पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/२२१

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सांवत्मररथ ५०४१ सॉकटाना सावत्मररथ-~-ज्ञा पु० [म.] सूर्य, जिनका रथ सवत्मर है [को०] । मावत्मरिक'---वि० [सं०] [वि० सी० सावत्सरिक] वार्षिक । सवतार मे सवधित। सावत्सरिक-- ज्ञा पु० १ वार्षिक भूमि कर । सालाना मालगुजारी। २ वषभर मे चुका दिया जानेवाला ऋण । ३ ज्योतिर्विद । ज्यौतिपी [को०)। सावत्मरिक श्राद्ध - सज्ञा पुं० [म०] प्रति वर्ष किया जानेवाला श्राद्ध वार्षिक श्राद्ध। सावत्सरी--सज्ञा स्त्री॰ [म०] मृतक का एक साल बाद होनेवाला श्राद्ध । वरसी [को०] । सावत्सरीय---वि० [स०] वर्ष सबधी । वार्षिक । सावत्सर । सावर्तक--सज्ञा पु० [म०] प्रलयाग्नि । प्रलय काल की अग्नि । प्रलय मे सवधित या प्रलयकाल मे प्रकट होनेवाली आग (को०] । सावादिक'--वि० [स०] १ बोलचाल में प्रयुक्त । सवाद, वार्तालाप आदि मे प्रचलित । २ विवादास्पद । बहस तलव (को०] । मावादिक-सज्ञा पु०१ विवादग्रस्त विपय । २ तार्किक । तर्कशास्त्री। नैयायिक [को०)। सावास्यक-सज्ञा पु० [म०] एक साथ रहना । एक जगह रहना किो०। मावित्तिक-वि० [सं०] अधिकरणनिष्ठ । विषयगत । विषयो !को०] । साविद्य--सशा पु० [स०] रजामदी। सहमति [को०] । सावृत्तिक - वि० [सं०] [१० स्त्री० सावृत्तिकी] अलोक । म्रातिजनक । ऐद्रजालिक [को०)। साव्यावहारिक' -सज्ञा पु० [म०] कपनी के हिस्सेदार होकर काम या व्यापार करनेवाला व्यापारी। साव्यावहारिक'- वि. प्रामफहम । प्रचलित । व्यावहारिक [को॰] । साश-वि० [स०] जो अश सहित हो। अशयुक्त। जिसमे भाग या हिस्साहो (को०)। साशयिक'- वि० [स०] १ सदेहास्पद। सदिग्ध । २ जो निश्चिन न हो अनिश्चित । ३ सदेही [फो०] । साशयिक-सा पु० अनिश्चित, सदहास्पद या खतरे से भरा हुआ काम (को०)। साशयिकत्व-सज्ञा पुं॰ [स०] सदेह । शका । अनिश्चय (को॰) । सासगिक-वि० [स०] सस्पर्श या छूत मे उत्पन्न । सपर्कजन्य | ससर्गजन्य (को०)। सासारिक--वि० [सं०] ससार सबधी। इस ससार का । लौकिक । ऐहिक । जैसे,--अब आप सासारिक झगडो से अलग होकर भगवद्भजन मे लीन रहते है। सासिद्धिक --वि० [स०] १ प्रकृति से सबधित । प्राकृतिक । स्वाभा- विक। २ वेव सवधी। दैविक । देवी। ३ यादृच्छिक । ऐच्छिक । स्वत प्रवर्तित कि०] । यौ०-सासिद्धिक प्रवाह - जल का स्वाभाविक या स्वत प्रवनित प्रवाहक्रम अथवा गति । सासिद्धय-संज्ञा पु० [सं०] जीवन के परम लक्ष्य का प्राप्त कर लेने की स्थिति । ससिद्धि । परिपूर्णता यिो०)। सासृष्टिक-वि॰ [स०] सीधे सवध रखनवाला [को॰] । सास्कारिक-वि० [सं०] सम्कारमबवी । जो प्रत्येप्टि अथवा अन्य सस्कारा से सबद हो (को०] । सार कृतिक - वि० [स०] परपरा, सत्कार और आचार विचारा मे सबद ! सस्कृति सवधी किो०] । सास्थानिक-वि० [म.] ममान देश या स्थान से मनधित । सास्राविए-मा पु० [सं०] प्रवाह । बहाव । धारा (को०)। साहत्य-सह पुं० [स०] सपक । सबध । साथ [को०)। साहननिक-वि० [सं०] [वि० सी० साहननिको] शरीर से सबधित । शारीरिक (को। सॉइयाँ-सज्ञा पुं० [मं० स्वामी] दे॰ 'साई, साई। उ०-वाका परदा खोलि के समुख ले दीदार । वालसनेही साइया आदि अत का यार |--कवीर सा० स०, पृ० १९ । सॉई --सशा पु० [सं० स्वामी, प्रा० सामि, सामो] १ स्वामी । मालिक । उ०-आप को साफ कर तुही साई।--केशव० अमी०, पृ. ६ । २ ईश्वर। परमात्मा । परमेश्वर । उ०- गुर गौरीम साँई सीतापति हित हनुमानहिं जाइ + । मिलिही मोहि कहाँ की वे अव अभिमत अवधि अघाइ के ।--तुलसी (शब्द०)। ३ पति । शौहर । भर्ता । उ०- (क) चल्यो धाय कमठी चढाय फुरकाय प्राख वाई जग साई वात पछु न तनक को। हृदयराम (शब्द०) (ख) पूम मात सुनि सखिन पै साँई चनत सवार । गहि कर बीन प्रवीन तिय राग्यो राग मलार ।-विहारी (शब्द॰) । ४ मुसलमान फकीरो की एक उपाधि । साँकड़--मशा पु० [स० शृदखल] १ शृखला। जजीर । सोकड । २. सिकडो जो दरवाजे मे लगाई जाती है। अगला। ३ चाँदी का बना हुया एक प्रकार का गहना जो पैर में पहना जाता है। सांकड़ा। सॉकडभीड़ो+-वि० [हिं० सँकरा] समुचित । छोटा । मकीर्ण । उ.---गुडिया ढाहै मर्दैधगज ताता चाल तुरग। माकड भीडो सुरग है, जिको कहीजे जग ।--बांकी ग्र, भा० १, पृ० ६ । साँकडा-सज्ञा पु० [स० शृङखला, प्रा० सक्ला] एक प्रकार का प्राभू- पण जो पैर मे पहना जाता है। यह मोटो चपटी सिकडी की भांति होता है । प्राय मारवाडी स्त्रियाँ इसे पहनती है। साँकड़ा-सज्ञा पुं० [मटकीणं ] क्षुद्र स्वभाव या बृत्ति का । सकीणं । उ०-सतन सांकडो दुष्ट पीडा करं, वाहर वाली वेगि आवै ।-दादू०, पृ० ५४६ । साँकड़ाना-क्रि० स० [हिं० मांकड] बांधना । माकल मे बांधना। उ०-दोन फोज घोडा की वाहे सौरुडाया। -शिवर०, पृ०७४। साँकड़ाना--क्रि० स० [हि सकोणं] संकरा कर देना । मकीर्ण कर देना। रोकना । उ०-किल्ला को सफोलो मोरिचा नै सांकडाया।-शिखर०, पृ० ५० ।