पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/२१

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हिंदी शब्दसागर स-हिंदी वर्णमाला का बत्तीमा व्यजन । यह ऊष्म वर्ण है । इसका विशेष--उन दिन नकट दूर करनेवाले गणेश देवता के उद्देश्य से उच्चारण स्थान दत है, इसलिये यह दती 'स' कहा जाता है। व्रत आदि रखा जाता है। कुछ लोग श्रावण मास के कृप्रा। स-अव्य० [म० सम्] १ एक अव्यय जिमका व्यवहार शोभा, पक्ष की चतुर्थी को भी सकट चौथ कहते है। समानता, मगति, उत्कृष्टता, निरतरता, नौचित्य आदि मूचित सकटस्थ---वि० [न० मङ्कटस्थ] १ सकट मे पडा हुया । विपद्ग्रस्न । करने के लिये शब्द के प्रारभ मे होता है। जैसे,--सभोग, २ दुखी। सयोग, मतार, मतुष्ट ग्रादि। कभी कभी इमे जोडने पर भी सकटा--सज्ञा स्त्री० [म० नङ्कटा] १ एक प्रमिद्ध देवी मनि जो मूल शब्द का अर्य ज्यो का त्यो बना रहता है, उसमे कोई वाराणमो मे है और सकट या विपत्ति का निवारण करनेवाली परिवर्तन नहीं होता। २ मे। मानी जाती है। २ ज्योतिप के अनृमार पाट योगिनियो मे से एक योगिनी। सg'-प्रत्य० [हिं०] करण कारक और अपादान कारक का चिह्न । से । उ०- एते स तनु गुण हरयो । न्याइ वियोगु विधाता विशेष--बाको मात योगिनियाँ ये हैं--मगला, पिंगला, धन्या, करयो ।-छिताई०, पृ० ६३ । भ्रमरी, भद्रिका, उल्का और सिट्टि । सकgf-सज्ञा स्त्री० [म० शङ्का] दे० 'शका'। उ०—(क) जलधि सकटाक्ष'--सक्षा पु. [म० सङ्कटाक्ष] धो का पेड । घव । पार मानम अगम रावण पालित लक । सोच विकल कपि सकटापन्न--वि० [स० मङ्कापन्न] मकट या विपत्ति मे पडा हुग्रा । भालु सवु दुहु दिस सकट सक ।--तुलसी (शब्द०)। (ख) उ०--छुरे की धार के समान दुर्गम और सकटापन्न है। --मत० दरिया, पृ० ५६ । श्रीफल कनक कदलि हरपाही । नेकु न सक सकुच मन माही । सकटी--वि० [म० सङ्कटिन्] विपद्ग्रस्त । दुखी । सकटापन्न (को०) । मानस, ३॥२४॥ सकट'- वि० [स० मम + कृत, मङ्कट, प्रा. सकट] १ एकत्र किया सकटीत्तीर्ण-वि० [म० सङ्कटोत्तीर्ण] जो मकट को पार कर गया हुअा। २ घनीभूत । ३ तग । क्षीण । ४. दुर्गम । दुर्लध्य । ५ हो । भयानक । कष्टप्रद । दुखदायी। ६ सकोणं । सँकरा । तग। सकत पु--सधा पुं० [सं० सङ्केत दे० 'सकेत' । ७ पूर्ण । भरा हुआ (को०)। मकथन--मश पु० [म० सकथन, मकथन] १ वार्ता । बातचीत । २. सकट---सज्ञा पु० १ विपत्ति । अाफत । मुसीवत । 30--लालन गे वर्णन । व्याख्या को०] । जब ते तव ते विरहानल जालन ते मन डाढे । पालत हे ब्रजगायन सकथा--मझा ली० [स० सकया, नकथा] १ वार्ता । वातचीत । २. ग्वाल हुतो जन आवत मकट गाढे। --दीनदयाल (शब्द०)। व्यारना। प्रतिपत्ति [को०] । २ दुख । कष्ट । तकलीफ । ३ भोड । समूह। ४ सेंकरी मकथित--वि० [स० मकयित, सद्गथित] कहा हुन । वर्णित । व्यारवात को। राह । ५ वह तग पहाडी रास्ता जो दो बडे और ऊंचे पहाडो सकना--कि० अ० [मं० शङ्कन] १ का करना। सदेह के बीच से होकर गया हो। जमे, गिरिसकट । करना । २ इरना। भयभीत होना। उ०--पांड परे पनिका यो०-सकटचतुर्थी = दे० 'सकटचीय'। मकटनाशन = विपत्तियो पै परी जिा सकति नोनिन होति न मोही।--देव (शब्द०)। का नाश करनेवाला । सकटमुख = तग या संकरे मुंह का। सकनी--मचा जी० [स० गाकिनी] दे० 'शाकिनी' । उ०-डकनी सकटमोचन = (१) काशो में गोस्वामी तुलसीदानजी द्वारा सफनी घेरि मारी। -रामानद०, पृ०४। स्थापित हनुमानजी की एक प्रसिद्ध मूनि । (२) सकट से मकर'-सज्ञा पुं० [न० सङ्कर] १ वह धूल जो भाड् देने के कारण मुक्त करनेवाला । मकटनाशन । उडती है। २ गाग के जलने का शब्द। ३. दो पदार्थों का मकट-सज्ञा पुं० [श०] एक प्रकार का बत्तख । परस्पर मिथरण । दो चीजो का आपस में मिलना। ४ न्याय सकट चौय--मरा ची० [हिं० सकट+चौथ] माघ मास के कृष्ण के अनुसार चिनी एक स्थान या पदार्ग मे अत्यनाभाव श्रीर पक्ष की चतुर्थी। समानाधिकरण का एक ही मे होना। जेने,-मन मे मूर्तत्व