सतीत्वहरण ४६२८ सत्काय दृष्टि सतीत्वहरण-सञ्ज्ञा पुं० [स०] परस्त्री के साथ बलात्कार। सतीत्व सतृप -वि० [म०] १ तृष्णा से युक्त। प्यामवाला । प्यामा। २ विगाडना। चाहनेवाला । इच्छुक । सतीदोषोन्माद-सञ्ज्ञा पुं॰ [म०] स्त्रिो का वह उन्माद रोग जिसका सतृण-वि० [म०] दे० 'सतृप' । प्रकोप किसी सतीचौरे को अपवित्र आदि करने के कारण माना सतेज-वि० [म० सतेजस्, दे० 'सतेजा'। जाता है। सतेजा-वि० [स० सतेजस्] तेजयुक्त। जिसमे तेज हो। दीप्तिमान् । सतीन'-सज्ञा पुं० [स०] १ एक प्रकार का मटर । २ अपराजिता । प्रभायुक्त को०] । ३ बॉस (को०) । ४ जल पानी (को०)। सतेर-प्रज्ञा पुं० [म० भूमी । मुम । तुप । सतीन-वि० यथार्थ । वास्तविक [को०] । सतेरक-पहा पुं० [म०] ऋतु । मौमिम । सतीनक-सञ्चा पुं० [स] एक प्रकार का मटर 'को०] । सतेरो-मन्ना भी० [शक प्रकार को मधुमक्खी। सतोपन-सञ्ज्ञा पुं० [म० सती + हिं० पन (प्रत्य॰)] सती रहने का सतेस-रखा त्री० [स० स + तरस् ( = वेग)] शोधा । फुर्ती । नेजी। भाव । पातिव्रत्य । सतीत्व । सतोखना -क्रि० प० [१० सन्नापण]१ मनुष्ट करना । प्रसन्न सतीपुत्र -सञ्ज्ञा पुं० [म०J साध्वी स्त्री का पुन करना । २ सतोष दिनाना । समझाना । ढारस देना । सती प्रथा-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [स० सती + प्रथा। पति के मरण के उपरात सतोगुण -ज्ञा पु० [म० सत्वगुण] दे० 'सत्वगुण ।' पत्नी का उसके साथ सहगमन या जल जाना । सतोगुणी-पज्ञा पुं० [हिं० सतोगुण + ई (प्रत्य॰) । मन्वगुणवाला । विशेष अगरेजी शासन काल मे सार्ड विलियम वेटिक ने कानून उत्तम प्रकृति का । सात्विक । बनाकर इस प्रथा को बद कर दिया। इस प्रथा के विगद सतोद-वि० [म०] करने या शल्य की तरह चुभनेवाली वेदना से आदोलन के मुरय प्रेरक राजा राम मोहन रान कहे जाते है । युक्न क्रिो०] । मतीर्थ-सज्ञा पुं० [स०] १ एक हो आचार्य से पढनेवाला । सह सतोदर-मज्ञा पु० [म० शतोदर] दे० 'शतोदर' । पाठी । ब्रह्मचारी। २ शिव का एक नाम (को०)। सतौला-मत्रा पुं० [हिं० सात +ौना (प्रत्य॰)] प्रसूता स्त्री का सतीर्थ-वि० तीर्थवाला । तीर्थयुक्त किो०] । वह विधिपूर्वक स्नान जो प्रसव के मानवे दिन होता है । सतीर्थ्य-सज्ञा पु० [स०] सहपाठी । ब्रह्मचारी । सतीसर-मक्षा पुं० [सं० सप्नसृक्] पात लडी का हार । मतलडा हार । सतील-सञ्ज्ञा पुं० [स०] १ बाँस । वश । तृए राज । २ अपराजिता। सत्कथा-सहा मी० [स०] उत्तम कमा या मनोरजक वार्ता। अच्छी ३ वायु। ५ एक प्रकार का मटर (को०)। वात चीत किो०] । सतीलक--सञ्ज्ञा पु० [स०] एक प्रकार का मटर (को०] । सत्कदव-मज्ञा पु० [म० सत्कदम्ब] एक प्रकार का कदव । सतीला-सञ्ज्ञा स्त्री० [स०] अपराजिता । विष्णुक्राता । कोयल लता। सत्करण--सज्ञा पुं० [३०] [वि० सत्करणीय, सस्कृत] १ सत्कार करना । अादर करना। २ मृतक की अतिम क्रिया करना । सतीव्रत-सञ्ज्ञा पुं० [स०] पतिव्रत (को०] । किया कर्म करना। सतीव्रता-सचा स्त्री० [स] पतिव्रता स्त्री [को०] । सत्करणीय-वि० [म०] सत्कार करने योग्य । आदरणीय । पूज्य । सतुआ-सज्ञा पुं॰ [स० सक्तुक, सत्तुमा भ्रष्ट यवादि चूर्ण । भुने सत्कर्त्तव्य-वि० [स०] १ मत्कार के योग्य । २ जिसका मत्कार हुए जी और चने का चूर्ण जो पानी डालकर खाया जाता करना हो। सत्कर्ता'-वि०, सज्ञा पुं॰ [म० मत्कत्तूं] [म्बी० सत्कर्ती] १ अच्छा सतुआना--सञ्चा स्त्री० [हिं० सतुआ] दे० 'सतुपा सकाति' । काम करनेवाला । सत्कर्म करनेवाला । हिन करनेवाला। सतुया सक्राति--सञ्ज्ञा स्त्री० [हिं० सतुप्रा + सक्राति] मेप को सक्राति ३ आदर सत्कार करनेवाना। जो प्राय वैशाख मे पडती है। इस दिन लोग जल से भरा सत्कार---सबा पुं० विष्णु का एक नाम (को०] । घडा, पखा और सत्तू दान करते और खाते हैं। सत्कर्म--सज्ञा पु० [म० सत्कर्मन्] [वि० सत्कर्मा] १ अच्छा कर्म । सतुप्रासोठ--सज्ञा स्ती० [हिं० सतुआ + मोठ] साठ को एक जाति । अच्छा काम । २ धर्म या उपकार का काम । पुण्य । ३ अच्छा सतुष-वि० [स०] जिसमे तुप अर्थात् छिलका हो। (अन्न) जो भूसी सस्कार । ४ सत्कार । ५ अभिवादन (को०)। ६ शुद्धि । प्राय- से युक्त हो (को०] । श्चित्त । सस्कार (को०)। ६ अत्येष्टि कर्म (को०)। सतून-सच्चा पु० [फा०, मि० स० स्यूण] स्तभ । खभा। सत्कला-सन्ना पुं० [स०] उत्कृष्ट या ललित कला (को०] । सतूना-सञ्ज्ञा पु० [फा० सतून( = खभा)] बाज की एक झपट जिसमे सत्कवि--सज्ञा पुं॰ [स०] सुकवि । श्रेष्ठ या उत्कृष्ट कोटि का कवि कोला। वह पहले शिकार के ठीक ऊपर उड जाता है, और फिर सत्काचनार-सञ्ज्ञा पु० [स० सत्काञ्चनार रक्त काचन वृक्ष । लाल एकवारगी नीचे की ओर उमपर टूट पडता है। उ०--काग कचनार [को०] । आपनी चतुरई तब तक लेहु चलाइ। जब लगि सिर पर देइ सत्काड--सचा पु० [स० सरकाण्ड] १ चीन । २ वाज । श्येन [को॰] । नहिं लगर सतूना प्राइ ।-रसनिधि (शब्द०)। सत्काय दृष्टि-सञ्ज्ञा स्त्री० [म०] बौद्ध मतानुसार मृत्यु के उपरात सतृट-वि० [सं० सतृप्] दे० 'सतृष' । आत्मा, लिग, शरीर आदि के बने रहने का मिथ्या सिद्धात । हे । सत्तू।
पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/११०
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