पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/२०९

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सहयोगवाद ५०२६ सलोकयातु सह्योगवाद - मया पुं० [सं०] राजनीतिक क्षेत्र मे सरकार से सह्योग बनवर हाना बनवत्त । महगनगी% (१) मगर ग अर्थात् उसके साथ मिलकर काम करने का मिदात । निवासी । जगली। (२) तपमी। सहयोगवादी--माता पुं० [स० महयोग + वादिन] गजनीतिक क्षेत्र मे महराई'-१० [प्र. महग+हिं० प्रागनी । पन्य । पापा । सरकार से मह्योग करने अर्थात् उसके माथ मिलकर काम सहराई -पमा मौ० [हिं० रहर (= शहर) + ग्राः] ३० 'मह । करने के सिद्धात को माननेवाला। सहाती--३० [फ • शहर + हिं० ग्राती (प्रत्य०), ३० 'कहानी'। सहयोगो-माशा पु० [म०] १ महायक । मददगार । २ वह जो किमी यो०--गगनोपन = दे० 'महरः । के साथ मिलकर कोई काम करता हो। मयोग करनेवाला । माथ काम करनेवाला। ३ हमउमर । ममवयस्क । ४ वह जो महराना'-क्रि० म० [हिं० महलाना। धीरे धीरे हाथ फेरना । महलाना। मनना । उ०माघ छानि को गाजिआयन किसी के साथ एक ही समय में वर्तमान हो। समकालीन । ५. वापिन पं गुरमी गुन चोप । न्योरनि से महरामत माप ग्राधुनिक भारतीय राजनीतिक क्षेत्र मे मब वामो में सरकार के साथ मिने रहने, उमकी काउमिलो श्रादि मे ममिलित होने प्रहारनि दे रहै प्रतिपोपै । --गुमान (शब्द०)। और उसके पद तथा उपाधियां आदि ग्रहण करनेवाला सहरानार-कि० अ० [हिं० सिहरना] उर ने कॉपना । निहर व्यक्ति । उठना। सहर'--सज्ञा पुं० [अ० प्रात काल । मोर । सवेरा । महरि - मना पु० [मं०] १ सूर्य । २ वृष । मांड। सहर--मजा पु० [अ० सेह्र] जादू । टोना । सरिया-सया पुं० [अ० महरगही] एप्रकार का गहें । सहर --मशा पुं० [फा० शहर, गह्र] दे० 'शद्र' । सहरी' '-~-मया मी० [सं० गफगे] गफरी मनी । शफरी । उ०- सह-सज्ञा पुं० [हिं० मिहोर] दे० 'मिहोर' (वृक्ष)। पान भी महरी माल मुत बारे बारे केवट को जाति कछु वेद न पहाइहीं। मब परिवार मेग याही लागे राजा जू हा दीन सहरा--कि० वि० [हिं० महारना (= महना) या सहताना (= चित्त हीन कमे, दूमरी गहारहीं। तुलसी (शब्द०)। सुमताना)]। धीरे। मद गति से । रुक रुक कर। जैसे,-- तुम तो मब काम महर सहर कर करते हो। सहरी '-मशा सी० [अ०] व्रत के दिन वहुत तडके किया जाने वाला भोजन । सरगहीं। विष दे० 'सहरगही'। सहरई-सक्षा स्त्री० [फा० शहर, हिं० महर+ई। नागरिकता । शहरी होने का भाव । शहरीपन । सहरी'-वि० [अ०] प्रामातिका । प्रात कालीन [को०)। यौ०-महरईपन = सहरई । शहरीपन । सहरुपा-महा पुं० [म.] चद्रमा के एक पोटे का नाम । सहरक्षा-मला पुं० [सं० सहरक्षस्] तीन प्रकार की यज्ञाग्नियो मे से सहर्प-वि० [स०] हर्षयुक्न । अानदययन । प्रसन्नतापूर्वक । मे से एक किो०] । सहल-वि० [अ०, मि० म० सरल] जो कठिन न हो । मरन । महज । सहरगही-सज्ञा स्त्री॰ [अ० महर+फा गह] वह भोजन जो किसी ग्रामान । उ-टहल महल जन महल महल जागन चाग्उि दिन निर्जल व्रत करने के पहले बहुत तडके या कुछ रात रहे जुग जाम मो। देवन दोप न खीझत रीझत मुनि सेवा ही किया जाता है | सहगे। गुनगाम मो।--तुलमी (शब्द॰) । विशेष-उन प्रकार का भोजन प्राय मुसलमान लोग रमजान यो-महान नार = काहिन । मुस्त । महत इनकारी= टिनाई। दिनो मे रोजा रखने पर करते है। वे प्राय ३ बजे रात को मालम्प । नुन्नी। उठार युछ भोजन कर नेते हैं, और तब दिन भर निर्जल पार सहलगी-सया पु० [हिं० पाथ+गना] वह जो माथ हो ले । गम्ने निराहार रहा है । हिदुग्रो मे स्त्रियां प्राय हरतालिका तीज का माथी । हागही। व्रत पने से पहले भी इसी प्रकार बहुत तरके उठकर भोजन सहलाना'-निम० [हिं० महर ( गोरे) ग अनु०] १ धी धीरे कर लिया करती हैं। और इसे 'मरगहीं' कहतो। दे० मिनी बस्न पर हार फग्ना। महराना । मुहगना । जो,-- 'मरगहीं'। नरम महता, पैर महताना । 3०-पागे पंग होनतो क्रि० प्र०-गाना। मत्ताने नगी।-शरला या (२०)। २ महरना-कि० अ० [हिं० मिहना। २० 'मिहरना' । ३ गदगुदाना। सहरणा-सा पी० [म०] वा मग । जगलो मग । मुद्गपणी । मयो कि--देना। सहरा-मया पुं० [अ०] जगल । पन । अरएप । २ मिपारगोग नामर सहलाना--गि ग्र० गदगुदी होता। जनाना । जैसे-टी देर में गतु । ३ नटियन मैदान । रेगिस्तान । गर भूमि । पर नग्रा महता रहा है। यो-महा याजम = अफ्रीका की विशाल मरुभूमि और जग। सलोख्यातु-० [सं०] नौलों के अनुसार एक लारा नाम । महरागर्द = पनेचर। काननचारी । सहरागर्दी = वन परि उमगा । वह गेरु जहा मन्प्य वमते है । पृषिषी। हिं. २०१०-२५ मानना।