पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/९३

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बरभंग २३८६ बरकाज के घर भेजा जाता है और जिससे फिर कन्या नहलाई जाती है। जिस चीज़ में तुम हाथ लगा दोगे, उसकी बरकत जाती रहेगी। (जिस पात्र में वह जल जाता है वह पात्र चीनी, खाँड आदि मुहा०-बरकत उठना=(१) बरकत न रह जाना । पूरा न से भरकर लड़केवालों के घर लौटा दिया जाता है।) पड़ना । (२) वैभव आदि की समाप्ति या अंत आने लगना । हास (२) वह आशीर्वादसूचक वचन जो किसी को प्रार्थना का आरंभ होना । जैसे,—अब तो उनके घर से बरकत उठ पूरी करने के लिये कहा जाय। दे. “वर"। उ.-यह बर चली । वरकत होना=(१) अधिकता होना । वृद्धि होना । (२) माग्यो दियो न काहु । तुम मम मन से कहूँ न उन्नति होना। जाहू।--केशव। (२) लाभ 1 फायदा । जैसे,—(क) जैसी नीयत वैसी वि० श्रेष्ठ । अच्छा । उत्तम । बरकत । (ख) इस रोज़गार में बरकत नहीं है। (३) मुहा०-थर परना-बद निकलना । श्रेष्ठ होना । 30-अर ते वह बचा हुआ पदार्थ या धन आदि जो इस विचार से टरत न बर पर दई मरकि मनु मैन । होड़ाहोड़ी बदि पीछे छोड़ दिया जाता है कि इसमें और वृद्धि हो । जैसे,- चले चित चतुराई नैन ।-बिहारी। (क) थली बिलकुल खाली मत कर दो, बरकत का एक संशा पुं० [सं० बल ] बल । शक्ति । उ०—(क) परे भूमि रुपया तो छोड़ दो। (ख) अब इस घड़े में है ही क्या, नहिं उठत उटाये । बर करि कृपासिंधु उर लाये।-तुलगी। खाली बरकत बरकत है। (४) समाप्ति । अंत । (साधारणतः (ख) तीन लंक टूटी दुख भरी । धिन रावन केहि वर गृहस्थी में लोग यह कहना कुछ अशुभ समझते हैं कि होय खरी-जायसी। अमुक वस्तु समाप्त हो गई और उसके स्थान पर इस शब्द संज्ञा पुं० [सं० वट ] वट वृक्ष । दरगद । उ०-कौन का प्रयोग करते हैं । जैसे,—आजकल घर में अनाज की सुभाव री तेरो प-यो बर पूजत काहे हिये सकुचाती। घरकत है।) (५) एक की संख्या । ( साधारणतः लोग --प्रताप। गिनती के आरंभ में एक के स्थान में शुभ या वृद्धि आदि अव्य० [फा०] ऊपर । की कामना से इस शब्द का व्यवहार करते हैं। जैसे, महा-बर आना या पाना--बढ़कर निकलना । मुकाबले में बरकत, दो, तीन, चार, पाँच आदि।) (६) धन दौलत । अच्छा ठहरना । जैसे,-झूठ बोलने में तुमसे कोई घर नहीं (व.)।(७) प्रसाद। कृपा । जैसे,--यह सब आप के कदमों पा सकता ( या आ सकता)। की बरकत है कि आपके आते ही रोगी अच्छा हो गया। वि० (१) बढ़ा चढ़ा । श्रेष्ठ (२) पूरा। पूर्ण । ( आशा (कभी कभी यह शब्द व्यंग्यरूप से भी बोला जाता है। या कामना आदि के लिये ) जैसे, मुराद बर आना। जैसे,—यह आपके कदमों की ही घरकत है कि आपके आते संज्ञा पुं॰ [देश॰] एक प्रकार का कीड़ा जिसे खाने से पशु ही सब लोग उठ खड़े हुए।) मर जाते हैं। बरकती-वि० [अ० बरकत+ई (प्रत्य०)] (१) बरकतवाला ।

  • अन्य [सं० वरं, हिं. वरु ] वरन् । बल्कि । उ०-! जिसमें बरकत हो । जैसे,—जरा अपना बरकतीहाथ उधर

सुनि रोवत सब हाय विरह ते मरन भलो बर।-म्यास । ही रखना । (व्यंग्य) । (२) बरकत संबंधी । यरकत का । बरअंग-संज्ञा स्त्री० [हिं०] योनि। जैसे, बरकती रुपया। बरई-सज्ञा पुं० [हिं० बाद क्यारी] [वी० बरइन ] (1) एक बरकदम-संशा स्ली० [फा०] एक प्रकार की चटनी जिसके बनाने जाति जिसका काम पान पैदा करना या बेचना होता है। की विधि इस प्रकार है-पहले को आम को भूनकर (२) इस जाति का कोई आदमी । तमोली। उसका पना निकाल लेते हैं और तब उसमें चीनी, मिर्च घरकंदाज-संज्ञा पुं० [अ०+फा० ] (1) वह सिपाही या शीतलचीनी, फेसर, इलायची आदि डाल देते हैं। चौकीदार आदि जिसके पास बड़ी लाठी रहती हो। बरफना-कि० अ० [हिं० बरकाना ] (1) कोई बुरी बात न होने (२) तोड़ेदार बंदूक रखनेवाला सिपाही। (३) चौकीदार । पाना । न घटित होना । निवारण होना । जचना । जैसे, रक्षक। झगड़ा बरकना । (२) अलग रहना । हटना । दूर रहना। बरकत-संशा स्त्री० [अ० ] (१) किसी पदार्थ की अधिकता। बरकरार-वि० [फा० बर+अ. करार ] (१) कायम । स्थिर । बढ़ती । ज्यादती। बहुतायत । कमीन पड़ना । पूरा पड़ना। जिसकी स्थिति हो। (२) उपस्थित । मौजूद । विशेष-इस शम्द का प्रयोग साधारणत: यह दिखलाने के क्रि० प्र०-रहना। लिए होता है कि वस्तु आवश्यकतानुसार पूरी है बरकाज-संशा पुं० [सं० वर+कार्य ] विवाह । व्याह । शादी। और उसमें सहसा कमी नहीं हो सकती । जैसे,—(क), उ---प्रबल प्रचंड परिवंच वर वेष बपु परिबेके बोले इकट्ठी खरीदी हुई चीज़ में बड़ी घरकत होती है। (ख) । बैदेही बरकाज के।-तुलसी।