पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/२०४

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४ , . - सस्ताना ५०२४ सह उन्हें यह मकान बहुत सस्ता मिल गया। २ जिमका भाव बहुत सस्यमारी'-सज्ञा पु० [म० सस्यमारिन्] मूसा । चूहा। उत्तर गया हो । जमे,--अाजकल सोना मस्ता हो गया है। सस्यमारी'--वि० शस्य या अनाज का नाश करनेवाला। यो०-सस्ता ममय = ऐसा समय जब कि सब चीजे सस्ती हो। सस्यमाली-सञ्ज्ञा स्त्री० [स०] धान्य से पूर्ण धरती को०] । मस्ता माल = घटिया दर्जेका माल । सस्यगीपक-सज्ञा पु० [म०] अनाज की बाल । शस्यमजरी। महा०-सस्ता लगना = कम दाम पर वेचना। दाम या भाव कम शस्यशूक-सना ० [स०] यव, धान आदि की वालो का नुकीला कर देना। सस्ते छटना = जिस काम मे अधिक य॑य, परिश्रम अगला भाग या टूंड (को०) । या कष्ट आदि होने को हो, वह काम थोडे व्यय, परिश्रम या सस्यसवत्सर-पक्षा पु० [स०] शाल । साखू । कष्ट मे हो जाना। सस्यसवर--स्शा पु० [स० सस्यसम्बर] १ सलई। शल्लकी। २ ३ जो सहज मे प्राप्त हो सके। जिसका विशेष प्रादर न हो । शाल का वृक्ष। घटिया । साधारण । मामूली । (क्व०) । सस्यसवरण-सज्ञा पु० [सं० सस्यसम्बरण] शाल या अश्वकर्ण सस्ताना'-क्रि० अ० [हिं० सस्ता+ना (प्रत्य॰)] किसी वस्तु का वृक्ष । साखू । कम दाम पर विकना । सस्ता हो जाना । सम्यहता, सस्यहा-वि०, सज्ञा पु० [स० सस्यहन्त, मस्यहन्] दे० सस्ताना-क्रि० स० किसी चीज का भाव सस्ता करना । सस्ते दामो 'शस्यहता'। पर बेचना। सम्या--सज्ञा स्त्री० [स०] अरनी । गणिकारिका । गनियल । सस्ती-सञ्ज्ञा स्त्री० हिं० सस्ता + ई (प्रत्य॰)] १ सस्ता होने का भाव । सम्याद-वि० [म०] अनाज या खेत चर जानेवाला । शस्यभक्षक [को०)। सस्तापन। अल्पमूल्यता । महँगी का अभाव। २ वह समय जव कि सब चीजे सस्ते दाम पर मिला करती हो । जैसे,-सस्ती मे सस्येष्टि--सज्ञा स्त्री० [स०] फसल के पकने पर किया जानेवाला यही कपडा तीन पाने गज मिला करता था। एक प्रकार का यज्ञ [को०] । सस्त्रीक-वि० [सं०] जिसके साथ स्त्री हो । स्त्री या पत्नी के सहित । सस्वेद-वि० [स०] पसीने से युक्त । पसीने से लथपथ [को०) । जैसे,-वे सस्त्रीक यहाँ पानेवाले है। सस्वेदा--सञ्ज्ञा स्त्री० [स०] वह कुमारी कन्या जिसका कौमाय मद्य सस्नेह-वि० [स०] १ स्नेहयुक्त । प्रेमपूवक । प्रेमपूर्ण । २ स्नेह या भग हुआ हो (को०] । तैलयुक्त (को०। सहडुक-सज्ञा पु० [स० साटुक] एक प्रकार का मास का रसा सस्पृह-वि० [स०] स्पृहायुक्त । इच्छायुक्त [को०] । या गोरवा। सस्पेंड - वि० [अ०] जो किसी काम से, किसी अभियोग के सबध मे, जाँच विशेष-वकरे आदि पशुनो के मासभरे अगो के टुकडो को धोकर पूरी न होने तक, अलग कर दिया गया हो। जो किसी काम से, घी मे हीग आदि का तडका देकर धीमी आँच मे भून ले। किसी अपराध पर, कुछ समय के लिये छुडा दिया गया हो। अनतर उसे छानकर पानी, नमक, मसाला आदि डाले और मुअत्तल । जैसे,--उसपर घूम लेने का अभियोग है, इसलिये वह पक जाने पर उतार ले । भावप्रकाश मे यह शोरवा शुत्रवधक, सस्पेंड कर दिया गया है। वलकारक, रुचिकर, अग्निदीपक, त्रिदोष शाति के लिये श्रेष्ठ क्रि० प्र०-करना। और धातुपोषक बताया गया है । सस्फुर-वि० [स०] १ स्पदनशील । २ जीवित 'को०] । सहँगा--वि० [देश॰] जो महँगा न हो। सस्ता। महंगा शब्द के साथ सरमय-वि० [म.] १ आश्चर्ययुक्त । चकित । २ हँसता हुआ। यौगिक रूप में प्रयुक्त । जैसे--महँगासहंगा। उ०-मनि सस्मित। ३ घमडी। अभिमानी (को०] । मनिक महगे किरा संगे तृन, जल, नाज । तुलसी ऐसो जानिए सस्मित-वि० [म०] हँमता हुा । मुसकान युक्त [को० । राम गरीबनेवाज ।-तुलसी ग्र०, पृ० १५२। सस्य-सक्षा पु० [म०] १ धान्य। २ शास्त्र । ३ उत्तम गुण । ४ सह–अव्य० [स०] १ सहित । समेत । २ एक साथ । युगपत् । वृक्षो का फल । ५ दे० 'शस्य' । ६ एक कीमती पत्थर (को०)। सह-वि० [स०] १ विद्यमान । उपस्थित । मौजूद । २ सहिष्णु । विशेप-- सस्य' के यौगिक आदि शब्दो के लिये दे० 'शस्य' के सहनशील। ३ समर्थ। योग्य । सशक्त । ४ पराभूत या यौगिक शब्द । वशीभूत करनेवाला (को॰) । सस्यक'-सज्ञा पुं० [म०] १ वृहत्स हिता के अनुसार एक प्रकार की सह-सज्ञा पु० [स०] १ सादृश्य । समानता। बरावरी। २ मणि । २ तलवार। ३ शालि। ४ साधु । ५ नारियल की सामर्थ । बल । शक्ति । ३ अगहन का महीना। ४ महादेव गिरी (को०)। ६ शस्त्र (को०)। का एक नाम । ५ रेह का नोन । पाशु लवण । ६ अग्नि सस्यक-वि०१ सत्य से युक्त । २ जो योग्यता, सद्विचार, अच्छाई (को०)। ७ कृष्ण के एक पुत्र का नाम जिसकी माता का नाम आदि मद्गुणो से युक्त हो [को०] । माद्री था (को०)। ८ मन् का एक पुत्र । ६ धृतराष्ट्र का एक सस्यप्रद-वि [स०] उपजवाला । जो उपजाऊ हो [को०] । पुन । १० प्राचीन काल की एक प्रकार की वनस्पति या बूटी सस्यमजरी-सबा स्त्री॰ [स० सस्यमञ्जरी] दे० 'शस्यमजरी' । जिसका व्यवहार यज्ञो आदि मे होता था ।