पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/१९३

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सख्यि ५०१३ सर्वास्तिवाद सर्वाख्य-सचा धुं० [स०] पारद । पाग। सर्वाभिसधी--वि० [म० मभिसन्धिन्] १ सबको धोखा देनेवाला। सर्वाजीव-वि० [स०] सवको जीविका देनेवाला। सबके योगक्षेम की २ टोगी । पाखडी । बचक (को०] । व्यवस्था करनेवाला। सर्वाभिसार-मन्त्रा पु० [स०] चढाई के लिये सपूर्ण मेना की तैयारी सर्वाणी-सज्ञा मी० [स०] दुर्गा। पार्वती । शर्वाणी । या मजाव। सर्वातिथि-सना पु० [स०] वह जो सबका प्रातिथ्य करे। वह जो सर्वामात्य --सञ्ज्ञा पु० [स०] किसी परिवार या गृहस्थी मे रहनेवाले मत्र प्राए गए लोगो का सत्कार करे । घर के प्रारणी, नौकर चाकर आदि सब लोग । (स्मृति)। सर्वातिशायी-वि० [स० सर्वातिशायिन्] सबसे आगे बढ जानेवाला । सर्वायनी-सज्ञा स्त्री॰ [म०] सफेद निसोय । जो सबसे प्रधान या श्रेष्ठतम हो। सर्वायस-वि० [म०] जो पूर्णत लौहनिर्मित हो। पूर्णत लोहे का सर्वातोद्यपरिग्रह-सज्ञा पुं० [स०] शिव का एक नाम (को०] । बना हुया [को०] । सर्वात्मा-सशा पु० [स० सर्वात्मन्] १ मवकी आत्मा। सारे विश्व सर्वायुव--सज्ञा पुं० [म०] शिव का एक नाम [को०] ! की आत्मा। सपूर्ण विश्व में व्याप्त चेतन सत्ता। ब्रह्म । २ सारण्यक-वि० [स०] वन मे होनेवाली वस्तुप्रो को ही खानेवाला शिव का एक नाम । ३ जिन । अर्हत् । को०] । सर्वादृश-वि० [सं०] सबके समान । अन्यो के समान । सर्वार्थ-एडा पु० [स०] समग्र विपय या पदार्थ [को०] । सर्वाधिक-वि० [स०] सबसे अधिक । सबसे आगे।कोला । यौ.-सर्वार्थकर्ता = जो सब वस्तुनो का निर्माण करता हो । सर्वार्यकुशल = सभी विपयो मे चतुर या निष्णात । सर्वार्थ- सर्वाधिकार--मना पु० [स०] १ सब कुछ करने का अधिकार । पूर्ण चिंतक = सवका चितन करनेवाला । प्रधान अधिकारी । सर्वार्थ- प्रभुत्व । पूरा इरिनयार । २. सब प्रकार का अधिकार । साधक = मभी कार्यों को सिद्ध या पूर्ण करनेवाला । सर्वार्थ- सर्वाधिकारी-सज्ञा पु० [म० सर्वाधिकारिन्] १ पूरा अधिकार रखने- साधिका । सर्वार्थसिद्धि। वाला । वह जिमके अधिकार मे पूरा इस्तियार हो। २ सर्वार्थ पाधन-सझा पु० (स०] १ वह जो समी प्रयोजनो को सिद्ध हाकिम । ३ निरीक्षणकर्ता । निरीक्षक । ४ सवका प्रधान । करना हो। २ सब प्रयोजन सिद्ध होना। सारे मतलव पूरे अध्यक्ष (को०)। होना। सर्वाधिपत्य-एता पु० [स०] सवपर प्रभुत्व या आधिपत्य (को॰] । सर्वार्थपाधिका-सज्ञा