सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/२२९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

साईक ५०४४ साउ साइक-सज्ञा पु० [स० शायक, प्रा० साइक] वारण । दे० 'शायक' । साहल--सज्ञा पु० [अ०] [ी० साइरा १ प्रार्थी । उम्मीदवार । उ०-बीर पठन कर साइक तानिय ।-५० रासो, पृ० १५३ । पासरा लगानेवाला। २ भिक्षुक । भिखमगा। ३ जिज्ञासा करनेवाला । प्रश्नकर्ता । उ०--कहे तव हाजिरो ने अर्ज यूं साइकिल-मज्ञा स्त्री० [अ०] दो पहियो की पैरगाडी। बाईसिकिल । पांवगाडी। उ०-उसके पिता की एक बहुत बडी साइकिलो कर । हुए साइल के एं पालम रहबर ।-दक्खिनी०, पृ० ३२६ । की एजेसी थी।- तारिका, पृ०७ । साई'-सा पुं० [स० स्वामी] १ स्वामी । मालिक । प्रभु । २ ईश्वर। साइग--सक्षा पु० [अ० साइग] स्वर्णकार । सुनार (को॰] । परमात्मा। ३ पति । खाविद । ४. एक प्रकार का पेड़। दे० 'साँई। साइक्लोपीडिया- सज्ञा स्त्री० [अ०] १ वह बडा ग्रथ जिसमे किसी एक विषय के अगो और उपागो ग्रादि का पूरा वर्णन हो। साई'-सज्ञा स्त्री० [म० स्वामिक, प्रा० साइन या हि० साइत ?] वह धन जो गाने बजानेवाले या इसी प्रकार के और पेशेकारो को किसी २ वह बडा ग्रथ जिसमे ससार भर के सब मुख्य मुख्य विषयो और विज्ञानो ग्रादि का पूरा पूरा विवेचन हो। विश्वकोष । अवसर के लिये उनकी नियुक्ति पक्की करके, पेसगी दिया इनमाइक्लोपीडिया। जाता है। पेशगी । बयाना। साइत'-सज्ञा सी० [अ० साअत] १ एक घटे या ढाई घडी का ममय । क्रि० प्र०-देना ।-पाना।--मिलना ।-लेना , २ पल । लहमा । ३०-अभी एक साइत हुई कि मै राजभवन मुहा०--साई बजाना = जिससे साई ली हो, उसके यहाँ नियत और अपने अनुचरो की स्वामिनी और अपने मन की रानी समय पर जाकर गाना बजाना । थी।-भारतेदु ग्र०, भा० १, पृ० ६०६ । ३ मुहूर्त । शुभ साई--सञ्चा श्री० [स० सहाय] वह सहायता जो किसान एक दूसरे लग्न । उ०-अर्थात् कावुल लेना शुभ साइत मे हुआ था कि को दिया करते है। सब सताने काबुल मे हुई।-हुमायू०, पृ० १३ । साई सज्ञा स्त्री॰ [देश॰] १ एक प्रकार का कीडा जिसके घाव पर क्रि० प्र०-देखना।--निकलना।-निकलवाना। बीट कर देने से घाव मे कीडे पैदा हो जाते है। २ वे छडे जो यौ०-साइत सुदेवस = शुभ लग्न और दिन । गाडी के अगले हिस्से मे वेडे बल मे एक दूसरे को काटते हुए साइत २-० [फा० शायद] दे० 'शायद'। उ०-साइत तुम्हे रखी जाती है और जिनके कारण उनकी मजबूती और भी अनजान समझ कर रास्ते मे कुछ दिक करे ।-गोदान, पृ०८। बढ जाती है। साइनबोर्ड--सञ्ज्ञा पु० [अ०] वह तरता या टीन आदि का टुकडा जिस- पर किसी व्यक्ति, दूकान या व्यवसाय आदि का नाम और पता साई' सज्ञा स्त्री० [हिं०] ३० 'साईकाँटा'। आदि अथवा सर्वसाधारण के सूचनार्थ इसी प्रकार की कोई साईल-सना पु० [स० स्वामी, प्रा. सामि] स्वामी । मालिक । और सूचना बडे बडे अक्षरो मे लिखी हो। उ०-है परष परष साई सुकीय । छुट्टत अरस जन किरन- विशष-ऐसा तख्ता दूकान, मकान या सग्था आदि के आगे किसी कीय।-पृ० रा०, ११.२५ । ऐसे स्थान पर लगाया जाता है, जहाँ मव लोगो की दृष्टि पडे । साईकॉटा-सञ्ज्ञा पु० [हिं० साही ( = जतु) + काँटा] एक प्रकार का साइवडी ---सज्ञा स्त्री० [१] वह धन जो किसान फसल के समय धार्मिक वृक्ष । साई। मोगली। कार्यों के निमित्त देते है। विरोष -यह वृक्ष बगाल, दक्षिण भारत, गुजरात और मध्यप्रदेश साइबान--मज्ञा पु० [फा० सायवान] दे॰ 'सायवान' । मे पाया जाता है। इसको लकडी सफेद होती है और छाल चमडा सिझाने के काम में आती है। इसमे से एक प्रकार का साइम-वि० [अ०] [वि॰ स्त्री० साइमा] रोजा या व्रत रखनेवाला। दे० 'सायम'। कत्था भी निकलता है। साइयाँ-सज्ञा पुं० [म० स्वामी, प्रा० सामी, साई] दे० 'साई'। साईबान सबा पु० [फा० सायबान, साइबान] दे० 'सायवान' । उ०-जाको राखे साइयाँ मारिन सकिहै कोइ। बाल न बांका उ०-बीच में एक बडा कमरा हवादार बहुत अच्छा वना करि सके जो जग बैरी होइ ।--कवीर (शब्द०)। हुअा था। उसके चारो तरफ सगमरमर का साईबान और साइर--सज्ञा पुं० [अ०] आमदनी के वह साधन जिनपर जमीदारो साईवान के गिद फव्वारो की कतार ।-श्रीनिवास प्र०, को प्राय लगान नहीं देना पडता था। जैसे,-स्वतत्रता के पूर्व पृ० १७७॥ जगल, नदी, वाग, ताल आदि जो कही कही सरकारी कर से साईस-संशा पु० [हिं० रईस का अनु०] [अ० साइम, सईस ( = घोडे मुक्त रहते थे। दे० 'सायर। साइर'-वि० [वि॰ स्त्री० साइरा] १ चक्रमणशील । घूमने फिरनेवाला। का रखवाला)] वह आदमी जो घोडे की खबरदारी और सेवा करता है, और उसे दाना घास आदि देता, मलता और टहलाता २ कुल । पूरा । ३ वचा हुआ। शेप । बाकी (को] । तथा इसी प्रकार के दूसरे काम करता है। साइरg:--सशा पु० [स० सागर, प्रा० सायर] दे० 'सागर' । उ०- (क) दो लागी साइर जल्या पखो बैठे अाइ ।--कवीर ग्र०, साईसी-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [हिं० साईस + ई (प्रत्य॰)] साईस का काम, भाव या पद। पृ० १२ । (ख) साइ सप्त साइर करी, करी कलम बनराइ। --पोद्दार अभि० ग्र०, पू ४३५ । साग-सबा पु० [स० साध, प्रा० साह] दे० 'साहु ।