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पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/१८०

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उम्दा। लगाना। सराहना ५००० सरिश्तेदार फोका। ताकर काह सराहे नोव।।- जायसी (शब्द०)। सरिदधिपति - सशा पुं० [सं०] ३० 'मरित्पनि' को०] । (ग) सबै सराहत सीय लनाई।-- तुलसी (शब्द०)। सरिदिही-मला सी० [फा० मर ( = म दार) + देह (= गाँब)] सराहना-मञ्ज्ञा स्त्री० प्रशमा। तारीफ । उ-श्री मुग जामु मगहना वह नजर या मंट जो जमीर या उमका कान्दिा विमानों मे की हो श्री हरिचद ।--प्रतापनारायण (शब्द०) । हर पसल पर लेना। सराहनीय १-वि० [हिं० सराहना + ईय (प्रत्य० ।। १ प्रशना । सरिदुभय-परा पु० [मं०] नदो या दोनो किना T [को०] । योग्य । तारीफ के लायक । श्लाघनीय । २ अन्छा । वढिया। सरिभर्ता-पया पु० [F० मग्दि भन] गमुटु । सरिद्वत्-सज्ञा पुं० [ म०] ममद्र । मागर यो०] । सराहु-वि० [म०] १ राहु से युक्त । राहु के साथ। २ (चद्रमा) मरिद्वरा-राना मी० [4] (उनम नो) गगा। जो राहु से ग्रस्त हो (को०। मरिन्नाथ सग पुं० [म०] मागर (को०) । सरि'- ससा स्त्री॰ [म०] १ झरना । निझर । झालर (को०)। २. दिशा सरिन्मुख-ममा पु० [सं०] नदी वा उदाम : मुहाना [को०] । (को०)। ३ दे० 'सरी'। सरिमा-मधा पं० [मं० मरिमन्] १ गति । गमन । २ वायु । ३ सरिपुर-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं० सरित्] नदी। कान । समय (को०)। सरि पु-मक्षा मी० [सं० सदृश, प्रा० सरिस ) बरावरी। ममता । उ०-दाडिम सरि जो न के सका फाटउ हिया दरविक ।- सरिया'-मरा प्री० [देश॰] १ ऊँची भूमि । २ पैमा या प्रोः कोई जायसी (शब्द०)। छाटा मिक्का । (मोनार)। सरिया-मरा पुं० [सं० शर] १ मस की छ. जो गुनहले या सरि-वि० तुल्य । सदृश । ममान । रपहले तार बनाने में काम पाती है। मई। २ पालो छड । सरि'-मधा सी० [देशी] हार। लरी । माला । सरियाना-त्रि० म० [म० तर) १ तन्नोव ने लगाार इकट्टा सरिक-वि० [म०] [वि॰ स्त्री० सरिका] गमनशील । जो जा रहा करना । विग्ररी हुई नीले टग में ममेटना । जैगे,- लव डी हो (को०)। सरियाना, पागज मरियाना। २ मारना। सरिका'-सज्ञा स्त्री० [सं०] १ होगपत्नी । हीगुपत्नी। २ मोतियो की (बाजारू)। लडी । ३ मुक्ता । ४ रत्न। ५ छोटा ताल या सरोवर । सरिर, सरिल-पमा पुं० [०] मलिन । जन । ६ एक तीर्थ । ७ गमन । प्रस्थान (को०)। ८ जानेवाली स्त्री सरिवन -मसा ० [म० शानपण] शातपणं नाम का पौधा । विपर्णी (को०)। अशुमती। सरिका-सया पुं० [अ० सरिकह] चौर्य । चोरी । तस्करता फिो०] । विशेप-यह क्षुप जाति की वनौषधि है और भारत के प्राय मभी सरिगम-सहा पु० [हिं० सरगम दे० 'सरगम'। प्रातो मे होती है । इसको उचाई तीन चार फुट होती है। सरित्-सञ्ज्ञा स्त्री० [स०] १ नदी। २ दुर्गा का एक नाम (को०)। यह जगली झाडियो मे पाई जाती है। इसका काड मोधा सूत्र । टोरी (को०)। और पतला होता है । पत्ते बेल के पत्तो की भांति एक सौके सरित-सज्ञा स्त्री० [सं० सरित्] सरिता । नदी। उ०-दुगति मे तीन तीन होते हैं । ग्रीष्म ऋतु को छोड प्राय सभी ऋतुओं दुर्गन ही जु कुटिल गति सरितन ही को।-केशव (शब्द॰) । मे मरे फल फूल दे जाते हैं । पूल छोटे और मानमानी सरितापति-सधा पुं० [स० सरिताम्पति] १ नदियो का पति, ममुद्र । रग के होते हैं। फलियां चिपटी पतली और प्राय आध २ चार की सस्या का वाचक शब्द (को०] । उच लवी होती है । सरिवन औपध के काम में आती है। सरितावरा-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं० सरिताम्बरा] गगा, जो नदियो मे श्रेष्ठ सरिवर, सरिवरिश-नश स्लो० [हिं० सरि+स० प्रति, प्रा० पडि, वडि] वरापरी। ममता। उ०--तुमहिं हमहि मरिवरि है किो। कस नाथा ।-तुलसी (शब्द०)। सरिता-सञ्ज्ञा स्त्री० [स० सरित (= बहा हुग्रा)] १ धारा । प्रवाह । २ नदी। दरिया। सरिरक-सश पुं० [फा०] १. आँसू । २ वूद [को०] । सरिश्त--सशा पुं० [फा०] १ स्वभाव। प्रवृत्ति । २ बनावट। सरित्व फ-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] नदी का फेन । निर्मिति । सृष्टि को। सरित्त-मज्ञा स्त्री० [स० सरित् । नदी। सरिता। सरिश्ता--सज्ञा पुं० [फा० सररिश्तहू का विकृत रूप सरिएनह] १ सरित्पति -सन्ना पुं० [स०] १ समुद्र । २ दे० 'सरितापति' । अदालत । कचहरी । २ शासन या कार्यालय का विभाग । सरित्सुत -सक्षा पुं० [स०] (गगा के पुत्र ) भीष्म । महकमा । दपतर । आफिस । सरित्वान-पञ्चा पुं० [स० सरित्वत् ] सिंधु । समुद्र ।यो०] । सरिश्तेदार--मज्ञा पु० [फा० सरिश्तहुदार १ किसी विभाग का सरित्सुरगा-सज्ञा स्त्री॰ [म० सरित्सुरङगा] नहर । कुल्या [को०] । प्रधान कर्मचारी। २ अदालतो मे देशी भाषाओ मे मुकदमो सरिद्-सद्या स्त्री॰ [म० | दे० 'सरित्' । को मिसले रखनेवाला कर्मचारी।