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पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/२३१

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साकार ५०५१ साक्षात्कार (शब्द०)। साका चलाना = रोव जमाना। धाक जमाना । साकुरुड--मज्ञा पुं० [म० माकुरण्ड] दे० 'सकुरुड' । साका बॉवना = दे० साका चलाना' । उ०-किते विकरमाजीत साकुल--वि० [स०] हतबुद्धि । परीशान । घबडाया हुअा [को॰] । साका वाँधि मर गए ।--पलटू०, भा० २, पृ० ८४ । साकुशा--मश पुं० [हिं०] घोडा । अश्व । बाजि । ६ कोई ऐसा वडा काम जो सब लोग न कर सके और जिसके माकूत--वि० [म०] १ अर्थयक्त । सार्यक। साभिप्राय । २ जीडा- कारण कर्ता की कीति हो । उ०-गीध मानो गुरु, कपि भालु पूर्वक । ३ शृगारप्रिय । स्वेच्छाचारी। विपयी (को०] । मानो मीन के, पुनीत गीत साके सब साहब समत्थ के । साकूतस्मित-सज्ञा पु० [म०] १ अर्थपूण मुस्कान। २ कामुक -तुलसी (शब्द०)। दृष्टि । वासनाभरी निगाह [को०] । क्रि० प्र०--करना ।--होना । साकूतहसित--सशा पु० [२०] दे० 'साकूतम्मित' (को॰] । ७ समय । अवसर । मौका। उ०--जो हम मरन दिवस मन साकृत--मशा पु० [म० शाकल्य] शाकल्य । साकला हवन करने ताका । अाजु अाइ पूजी वह साका |--जायसी (शब्द॰) । की वस्तु । उ०---गिद्धि सिद्धि बेताल पेपि पल माकृत छटिय । साकार'--वि० [स०] १ जिसका कोई प्राकार हो। जिसका स्वरूप -पृ० रा०, २५।४५३ । हो। जो निरावार न हो। प्राकार या रुप से युक्त । २ मूर्ति- साकेत--सज्ञा पु० [म०] अयोध्या नगरी । अवधपुरी। मान। साक्षात् । ३ स्थूल । व्यक्त । ४ अच्छे प्राकार का। साकेतक-सज्ञा पु० [म०] साकेत का निवासी। अयोध्या का रहने- सुदर (को०)। वाला। साकार'--सगा पु० ईश्वर का वह रूप जो प्राकार युक्त हो। ब्रह्म सातन-मा पु० [स०] साकेत । अयोध्या। का मूर्तिमान स्वरूप। साकोटक--सज्ञा पु० [म० शाखोटक] शाखोट वृक्ष । सिहोर । साकारता--सहा स्त्री० [स०] साकार होने का भाव । साकारगन । साकोहा--नशा पु० [म० शाल] साम् । शाल । वृक्ष । साकारोपासना--सज्ञा स्त्री० [स०] ईश्वर की वह उपासना जो उसका कोई अाकार या मृति बनाकर की जाती है। ईश्वर की मूर्ति साक्ता--संज्ञा पुं॰ [स० शाक्त] ६० 'शाक्त' । उ०-सो एक मम एक साक्त गाम की सहनगी लै भूमि भरन आयो।--दो सी बनाकर उसकी उपासना करना। वावन०, भा० १, पृ० ३१७ । साकित--सञ्ज्ञा पु० [स० शाक्त] दे० 'शाक्त'। उ०-साकित गिरही साक्तुक'--सञ्ज्ञा पु० [सं०] १ जौ जिससे सत्तू बनता है। भूना हुआ वानेधारी है मवही अज्ञान ।--चरण वानी, पृ० ८४ । जौ। २ जौ का मत्तू । ३ एक प्रकार का विप । साकिन--वि० [१०] निवासी । रहनेवाला। वाशिंदा। जैसे,- रामलाल साकिन मोजा रामनगर। २ निश्चेष्ट । गतिहीन साक्तुक --वि० सत्तू सवधी । सत्तू का। (को०) । ३ स्वर वर्ण से रहिन । हलत (को०)। साक्ष--वि० [म०] १ नेत्रयुक्त। नेत्रमहित। २ अक्षमाला या जप के साकिनी-मशा सी० [सं० शाकिनी] पिशाचिनी । डाइन । उ०-घूमत मनको से युक्त (को० । कहुँ काली करालवदना मुह वाए। झुड डाकिनी और साक्षर--वि० [म०] जिसे अक्षरो का बोध हो। जो पढना लिखना साकिनी सग लगाए।--प्रेमघन॰, भा० १, पृ० ३१ । जानता हो । शिक्षित। साकिया-सचा पु० [अ० साकियह ] शराब पिलानेवाली स्त्री। साक्षरता-सज्ञा पुं० [स० माक्षर+ता (प्रत्य॰)] शिक्षित होने का उ०--जो वद कर पलके सहज दो घुट हँसकर पी गया । भाव । पढ़ा लिखा होना। जिससे सुधा मिश्रित गरल वह साकिया का जाम है। साक्षरता आदोलन-सज्ञा पु० [हिं० साक्षरता+आदोनन] अपढ --हिल्लोल, पृ० ३६ । लोग पढ़ लिख सकें और उनमे शिक्षा का प्रमार हो इम दृष्टि से किया जानेवाला आदोलन या प्रायोजन । शिक्षाप्रमार साकी'--सज्ञा पुं॰ [देश॰] कपूर कचरी । गध पलाशी । अभियान । साकी'--मश पु० [अ० साकी] १ वह जो लोगो को मद्य पिलाता हो । शराब पिलानवाला। उ०-सिर्फ खैयामो की आवश्यकता है, साक्षात्'-अव्य० [म०] १ सामने । ममुख । प्रत्यक्ष । २. वस्तुत । साकी हजारो सुराही लिए यहाँ तयार मिलेगे।--किन्नर०, ठीक ठीक । ३ सीवे। बिना किसी माध्यम के। पृ० ३७ । २ वह जिसके साथ प्रेम किया जाय । माशूक । साक्षात्'- वि० मूर्तिमान् । सागार । म्पाट । जैसे, आप तो साक्षात् साकुच-सा पुं० [म०] सकुची मछली। शकुल मत्स्य । सत्य हैं। साकुन, साकुन्न --सज्ञा पु० [न० शाकुन] दे० 'शाकुन-२' । उ० साक्षात्-मग पु० भेंट । मुलाकात । देखा देखी । साकुन्न कला कोडन विसार । चित्रन सुजोग कवि चवत साक्षात्कर-वि० [स०] साक्षात् करनेवाला । माक्षात्कारी। चारु ।--पृ० रा०, ११७३३ । साक्षात्करए-रज्ञा पु० [म०] १ दृष्टिगत कराने का कार्य । प्रांखो साकुर:--स: पु० [हिं०] घोडा। उ०--एता लिछमण पापिया, के समुख उपस्थित करना। २ द्रियवोध कगना। ३ साकुर ऊँट समाज ।-शिखर०, पृ० १०६ । आभ्यतरिक ज्ञान । यातरिक नान यो०।