पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/२०१

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सवितातनय ५०२१ सव्य' यम, शनि ग्रादि। का नाम। समीप । २ ममान । सवितातनय --मना पुं० [म० मवितृतनय] मूर्य के पुन हिरण्यपाणि, सविशेषक'-वि॰ [२०] १ जो विशेष गुणों से युक्त हो । २ सुविचा- यमराज, शनि ग्रादि। रित (को०] । सवितादैवत-सज्ञा पुं० [स० सनितृदेवत] हम्न नक्षत्र जिमो अधिष्ठाता सविशेपर्क -मशा पु० विशेष गुण [को०) । देवता स्र्य माने जाते हैं। सविभ-वि० [म०] दिली । अतरग । अभिन्नहदय [को०] । सविता पुत्र-सबा पु० [स० मवितृपुब] सूर्य के पुत्र, हिण्यपाणि, मविप -- मश पुं० [सं०] एक नरक fota सविस्तर-ग्र० [०] विवरण के माथ । विस्तार के माथ को०] । सविताफल-सम्मा पु० [स०] पुराणानुसार मेरु के उत्तर के एक पर्वत सवि-मय-वि० [स०] १ चकित । विरिमत । २ सदेहपूर्ण । ३ विम्मय- पूर्वक [को०] । सवितामुत-सा पु० [स० मवितृमुत] सूर्य के पुत्र, शनैश्चर । मवीर-वि० [म०] वीरो मे युक्त । अनुय यि जनो के माय । सवितृल-वि [म०] २० 'सवित्रिय' [को०। सवीर्य-वि० [स०] १ ममान शक्तिवाला। २ शक्तिशाली को। सवीर्या-मशा मी० [म.] सतावर । शतावरी । सवित्र-सक्षा ५० [सं०] प्रजनन । प्रसव करना । लटका जनना । सवित्रिय--वि० [म०] सूर्य सबबी। सविता या स्य का । सवृत्त-वि० [म०] चरित्रवान् (को०] । सवित्री-मचा मी० [सं०] १ प्रसव करानेवाली धाई। धानी । दाई। सवृद्धिक-वि० [म०] व्याज के साथ (को०) । २ प्रमव करनेवाली, माता । मां । ३ गो। मवृष्टिक--वि० [स०] वर्षा मे युक्त । वृष्टियुक्न । सविद्य--वि० [म०J१ विद्वान् । पडित । २ तुत्य या ममान विपय का सवेग'-वि० [म०] १ समान वेगवाना । २ उग्र [को०] । अध्ययन करनेवाला (को०)। सवेग - वि० वि० वेगपूर्वक । शीघ्र गति से। उ०--नले मवेग राम सविध'--वि० [स०] १ निकट । पास । तेहि काना।--मानस २२४२ । सजातीय । एक ही वर्ग का (को॰) । सवेताल--वि० [स०] बेताल मे ग्रस्त यो०] । सविध-सक्षा पु० निकटता । सामीप्य (को॰) । पवेध---सज्ञा पुं० [म०] समीपता [को०)। सविध-अ० विधिपूर्वक । विधिवत् । सवेरा--सज्ञा पुं० [हिं० स + सं० वेला] १. सूर्य निकलने के लगभग सविधि-वि० [स०] दे० 'सविध' । का समय । प्रात काल । सुवह । २ निश्चित समय के पूर्व सविनय - वि० [स०] १. विनययुक्त । विनम्र। २ विनम्रता या का नम । (क्व०)। शिष्टतापूर्वक (को०)। सवेरे--अव्य० [हिं०] तडके । भोर मे। मुबह । सविनय अवज्ञा-संज्ञा स्त्री॰ [स०] दे० 'सविनय कानून भग' । सवेश--वि० [स०] १ निकट । समीप पास । २ विभूपित । अल- सविनय कानून भग-सञ्ज्ञा पु० [स० सविनय + फा० कानून + हिं० कृत (को०)। भग] नम्रता या भद्रतापूर्वक राज्य की किसी ऐसी व्यवस्था या सवेशीय-मज्ञा पुं० [म.] एक प्रकार का माम । कानून अथवा प्राज्ञा को न मानना जो अपमानजनक और अन्याय- सवेप-वि० [म०] अलकृत । मज्जित [को०] । मूलक प्रतीत हो । और ऐसी अवस्था में राज्य की ओर से होने- सवेष्टन-वि० [40] पगटीयुक्त । जिसपर पगडी हो [को०)। वाले पीडन तथा कारादड आदि को धीरतापूर्वक महन करना । सर्वया-सा पु० [हिं० मवा+ ऐया (प्रत्य॰)] १ तोलने का एक भद्र अवना। मविनय अवज्ञा । (सिविल डिसग्रोवीडिएस)। बाट जो ना सेर का होता है। २ एक छद जिसके प्रत्येक सविभक्तिक- वि० [स०] विभक्तियुक्त (को० । चरण मे मात भगण और एक गुरु होता है। इसे 'मालिनी' मविभाल-सशा पु० [स०] नयी या हट्टविलासिनी नामक गध द्रव्य । और 'दिवा' भी कहते है। सविभास-सा पुं० [म०] मूय का एक नाम । विशेप-म गर्न में कुछ लोग से स्त्री लिंग मी बोनते है । सविभ्रम-वि० [सं०] दे० 'सविलाम' [को॰] । ३ वह पहाटा जिगमे एक, दो, तीन यादि मयायो का नवाया सविमर्श-वि० [सं०] दे० 'सवितर्क' (को०] । रहना है। ४ दे० 'वाई'। सविलास-वि० [स०] १ भोग विलास करनेवाला । गोगी। विनासी। सरलक्ष्य-वि० [म०] १ अप्रारतिर । अन्या माविक । २ ग्जित । २ नोडा या प्रणययुक्न (को०) । नजायका । मिदा [को०)। सविगक-वि० [म०] शक्ति । शकाययन [फो०] । योर-गवनय म्मित = अस्वाभाविक मुस्कान । अपभग हेमो। सविशेप-वि० [सं०] १ विशिष्ट गुणों से युक्त । २ विशिष्ट । मध्य-वि० [म.] वाम । वायां । २ दक्षिण । दाहिता । असाधारण । साम। ३ अतर करनेवाला। विशेषनामूचा विशेप-पच्य गन्द का वाम और दलिग दोनो अयं में प्रयोग (को०)। विलक्षण (गे। हता है। पर गाधारणत यत् वाम पे हो प्रय में प्रयुम्न हिं० २०१०-२४