स्त्री० [सं०] दुर्गा (को०] । सर्वाध्यक्ष---सया पु० [स०] वह जो सबपर शासन करता हो किो०] । सर्वार्थ सिद्ध-सज्ञा पु० [स०] सिद्धार्थ । शाक्य मुनि । गौतम बुद्ध । सर्वानुकारिणी--सञ्ज्ञा स्त्री० [स०] शालपर्णी । सर्वार्थसिद्धि'-सबा स्त्री॰ [स०] सारे उद्देश्यो का सिद्ध होना । लक्ष्य मर्वानुकारी-वि० [म० सर्वानुकारिन्] [वि० स्त्री० सर्वानुकारिणी] पूर्ण होना (को० ॥ सबका अनुकरण या अनुगमन करनेवाला [को०] । सर्वार्थ सिद्धि-सञ्ज्ञा पुं० [म० जनो का एक देव वर्ग (को०] । सर्वानुक्रमणिका, सर्वानुक्रमणी--सज्ञा स्त्री० [सं०] सभी वस्तुप्रो या सर्वार्थानुसाधिनी--सज्ञा स्त्री० [स०] दुर्गा का एक नाम । सर्वार्थ- विषयो की क्रमवद्ध व्योरेवार सूची। साधिका को सर्वानुभू-वि० स०] सवका अनुभव करनेवाला । जो मवकी अनुभूति सर्वालोककर-रक्षा पु० [म०] समाधि का एक प्रकार किो०] । करता हो। सविसर-सञ्ज्ञा पुं० [स०] आधी रात । सर्वानुभूति--सझा झो० [स०] १ समग्र की, सबकी अनुभूति । वह सर्वावसु-सज्ञा पुं० [स०] सूर्य की एक किरण का नाम । अनुभृति जोव्यापक हो । २ श्वेत निवृता या निसोय [को०)। सर्वावास--वि० [स०] दे० 'सर्वावामी' । सर्वान्न-सज्ञा पु० [स०] हर तरह का अन्न । सर्वावासी-वि० [स० सर्वावासिन् ] जिसका निवास सर्वत्र हो को०] । यो०-सर्वान्नभक्षक, सन्निभोजी = हर तरह का अन्न या खाद्य सर्वाशय-सज्ञा पु० [सं०] १ सबका शरण या आधारभूत स्थान । पदार्थ खानेवाला। २ शिव का एक नाम। सर्वान्नीन-वि० [स०] सभी प्रकार के भोज्य पदार्थ सानेवाला । सर्वाशी-वि० [म० सर्वाशिन्। [वि० ८१० सर्वामिनी] सब कुछ खाने- मर्गनभोजी [को॰] । वाला। सर्वभक्षी । (स्मृति)। सर्वाश्य-सज्ञा पु० [स०] सव कुछ खाना । सर्वभक्षण | सर्वान्य--वि० [सं०] जो पूर्णत भिन्न हो [को०] । सर्वाश्रय--सज्ञा पु० स०) वह जो सबका आश्रय स्थान हो। सवको सर्वापरत्व-पशा पु० [स०] मोक्ष । मुक्ति [को० । प्राथय देनेवाला, शिव (को०) । सर्वाभिभू--मसा पुं० [सं०] एक बुद्ध का नाम । सर्वास्तिवाद-सञ्ज्ञा पुं० [म०] यह दार्शनिक मिद्धात कि सब वस्तुप्रो सर्वाभिशकी- वि० [स० सर्वाभिशङ्किन्] शकालु । शक्की स्वभाव का । की वास्तव मत्ता हे, वे असत् नहीं है। सवपर शका करनेवाला [को०] । विशेष--यह वौद्ध मत की वैभाषिक शाखा के चार भिन्न भिन्न सर्वाभिसधक- सज्ञा पु० [स० सर्वाभिसन्धक] सवको धोखा देनेवाला मतो मे से एक हे जिसके प्रवर्तक गौतम बुद्ध के पुत्र राहुल (मनु०)। माने जाते है। हिं० २०१०-२३