सवूिनी ५०७१ सीमका । साबूदाना--पज्ञा पु० [अ० संगो, हि० सागू + दाना] दे॰ 'सागूदाना' । सामतो'-सज्ञा श्री० [स० सामन्ती] एक प्रकार की रागिनी जो मेघ सावूनी [---सज्ञा स्त्री० [अ०] एक प्रकार की मिठाई [को०] । राग की प्रिया मानी जाती है। साब्दो-पज्ञा स्त्री० [म०] एक प्रकार की दाख । द्राक्षा। सामतो--सञ्ज्ञा स्त्री॰ [सं० सामन्त + ई (प्रत्य॰)] १ सामत का भाव साब्दोल-वि० [स० शाब्दी] शब्द सब धिनी। दे० 'शाब्दी' । या धर्म । २ सामत का पद । साभार--क्रि० वि० [सं०] अाभार के साथ। एहसान प्रकट करते हुए। सामतो'-वि० मामत की। मामत सवधी। उ०--मध्यकाल के कवियो साभाव्य--सज्ञा पुं० [म०] प्रकृति या स्वभाव की परख । प्रकृति की ने इस सामती चाकरी के विरोध में लोक साहित्य की नीव पहिचान [को०)। डाली थी।--प्राचार्य०, पृ० १२ । साभिनय--क्रि० वि० [स०] नाटकीयता के साथ । अभिनय मुद्रा सामतो----मशा श्री॰ [देशो] समतल भूमि । सम भूमि [को०] । के साथ [को०)। सामतेय---मशा पु० [स० सामन्तेय] एक प्राचीन ऋपि का ताम । गाभिनिवेश--वि० [२०] १ किसी वस्तु के लिये उत्कट अनुराग, सामतेश्वर--सज्ञा पु० [सं० सामन्तेश्वर] चक्रवर्ती सम्राट् । शाहशाह । मचि, पक्षपात अादि से युक्न । अभिनिवेशयुक्न । २ अभिनि सामदg+-सज्ञा पु० [म. समुद्र, प्रा० समुद्द] दे० 'समुद्र' । उ०- वेशपूर्वक [को०] ।' दुझल जिण भूजाँवलहूत पाठू दिसाँ, लघ सामद कोधी लडाई साभिगय--वि० [स०] १ अभिप्राय के साथ । विशेष अर्थ से युक्त । -रघु० रू०, पृ० ३१ । २ विशेष प्रयोजन से युक्त । सोद्देश्य । उ०-सकल साभिप्राय, सामदर--सज्ञा पु० [फा०] अग्नि कीट। आग मे रहनेवाला कीडा । 'समझ पाया था नही मै, थी तभी यह हाय । - अपरा, समदर [को०] । पृ० १६४। साम'---सज्ञा पु० [स० सामन्] १ वे वेद मन जो प्राचीन काल में साभिमान' --वि० [स०] अभिमानयुक्त । घमडी । यज्ञ आदि के समय गाए जाते थे। छदोवद्ध स्तुतिपरक मत्र साभिमान'-अव्य० अभिमान के साथ । अभिमानपूर्वक [को०] । या सूक्त। २ चारो वेदो मे तीसरा वेद । विशेष-- दे० 'सामवेद' । ३ मीठी बाते करना। मधुर भापण । साभिवादन---वि० [सं० स + अभिवादन] अभिवादनयुक्त । अभिवादन ४ राजनीति के चार अगो या उपायो मे से एक । अपने वैरी के माथ उ०---नवीन नरेश महाराज वधुवर्मा ने साभिवादन या विरोधी को मीठी बाते करके प्रसन्न करना और अपनी श्री चरणो मे सदेश भेजा है।--स्कद०, पृ० ७ । पोर मिला लेना। (शेप तीन अग या उपाय दाम, दंड साभ्यसूय--वि० [म०] डाह करनेवाला । ईर्ष्यालु । द्वेपी [को०) । और भेद हैं । ५ सतुष्ट करना। शात करना (को०)। ६ सामजस्य-सज्ञा पुं० [अ० सामञ्जस्य] १ प्रोचित्य । २ यथार्थता। मृदुता । कोमलता (को०)।'७ ध्वनि । स्वर । अावाज (को०) । 'शुद्धता (को०) । ३ उपयुक्तता। ४ अनुकूलता। ५ वैपम्य या विरोध प्रादि का अभाव । मेल । सामर-वि०, सशा पु० [स० श्याम दे० 'स्याम' । उ०-धूम साम धौरे घन छाए।-जायसी ग्र०, पृ० १५२ । सामत'-मज्ञा पु० [स० सामन्त] १ वीर। योद्धा। उ०-~-अजवेस मामत साम-सचा पु० [अ० शाम] दे० 'शाम' (देश)। भगवान बोले त्याहीं । सेस ज्वाला की सी पर सोनागिर ज्याही। -रा० रू०, पृ० ११४ । २, किसी राज्य का करद कोई वडा साम'-सज्ञा स्त्री॰ [फा० शाम] सायकाल। दे० 'शाम' । उ०-धुर- विनिया छोडत नहिं कवही होइ भोर भा साम !-गुलाल०, जमीदार या सरदार । शुक्रनीति के अनुसार वह नरेश जिसकी भूमि का राजस्व ३ लाख कर्ष हो। ३ पडोसी। ४ श्रेष्ठ प्रजा। ५ समीपता। सामीप्य । नजदीकी। ६ पडोसी राजा। पडोस साम-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [देश॰] दे॰ 'शामी' (लोहे का वद)। हथियार। के राज्य का नरेश (को॰) । उ०--सूरा के सिर साम है, साधो के सिर राम ।-दरिया० सामत--वि०१ समीपवर्ती । सीमावर्ती। सरहदी। २ अन्गत । सेवक । वानी, पृ० १४ । ३ सर्वव्यापक । विश्वव्यापक (को०] । साम --मशा पु० [फा० सामान, सामाँ] दे० 'सामान'। वालमीकि अजामिल के कछु हुतो न साधन सामो।-तुलसी सामतचक्र-गचा पु० [स० सामन्तचत्र] पडोसी अथवा करद राजायो का मडल [को०]। (शब्द०)। सामतज-वि० [स० सामन्तज] जो पडोसी या करद राजानो द्वारा साम-वि० [स०] जो पचा न हो। जिसका अच्छी तरह पाक न उत्पन्न हो (को॰] । हुअा हो (को०)। सामतभारती-सज्ञा पु० [स० सामन्त भारती] राग मल्लार और सामक'-सज्ञा पु० [स० श्यामक, प्रा० सामय] सॉवा नामक अन्न । सारग के मेल से बना हुआ एक सकर राग । विशेप दे० 'साँवाँ'। सामत वासी--वि० [सं० सामन्तवासिन्] पड़ोस में रहनेवाला। सामक'--सशा पु० [सं०] १ वह मूल धन जो ऋण स्वरूप लिया पडोसी किो०)। या दिया गया हो। कर्ज का अमल रुपया। २ सान धरने का सामत सारग--सज्ञा पु० [सं० सामन्तसारङग] एक प्रकार का सारग पत्थर । ३. वह जो सामवेद का अच्छा ज्ञाता हो। ४. राग जिसमे सब शुद्ध स्वर लगते हैं। समान धन।' 1 पृ० १९।
पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/२५१
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