सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/१२०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

सदावर्ती ४६३८ सश सदावर्ती-पचा पु० [हिं० सदावन] १ सदावर्त बाँटनेवाला । 'भूखो सदाशयता-सञ्ज्ञा स्त्री० [म सदाशय+ता (प्रत्य॰)] भलमनमाहत । को नित्य अन्न वॉटनेवाला | २ बडा दानी। बहुत उदार । सज्जनता। उ०-जाति जीवन हो निरामय, वह सदाशयता सदाबहार-वि॰ [हिं० मदा + फा० बहार ( = बसत ऋतु, फूल प्रखर दो।- अपरा, पृ० १६२। पत्ती का समय)] १ जो सदा फूले । २. जो सदा हरा रहे। सदाशिव-सद्धा पु० [स०] १ मदा कल्याणकारी । मदा कृपालु । २ जिसका पतझड न हो। जिसमे वरावर नए पत्ते निकलते और सदा शुभ और मगल । ३ महादेव का एक नाम । पुराने झडते रहें। सदाश्रित-वि० [स०] जो मर्वदा दूसरे के आश्रय मे रहता हो। विशेष-वृक्ष दो प्रकार के होते है । एक तो पतझडवाले, अर्थात् परावलबी (को०] । जिनकी सब पत्तियाँ शिशिर ऋतु मे झड जाती और वसत मे सदासुहागिन'-वि० स्त्री० [हिं० सदा + सुहागिन] जो सदा सौभाग्यवती सब पत्तियां नई निकलती हैं। दूसरे सदाबहार अर्थात् वे रहे । जो कभी पतिहीन न हो। जिनके पत्ते झडने की नियत ऋतु नही होती और जिनमे सदा सदासुहागिन'-सञ्ज्ञा स्त्री० १ वेश्या । रडी। (विनोद) । २ सिंदूर- हरी पत्तियाँ रहती है। पुष्पी का पौधा । ३ एक प्रकार की छोटी चिडिया। ४ एक सदाबहार'-सज्ञा पुं० एक प्रकार के फूल का नाम । प्रकार के मुसलमान फकीर जो स्त्रियो के वेश मे घूमते है। सदिच्छा-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [स० सद् + इच्छा] सद् विचार । अच्छी इच्छा । सदाभद्रा-सज्ञा स्त्री॰ [स०] गॅभागे का पेड । उ०-इसलिये उनकी सारी सदिच्छा सपना बनकर ही रह सदाभव-वि० [सं०] हमेशा होनेवाला । निरतर । अनवरत [को०] । जाती है।- इति० पालो०, पृ० ५५ । सदाभव्य-वि० [स०] जो सर्वदा विद्यमान या सावधान हो (को०] । सदिया-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [फा० सादह, (= कोरा) लाल पक्षी का एक सदाभ्रम-वि० [स०] सर्वदा भ्रमणशील को०) । भेद जिसका शरीर भूरे रग का होता है। बिना चित्ती की सदामडलपत्रक-सज्ञा पुं० [स० सदामण्डलपनक] सफेद गदहपूरना । मुनियाँ। श्वेत पुनर्नवा । सदियाना-सक्षा पुं० [फा० शादियानह ] दे० 'शादियाना' । उ०- सदामत्त-सञ्ज्ञा पु० [स०] एक प्रकार के यक्ष । लागे मगल होन लगे बाजन सदियाना।-पलटू०, पृ० ८२ । सदामत्त-वि० १ जिसके गडस्थल से सदा मदस्राव होता हो (हाथी)। सदी'-मञ्चा स्त्री० [अ०, फा०] १ सौ वर्षों का समूह । शताब्दी । २ २ सर्वदा मस्त रहनेवाला (को०] । किसी विशेप सौ वर्प के वीच का काल । जैसे,-१६वी सदी । सदामद'-वि० [स०] १ हमेशा नशे मे रहनेवाला । नित्यमत्त । २ ३. सैकडा । जैसे,-५) फी सदी सूद । हमेशा, मद बहानेवाला (हाथी) । ३ खुशी के मारे जो मतवाला सदी-सच्चा सी० [अ० सद् इ] स्तन | पयोधर । कुच (को०] । हो गया हो। ४ घमड से चूर रहनेवाला को०] । सदीवg-अव्य० [स० सदैव] दे० 'सदैव' । उ०-मच्छाँर जल जीव जिम, मवजी तरीं सदीव । अदतारा धन जीव इम, जस दातारा सदामद ---सचा पु० गणेश । जीव ।-बांकी ग्र०, भा० ३, पृ० ५०। सदामर्ष-वि० [सं०] जो शात या धीर न हो। उच्छृ खल । अमर्षयुक्त। सदुक्ति-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [स०] सत् उक्ति । अच्छी लगनेवाली बात । भले सदामासी--सञ्ज्ञा स्त्री॰ [स०] मासरोहिणी । शब्द [को०] । सदामुदित-सज्ञा पुं० [स०] १ वह जो सर्वदा मुदित रहता हो । २ सदुद्य--वि० [स०] सत्य बोलनेवाला (को०] । एक प्रकार की सिद्धि को०] । सदुपदेश-सम्रा पु० [स०] १ अच्छा उपदेश । उत्तम शिक्षा । २ अच्छी सदायोगी'-सञ्ज्ञा पुं० [स० सदायोगिन्] विष्णु । सलाह। सदायोगी-वि० सर्वदा योगाभ्यास करनेवाला । जो हमेशा योगाभ्यास सदुपयोग-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] किसी वस्तु का सत्कार्य मे उपयोग । करता हो (को०] । सत्कार्य में लगाना । अच्छे कार्य में प्रयुक्त करना। सदार-वि० [स०] सस्त्रीक । दारायुक्त । सदुदिन-सज्ञा पु० [स०] मेघाच्छन्न या बादलो से घिरा हुआ दिन सदारत-सञ्ज्ञा सी० [अ०] सभापतित्व । अध्यक्षता। सदर का पद । (को०]। उ०-मुहम्मद कुतुव । सदारत दिखाया । -दक्खिनी०, सदूर--सज्ञा पुं॰ [स० शार्दूल] शार्दूल । सिह । उ०-विरह हस्ति तन साल घाय कर चित चूर। वेगि आइ पिउ वाजहु गाजहु होइ सदूर ।-जायसी (शब्द॰) । सदारुह-सज्ञा पुं॰ [म०] वेल । विल्व वृक्ष । सहक-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] एक प्रकार की मिठाई । (सुश्रुत)। सदावरदायक-सञ्ज्ञा पु० [स०] एक प्रकार की समाधि (को०] । सदृक्ष-वि० [सं०] दे॰ 'सदृश' । सदावर्त, सदावर्ती-सज्ञा पुं० [हिं०] दे॰ 'सदावर्त', 'सदावर्ती । सदृश-वि० [स०] १. जो देखने में एक ही सा हो। एक रूप रंग सदाशय-वि० [स०] जिसका भाव उदार और श्रेष्ठ हो। उच्च का। समान । अनुरूप । २ तुल्य । बराबर । ३ उपयुक्त । विचार का । अच्छी नीयत का । सज्जन । भलामानस । मुनासिब । योग्य । पृ०७४।