्त्री० [सं०] श्रवण शक्ति का अभाव । बहरापन । | बनककड़ी-संज्ञा स्त्री० [सं० बनकटी ] पाप का पेड़ जो सिकिम बधू-संज्ञा स्त्री० दे० "वधू"। से लेकर शिमले तक पाया जाता है। इस पौधे से एक प्रकार बधूक-संशा पुं० ."धूफ"। का गोंद और एक प्रकार का रंग भी निकाला जाता है। यधूटी-संशा स्त्री० [सं० वटी ] (1) पुत्र की श्री । पतोह । (२) इसका गोंद दवा के काम आता है। - सुवासिनी । सुहागिन स्त्री। सौभाग्यवती स्त्री। (३) नई | बनकटी-संज्ञा स्त्री० [ देश ] एक प्रकार का बांस जिसमे पहाई. आई हुई बहू । लोग टोकरे बनाते हैं। अधूरा-संशा पुं० [हिं० बहुधूर ] अधर । बगूला । पर्वबर । चक्र संज्ञा स्त्री० [हिं० बन-+काटना ] जंगल काटकर उसे आयाद वात। 30--(क) ज्यों बधूरा बाव मध्य मध्य बधूरा करने का स्वस्व वा अधिकार जो ज़मींदार या मालिक की बाव । त्यों ही जग मध्ये ब्रह्म है ब्रह्म मध्ये जगत सुभाव । ओर से किसानों आदि को मिलता है। -कबीर । (ख) चई बधूरे चंग ज्यौं शान ज्यों सोक ! बनकर-संज्ञा पुं० [सं० वनकर ] (१) एक प्रकार का अस्वसंहार । समाज । करम धरम सुख संपदा, स्यौं जानिबे कुराज । शत्रु के चलाए हुए हथियार को निष्फल करने की एक -तुलसी। युक्ति । (२) जंगल में होनेवाले पदार्थो अर्थात् लकड़ी घास बधैया -संज्ञा स्त्री० दे० "बधाई"।. आदि की आमदनी । (३) सूर्य । ( डिंगल ) बध्य-वि० [सं०] मारने के योग्य । बनकल्ला-संज्ञा पुं० [हिं० बन+कला ] एक प्रकार का जंगली बन-संज्ञा पुं० [सं० वन ] (१) जंगल । कानन । अरण्य । पेड़। (२) समूह। (३) जल । पानी। उ०-बाँध्यो बननिधि | बनकस-संज्ञा पुं० [हिं० वन+कुश एक प्रकार की घास जिसे नीरनिधि, जलधि सिंधु बारीश । —तुलसी । (४) बगीया । धनकुस, बँभनी, मोय और बाभर भी कहते हैं। इम्पये बाग । उ०-बासव बरुण विधि बन ते सोहावनो, दसा रम्सियाँ बनाई जाती है। मन को कानन बर्सत को सिंगार सो।-तुलसी। (५) | बनकोरा-संशा पुं० [दे. ] लोनिया का साग । लोनी । निराने या नींदने की मजदूरी । निरौनी ।नि दाई । (६) | बनखंड-संज्ञा पुं० [सं० वनखंड ] जंगल का कोई भाग । जंगली वह अन्न जो किसान लोग मज़दूरों को खेत काटने की प्रदेश । मजदूरी के रूप में देते हैं। (७) कपास का पेड़ । कपास ! वनखंडी-संशा स्त्री० [हिं० बन+खंड-टुकड़ा ] (१) बन का का पौधा । उ०-सन सूम्यो बील्यो बनौ उखौ लई उखार।। कोई भाग। (२) छोटा सा बन । अरीहरी अरहर अजौं धर धरहर जिय नार-विहारी। (८). संज्ञा पुं० बन में रहनेवाला । जंगल में रहनेवाला । उ.-- वह भेंट जो किसान लोग अपने ज़मींदार को किसी उत्सव । उसी व्यथा मे है परिपीड़ित, यह बनवंडी आप। के उपलक्ष में देते हैं। शादियाना । (२) दे. "धन"। बनखग-संज्ञा पुं० [ हिं. बन+खरा ? ] वह भूमि जिसमें पिछली बनआलू-संज्ञा पुं॰ [हिं० बन+आलू ] पिडालू और ज़मीकंद फसल में कपास बोई गई हो। आदि की जाति का एक प्रकार का पौधा जो नेपाल, वनखोर-संज्ञा पुं० [देश॰ ] कौर नामक वृक्ष । विशेष—दे. सिकिम, बंगाल, बरमा और दक्षिण भारत में होता है। "कार"। यह प्रायः जंगली होता है और बोया नहीं जाता। इसकी | बनगाव-संज्ञा पुं० [हिं० बन+फा० गाव, हिं. गौ० ] (1) एक जब प्राय: जंगली या देहाती लोग अकाल के समय प्रकार का बड़ा हिरन जिसे रोझ भी कहते हैं। (२) एक खाते हैं। प्रकार का तेंदू वृक्ष । बनउर-संका पुं० (२) दे. "बिनौला"। (२) दे० "ओला"। यनचर-संशा पुं० [सं० वनचर ] (1) जंगल में रहनेवाला पशु । बनकंडा-संशा पुं० [हिं० वन+कंडा ] वह कंडा जो वन में बन्य पशु। (२) बन में रहनेवाला मनुष्य । जंगली पशुओं के मल के आपसे आप सूखने से तैयार होता है। आदमी । (३) जल में रहनेवाले जीव । जैसे, मछली, अरना कशा मगर आदि। बनक* -संज्ञा स्त्री० [हिं० बनना ] (१) बनावट । सजावट । बनचरी-संशा स्त्री० [ देश. ] एक प्रकार की जंगली धास सजधज ।-द्विजदेव की सौं ऐसी बनक निकाई देखि, जिसकी पत्तियाँ ग्वार की पत्तियों की तरह होती है। राम की दोहाई मन होत है निहाल मम ।-द्विजदेव । बरो। (२) बाना । वेष । भेस। संज्ञा पुं० जंगली पशु संज्ञा स्त्री० [सं० वन+क (प्रत्य॰)] बन की उपज । जंगल बनचारी-संज्ञा पुं० [सं० वनचारिन् ] (1)बन में घूमनेवाला। की पैदावार । जैसे, गोंद, लकड़ी, शहद आदि । (२) बन में रहनेवाला आदमी। (२) जंगली जानवर ।