पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/१८८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

सर्वजनीन ५००८ सर्वतोमुख सर्वजनीन-वि० [स०] १ सब लोगो मे सवव रखनेवाला। सब का। सर्वतापन सन्ना पुं० [स०] १ (सवको तपानेवाला) मूर्य । सार्वजनिक । २ विश्वव्यापी। प्रसिद्ध 'को । ३ सवका २ कामदेव । हितकारी। सबका कल्याण करनेवाला (को०)। सर्वतिक्ता-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [स०] १ भटाकी। वरदा । २ मकोय । सर्वजनीय-वि० [स०] दे० 'सर्वजनीन' । काकमाची। सर्वजया-सला सी० [म०] १ सवजय नाम का पौधा जो वगोचो मे सर्वतूर्यनिनादी-सना पु० [म० सर्वतूर्यनिनादिन् । शिव (को०] । फूलो के लिये लगाया जाता है। देवकली। २ मागशीर्प सर्वतोगामी-वि० [म० सर्वतोगामिन] जो सभी दिशानो मे जा सके। महीने मे होनेवाला स्त्रियो का एक प्राचीन पर्व । सब जगह गमन करनेवाला । सर्वव्यापी [को० । सर्वजित्' - वि० [म०। १ सवको जीतनेवाला । २ सबसे बढा चढा । सर्वतोदिश-क्रि० वि० [१०] चारो ओर । चतुर्दिक् । सबसे श्रेष्ठ या उत्तम । सवतोधार-वि० [सं०] जिसमें सर्वत्र तेज धार हो । सर्वजित् १-सज्ञा पुं०१ माठ सवत्सरो मे से इक्वीमा सवत्सर । सर्वतोपुर-वि० [म०] जो सब ओर शीर्षस्थानीय हो । २ मृत्यु । काल । ३ एक प्रकार का एकाह यज्ञ । सर्वजीव-सक्षा पु० [स०] सव की प्रात्मा । सर्वात्मा [को०] । सर्वतोभद्र'-वि० [सं०] १ सब ओर से मगल । सर्वाश मे शभ या उत्तम । २ जिसके सिर, दाढी, मूछ आदि मव के बाल सर्वज वी-वि० [40 मर्वजीविन्] जिसके पिता, पितामह और प्रपिता- मुडे हो। मह तीनो जीते हो। सर्वज्ञ'-वि० [स०] [वि० लो० सर्वज्ञा] सब कुछ जाननेवाला। जिसे सर्वतोभद्र'-सञ्ज्ञा पुं० १ वह चीखूटा मदिर जिसके चारो ओर कुछ अज्ञात न हो। दरवाजे हो। २ युद्ध मे एक प्रकार का व्यूह । ३ एक प्रकार का चौखूटा मागलिक चिह्न जो पूजा के वस्त्र पर बनाया सवज्ञ-सद्या पुं० १ ईश्वर । २ देवता । सुर । ३ बुद्ध या अर्हत् । जाता है। ४ एक प्रकार का चित्र काव्य । ५ एक प्रकार की ४ शिव का एक नाम। पहेली जिसमे शब्द के खडाक्षरी के भी अलग अलग अर्थ सर्वज्ञतर-सहा मी० [स०] सर्वज्ञ होने का भाव । लिए जाते है। ६ विष्णु का रथ । ७ बांस । ८ एक गध- सर्वज्ञत्व-सज्ञा पुं० [स०] सर्वज्ञ होने का भाव । सर्वज्ञता। द्रव्या ६ वह मकान जिमके चारो ओर परिक्रमा का स्थान सर्वज्ञा'-वि० सी० [स०] सब कुछ जाननेवाली । हो । १०. एक वन का नाम (को०)। ११ एक पर्वत (को०)। सर्वज्ञा'-सज्ञा स्त्री० १, दुर्गा देवी । २ एक योगिनी । १२ इस नाम का एक चक्र (ज्योतिप)। १३ देवताग्रो का सर्वज्ञाता-वि० [स० सर्वज्ञातृ) दे० 'सर्वज्ञ' । एक वन (को०)। १५ मुडन कराना। क्षौरकर्म कराना। सर्वज्ञानी-सज्ञा पुं० [स० सर्वज्ञानिन्] वह जो सबकुछ जानता हो। १५ हठ योग मे बैठने का एक प्रामन या मुद्रा । १६ नोम सबकुछ जाननेवाला। सर्वज । का पेड। सर्वज्यानि--सञ्ज्ञा स्त्री॰ [स०] सब वस्तुओ की हानि । सर्वनाश । सर्वतोभद्रकछेद-सक्षा पु० [म० सर्वतोभद्रकच्छेद] भगदर की सर्वतत्र'-सधा पु० [स० सर्वतन्त्र] १ सर्व प्रकार के शास्त्र सिद्धात । चिकित्सा के लिये अस्त्र से लगाया हुआ चौकोर चीरा । २ वह जिसने सभी शास्त्रो को पढा हो और उनमे सर्वतोभद्रचक्र-सञ्ज्ञा पु० [स०] ज्यौतिप मे शुभाशुभ फल जानने का निष्णात हो। एक चौखूटा चक्र (को०] । यो०-सर्वतन स्वतन्त्र = सभी तत्न या शास्त्र जिसके लिये अपना सर्वतोभद्रा-सञ्ज्ञा प्री० [स०] १ काश्मरी वृक्ष । गभारी । २ शास्त्र हो । जो सभी ततो मे निष्णात हो । अभिनेत्री । अभिनय करनेवाली। नर्तकी । नटी। सर्वतत्र'--वि० दे० जिसे सब शास्त्र मानते हो। सर्वशास्त्रसमत । सर्वतोभद्रिका-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [स०] काश्मरी वृक्ष । गभारी। गम्हार वृक्ष। जैसे,-सर्वतव सिद्धात। सर्वतोभाव, सर्वतोभावेन-अव्य० [स०] सर्व प्रकार से। सपूर्ण सर्वत - अव्य० [स० सर्वतस्] १ सव ओर । चारो तरफ। २ सव स्प से । अच्छी तरह । भली भांति । प्रकार से । हर तरह से । ३. पूरी तरह से । पूर्ण रूप से । सर्वतोभोगी-सज्ञा पु० [स०] कौटिल्य के अनुसार वह वश्य मित्र जो यौ०-सर्वत पाणिपाद = जिसके हाथ पाँव सब ओर हो। अमिनो, आसारो, (सगी साथियो), पडोसियो तथा जागलिको से रक्षा करे। सर्वत शुभा-मक्षा ली० [स०] कॅगनी नाम का अनाज। काकुन। सर्वतोमुख'- वि० [स०] १ जिसका मुंह चारो ओर हो । २ जो सब दिशाम्रो मे प्रवृत्त हो । ३ पूर्ण व्यापक । सर्वतमोनुद-वि॰ [स०] (सूर्य) जो समग्र अधकार को हटाने या दूर सर्वतोमुख'--सञ्ज्ञा पुं० १ एक प्रकार की व्यूह रचना । २ जल । करनेवाला है। पानी। ३ आत्मा। जीव । ४ ब्रह्म । ५ ब्रह्मा (जिनके चार सर्वतश्चक्षु-वि० [स० सर्वतश्चक्षुप् | जिसकी दृष्टि चारो ओर हो । मुंह है)। ६. ब्राह्मण। विप्र (को०)। ७. शिव। ८. अग्नि । जा सर्वत्र सब कुछ देखता हो । ६. स्वर्ग। १०.आकाश। सर्वत शुभा। प्रियगु।