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पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/१४१

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$ सम ४६५९ समचेता इसी सम पर होता है। परंतु गाने वजाने के बीच बीच मे भी सम वरावर अाता रहता है । ४ साहित्य मे एक प्रकार का अर्थालकार जिसमे योग्य वस्तुओं के सयोग या सवध का, कारण के साथ कार्य की सारूग्यता का, तथा अनिष्टबाचा के बिना ही प्रयत्नमिद्धि का वणन होता है। यह विपमालकार का विलकुल उलटा है। उ०—(क) जस दूलह तस वनी बराता। कौतुक विविध होहि मगु जाता। (ख) चिरजीवो जोरी जुरै क्यो न सनेह गंभीर । पो कहिए वृषभानुजा वे हलधर के वीर । ५ ममतल भूमि। चौरम मैदान (को०)। ६ याम्योत्तर रेखा अर्थात् दिकचत्र, अाकाश- वृत्त को विभाजित करनेवाली रेखा का मध्य विदु (को०)। ७ समान वृत्ति । समभाव । समचित्तता (फो । ८ तुल्यता। सादृश्य । समानता (को०)। ६ तणाग्नि (को०)। १० धर्म के एक पुत्र का नाम (को०)। ११ धृतराष्ट्र का एक पुत्र (को०) । ११ उत्तम स्थिति । अच्छी दशा (को०) । सम-मया [१०] विप । जहर । सम्म । उ०—सम खायेंगे पर तेरी व मम हम न खायेंगे । सम-सज्ञा पुं० [स० शम दे० 'शम' । उ०-तापस सम दम दया निधाना । परम रय पथ परम सुजाना ।—मानस, १ । ४४ । समकक्ष - वि० [सं०] बराबरी का। समान । तुल्य । जैसे,-दर्शन शास्त्र मे वे तुम्हारे समकक्ष हे । समकक्षा -सझा म्ली० [स०] वरावरी । तुल्यता [को०] । समकन्या-मझा छो० [स०] वह कन्या जो विवाह के योग्य हो गई हो। व्याहने लायक लडकी। समकर-वि० [सं०] १ मकर ग्रादि समुद्री जतुनो से युक्त । २ उचित रूप मे महसूल लगानेवाला (को०) । समकर्ण-सज्ञा पु० [५०११ शिव का एक नाम । २ गौतम बुद्ध का एक नाम । ३ ज्यामिति मे किसी चतुभुज के ग्रामने सामनेवाले कोणो के ऊपर की रेखाएँ। समकर्मा---वि० [स० समकर्मन्] ममान पेशेवाला । समकाल-सञ्ज्ञा पु० [स०] एक ही काल या समय । समान क्षण [को०] । समकालीन-वि० [स०] जो (दो या कई) एक ही समय मे हो । एक ही समय मे होनेवाले । जैसे,- तुलसीदामजी जहाँगीर के समकालीन थे। समकृत -सक्षा पुं० [स०] कफ । श्लेष्मा। समकोटिक-वि० [स०] सुडौल । (रत्न) समान पहल या कोणवाला (हीरा) [को०] । समकोग-वि० [स०] (त्रिभुज या चतुर्भुज) जिसके आमने सामने के दो कोण समान हो। समकोल-पचा पु० [स०] साँप । समकोश-सचा पु० [स०] महाभारत के अनुसार एक प्राचीन देश का नाम। समक्न-वि० [म०] १ जानेवाला । गता। २ एक साथ जानेवाला । एक काल मे गमन करनेवाला । ३. नम्र । झुका हुआ (को०] । ममक्रम-वि॰ [स०] जिसका पादविक्षेप समान दूरी पर पडे । चलने मे जिसके कदम समान दूरी पर पड़े [को०) । समक्रिय-वि० [स०] समान क्रियाएँ या काय करनेवाला [को०] । समक्वाथ-सन्ना पुं० [स०] वह क्वाय या काढा जिसका पानी आदि जलकर पाठवाँ भाग रह जाय। समक्ष'-अव्य० [म.] अाखो के सामने । सामने । जैसे,--अब वह कभी आपके समक्ष न आवेगा । समक्ष--वि० जो आँखो के सामने हो रहा है । प्रत्यक्ष (को०) । समक्षता--सज्ञा स्त्री० [८०] दृश्यता । प्रत्यक्षता । गोचरता (को०|| समखात-सचा पु० [म.] धन के रूप में की गई खुदाई। वह खुदाई जिसकी लवाई, चौडाई और गहराई समान हो [को० । ममगधक-सज्ञा पु० [स० समगन्धक नकली धू५ ! समक्षदर्शन-मा पुं० [स०] १ आँखो देखा प्रमाण या सबूत । २ आखो देखना । प्रत्यक्ष दशन [को०] । समगधिक-मज्ञा पु० [स० समगन्धिक] १ वह जिसमे समान गध हो । २ उशीर । खस । समग--सज्ञा पुं० [अ० समगा गोद (को०) । समगति-सज्ञा पु० [स०] वायु । ह्वा [को०] । समग्ग-वि० [स० समग्र दे० 'ममन'। समन--वि० [स०] १ समस्त । कुल । पूरा। सव। जैसे,—उसे समग्न लघुकीमुदी कठ है । २ जिसके पास सव कुछ हो । सर्वसपन्न (को०)। यौ०--समग्रभक्षणशील=जो सब कुछ भक्षण करे या खा जाय । समग्रशक्ति = सभी शक्तियो से युक्त । समग्रसपन् = जो सभी प्रकार के सुख या सपत्तियो से युक्त हो। समग्रएो--वि० [स०] लोगो मे अग्रणी, श्रेष्ठ [को०] । समग्रेदु--मन्ना पुं० [स० समग्रेन्दु] चद्रमा का पूर्ण मडल। पूर्णचद्र को०)। समचतुर्भुज--मज्ञा पु० [स०] वह चतुभुज जिसके समान हो। समचर वि० [स०] ममान आचरण करनेवाला। एक सा व्यवहार करनेवाला। उ०-नाम निठुर समचर सिखी सलिल सनेह न दूर। ससि सरोग दिनकर बडे पयद प्रेमपथ कूर ।- तुलसी (शब्द॰) । समचार-मज्ञा पु० [ स० समाचार ?] दे० 'समाचार', सवर । उ०--(क) नाहर नारद जे दूत पाइ। समचार सबै कहि ते सुनाई। -पृ० रा०, ७.५५ । (ख) सखी कह मै पठए चारा । प्राजि काल्हि ऐह समचारा ।--नद० ग्र०, पृ० १३४ । समचित्त-पक्षा पु० [स०] वह जिसके चित की अवस्था सब जगह समान रहती हो। वह जिसका चित्त कही दुखी या क्षुब्ध न होता हो। वह जो उदासीन या तटम्य रहे। समचेता। २ वह जो धैर्ययुक्त हो । धैर्यशाली (को०)। ३ वह जिनको प्रज्ञा एक ही विषय पर केद्रित हो (को॰) । समचेता-मचा पु० [सं० समचेनस्। वह जिसके चित्त की वृत्ति सब जगह समान रहती हो । दे० 'समचित्त' । चागे मुज