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पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/१८६

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सख्य सर्व मयूर । मोर। सपख्यि-संज्ञा पु०स०] नाग केसर । सर्फ-सञ्ज्ञा पुं० [अ० सर्फ] १ व्यय । खर्च । जैसे,—इस काम मे सौ सपदिनी--सझा स्त्री॰ [म०] १ गधनाकुली । गध रास्ना। रास्ना। रुपए सर्फ हो गए। २ उपयोग । इस्तेमाल (को०)। ३ २ नकुल कद। व्याकरण मे पदव्याय्या । वाक्यविश्लेपण (को॰) । सभि- वि० [सं०] १ साँप जैसे रगवाला। २ जो सांप की तरह सर्फा-सज्ञा पुं० [फा० सर्फह] १ खर्च । व्यय । २ लाभ । नफा । का हो [को॰] । मुनाफा (को०)। ३ अधिक व्यय । अपव्यय (को०)। ४ कजूसी । कृपणता (को०)। ५ मत्ताइस नक्षत्रो मे १२ वा नक्षत्र । साराति-सज्ञा पु० [स०] दे० 'सारि' (को०] । उत्तराफाल्गुनी (को०। ६ इसाफ । न्याय (को॰) । सरि- सपा पुं० [स०] सर्पो का शत्रु । १ गरुड । २ नेवला | ३ सी-वि० [अ० सर्फी | मर्फ अर्यात पदव्यारया, वाक्यविश्लेपण आदि का ज्ञाता | व्याकरण जाननेवाला [को०] । सपवास- सज्ञा पु० [सं०] १ सर्पो के रहने का स्थान। वांवी । सर्वस-वि० [स० सर्वस्व] दे० 'मग्बम' । २ चदन । मलयज । सदल । सर्मपु'-सज्ञा पु० [म० शर्म] दे० 'शन' | कल्याण । देहि अवलव सशिन- सज्ञा पुं॰ [स०] १ मयूर । मोर । २ गरुड । न विलब अभोजकर चम्धर तेज वल सर्म रासी । तुलसी सपास्य-सज्ञा पु० [स०] १ वह जिमका मुंह साँप की तरह हो । (शब्द०)। साँप के समान मुखवाला । २ खर नामक राक्षस का एक सर्म-सज्ञा पुं० [म०] १ गति । गगन । २ आकाश । व्योम । सेनापति जिसे राम ने युद्ध मे मारा था । ३ स्वर्ग (को०] । साश्या--सज्ञा स्त्री० [स०] एक योगिनी का नाम [को०)। सम-महा पु० [स० शर्मन्] प्रमन्नता। आनद । खुशी (को०] । सपि-सज्ञा पु० [स०] १ घृत । घी । २ एक वैदिक ऋपि का नाम । सर्मक--सज्ञा पु० [अ० समका एक साग । वास्तुक । बथुना [को॰] । यौ०-समिट = घी का मट्ठा या फेन । सर्पिसमुद्र = घी का सर्मा-सज्ञा पुं० [फा०] शीत ऋतु । शीत काल को०] । समुद्र। साई -वि० [फा०] शीत ऋतु का। जाडे का। जैसे, कपडा, सपिका--सज्ञा स्त्री॰ [स०] १ छोटा साँप । २ एक नदी का नाम । पहनावा [को०। सर्पिणी-सज्ञा स्त्री॰ [स०] १ सांपिन । मादा साँप । २ भुजगी लता । सर्रा-सक्षा पु० [अनु० सर मर] लोहे या लकडी की छड जिमपर विशेप--यह सर्प के आकार की होती है और इसमे विप का गराडी घूमती है । धुरी। धुरा। नाश करने और स्तनो को बढाने का गुण होता है । सर्राफ-सज्ञा पु० [अ० सर्राफ] १ सोने चांदी या रुपए पैसे का सर्पित-सज्ञा पुं० [स०] साँप के काटने का क्षत । सर्पदश । व्यापार करनेवाला । २ बदले क लिये पैसे, रुपए प्रादि लेकर सपिरविध-सज्ञा पु० [स०] घृत का सागर । बैठनेवाला। सर्पिमंड-सहा पुं० [स० सपिर्मण्ड] पिघले हुए मक्खन का फेन । मुहा०-सर्राफ के से टके = वह सौदा जिममे किसी प्रकार की सपिर्मेही--सज्ञा पु० [स० सपिमहिन्] एक प्रकार के प्रमेह रोग से हानि न हो। ग्रस्त व्यक्ति। ३ धनी। दौलतमद । ४ पारखी। परखनेवाला । सपिल-वि० [मं०] सॉप के समान किो॰] । सर्राफ नानुआ - मशा पु० [अ० सर्राफ+ ?] विवाह आदि शुभ सपिष्क-महा पु० [म०] दे० 'सर्पिस्' । अवमरो पर कोठीवालो या महाजनो का नौकरो को मिठाई, रुपया पैसा आदि बाँटना। सर्पिप्कुडिका - सज्ञा ली० [स० सर्पिष्कुण्डिका] घी रखने का पात्र । सर्राफा-सझा पुं० [अ० सर्राफह.] दे० 'सराफा' । घृतकुभ। सर्राफी-सञ्ज्ञा स्त्री० [अ० सर्राफी] दे॰ 'सराफी' । सपिष्मान्-वि० [स० सपिष्मत्] घृताक्त । घी से तर चिो०] । सर्व-वि० [स०] सारा । सव । समस्त । तमाम । कुल । सपिम्-मक्षा पु० [स० सपिप्] घृत। धी। यो०-सर्वकाचन = पूरा मोने का बना हुआ। सर्वकाम्य = (१) सपी'-वि० [स० सपिन्] [स० सर्पिणी] रेंगनेवाला । धीरे धीरे जिसकी प्रत्येक व्यक्ति इच्छा करे । (२) सर्वप्रिय । सर्वकृत् 3 चलनेवाला। सर्वोत्पादक । ब्रह्मा । सर्वकृष्ण = अत्यत काला। सर्वक्षय = सी-सज्ञा पुं० [स० सर्पिन्] दे० 'सर्पि' या 'मर्पिस्' । सपूर्ण प्रलय- या विनाश । सर्वक्षित् = जो सब हो। सपेंट-सज्ञा पुं० [अ०] साँप । मई। सर्वजन = सब लोग। सर्वज्ञाता= सब कुछ जाननेवाला । सर्पश्वर-सज्ञा पुं॰ [म०] वासुकि का नाम जो साँपो के राजा हैं [को०)। सर्वत्याग = सपूर्ण का त्याग। सर्वपति, सर्वप्रभु = सबका सप्ट-सक्षा पुं० [स०] चदन । स्वामी। सर्वप्राप्ति = सब कुछ प्राप्त होना। सर्वभयकर = सर्पोन्माद-सझा पु० [स०] एक प्रकार का उन्माद जिसमे मनुष्य सर्प सवको भय पैदा करनेवाला। सर्वभोगीन, सर्वभोग्य % जिसका की भांति लोटता, जीभ निकालता और क्रोध करता है। इसमे उपभोग सभी कर सकें। जो सबके लिये भोग्य हो। सर्वमगल = गुड, दूध आदि खाने की अधिक इच्छा होती है। सबके लिये मगलकारक या शुभ । सर्वमहान् = सर्वश्रेष्ठ ।