पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/२६०

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सायी ५०८० सारंग, सारंगर - सायो-- पुं० [सं० मायिन्] घोडे का मवार । अश्वारोही। मायुज--न पु० [स० सायुज्य] दे० 'मायुज्य'। उ०-गुरुनानक का भेदाभेद ईश्वर और जीव मे सायुज सबध मानता है। -हिंदी पाव्य०, पृ०४६। सायुज्य-राजा पु० [सं०] १ एक मे मिल जाना। ऐमा मिलना कि पोई भेद न रह जाय । २ पांच प्रकार की मुक्तियो मे मे एक प्रकार की मुक्ति जिममे जीवात्मा परमात्मा मे लीन हो जाता है। उ०--हरि भे कहत गरीयसि मेरी। भक्ति होई सायुज्य बडेरी।-गर्गम हिता (शब्द॰) । ३ समानता । एकस्पता। सायुज्यता-सरा सी० [#०] सायुज्य का भाव या धर्म । सायुज्यत्व । सायुज्यत्व-भरा पुं० [स०] सायुज्य का भाव या धर्म । मायुज्यता । सायुध-वि० [सं०] पायुधयुक्त । शस्त्रसज्ज (को०] । यौ०-मायुध प्रग्रह = जो हाथ मे शस्त्र ताने हुए हो। सारग, सारंग'--सा पुं० [सं०] १ एक प्रकार का मृग। २ को- किल । कोयल । उ.--वयन वर सारग सम । -सूर (शब्द०)। ३ श्वेन । वाज। ४ सूर्य । उ०--जलसुत दुखी दुखी है मधुकर है पछी दुख पावत | सूरदास सारंग केहि कारण मारग कुलहि लजावत |--सूर (शब्द०)। ५ सिंह । उ०--सारग सम कटि हाथ माथ विच मारँग राजत । मारंग लाए अग देखि छवि सारंग लाजत। सारग भूपण पीत पट मारेंग पद सारगधर । रघुनाथ दास वेदन करत सीतापति घुवंशधर ।-विश्राम (शब्द०)। ६ हस पक्षी । ७ मयूर । मोर। ८ चातक । ६ हाथी । १० घोडा। अश्व । ११ छाता। छन । १२ शख । उ०-सारंग अधर सधर कर सारग सारंग जाति सारंग मति भोरी । सारंग दसन वसन पुनि सारंग वसन पीतपट डोरी।-सूर (शब्द०)। १३ कमल । कज। उ०-(क) सारग वदन विलास विलोचन हरि मारग जानि रति कीन्ही ।-सूर (शब्द॰) । (ख) सारंग दृग मुख पाणि पद सारंग कटि वपुधार । सारंगधर रघुनाथ छवि सारंग मोहनहार ।-विधाम (शब्द०)। १४ स्वर्ण। सोना । उ०--सारंग से दृग लाल माल सारंग की सोहत । सारंग ज्यो तनु श्यामवदन लखि सारंग मोहत । -विधाम (शब्द०)। १५ आभूपरण । गहना। २६ सर । तालाब । उ०—मानहु उमगि चल्यो चाहत है सारँग सुधा मरे ।-मूर० (शब्द०)। १७ भ्रमर । भीरा। उ०-नचत हे सारग सुदर करत शब्द अनेक ।--सूर (शब्द०)। १८ एक प्रकार की मधुमक्खी। १६, विष्णु का धनुप। उ०—(क) एकह वारण न पायो हरि के निकट तव गह्यो धनुष सारगधारी । -मूर (शब्द०) (ख) नवं परथमा जौवन सोहैं। नयनवान श्रो सारंग मोह। जायसी (शब्द०)। २० कर्पूर। कपूर । उ०-सारग लाए अग देखि छवि सारंग लाजत ।--विश्राम (शब्द०)। २१ लवा पक्षी । २२ श्रीकृष्ण का एक नाम । उ०- गिरिधर ब्रजधर मुरलीधर घरनीधर पीतावरधर मुकुटघर गोपधर उगंधर शखधर सारगघर चक्रपर गदाधर रस धरें भधर सुधाधर ।—सूर (शब्द०)। २३ चद्रमा। शशि । उ०- तामहि सारँग सुत भोभित है ठाढी सारग सँभारि ।-सूर (शब्द०)। २४ समुद्र । सागर । २५ जल। पानी। २६ वाण । शर । तीर । २७ दीपक । दीया । २८ पपीहा । २६ शभु। शिव । उ०-जनु पिनाक की आश लागि शशि मारेंग शरन बचे ।-सूर (शब्द॰) । ३० सुगधित द्रव्य । ३१ सर्प । साँप । उ०-सारंग चरन पीठ पर सारेंग कनक खभ अहि मनहुँ चढो री।—सूर (शब्द०)। ३२ चदन । ३३ भूमि । जमीन । ३४ केश। वाल । अलक । उ०-शीश गग मारँग भस्म सर्वांग लगावत ।-विश्राम (शब्द०)। ३५ दीप्ति । ज्योति । चमक । २६ शोभा । सुदरता। ३७ स्त्री। नारी। उ०-सूरदास सारंग केहि कारण सारंग कुलहिं लजावत सूर (शब्द०)। ३८ रानि । रात । विभावरी। ३६ दिन । उ०--सारंग सुदर को कहत रात दिवस वड भाग।- नददास (शब्द०)। ४०. तलवार। खड्ग । (डि ०)। ४१ कपोत । कबूतर । ४२ एक प्रकार का छद जिसमे चार तगण होते हैं । इसे मैनावली भी कहते हैं । ४३ छप्पय छद के २६वे भेद का नाम। विशेष—इसमे ४५ गुरु, ६२ लघु कुल १०७ वर्ण या १५२ मात्राएँ अथवा ४५ गुरु, ५८ लघु कुल १०३ वर्ण या १४८ मात्राएँ होती हैं। ४४ मृग। हिरन । उ०-क) श्रवण सुयश सारग नाद विधि चातक विधि मुख नाम । —सूर (शब्द०)। (ख) मरि थार आरति सजहिं सब सारग सायक लोचना ।—तुलसी (शब्द॰) । ४५ मेध । बादल । घन । उ०—(क) कारी घटा देखि अँधि- यारी सारंग शब्द न भाव । —सूर (शब्द०)। (ख) सारंग ज्यो तनु श्याम वदन लखि सारग मोहत ।---विथाम (शब्द०)। ४६ मोती। (डिं०)। ४७ कुच । स्तन । ४८ हाथ । कर। ४६ वायस । कौना। ५० ग्रह । नक्षत्र । ५१ खजन पक्षी। सोनचिडी। ५२ हत। ५३ मेढक । गगन । आकाश । ५५ पक्षी । चिडिया। ५६ वस्त्र । कपडा। ५७ सारगी नामक वाद्ययन । ५८ ईश्वर । भगवान् । ५६ काजल । नयनाजन। ६० कामदेव । मन्मथ । ६१ विद्युत् विजली । ६२ पुष्प । फूल। ६३ सपूर्ण जाति का एक राग जिसमे सव शुद्ध स्वर लगते हैं। विशेप--शास्त्रो मे यह मेघ राग का सहचर कहा गया है, पर कुछ लोग इसे सकर राग मानते और नट, मल्लार तथा देव- गिरि के सयोग से बना हुआ वतलाते हैं। इसकी स्वरलिपि इस प्रकार कही गई है-स रे ग म प ध नि स । स नि ध प म ग रे स। स रे ग म प ध प प म ग म प म ग म ग रे स । स रे ग रे स। सारग, सारंग-वि०१ रंगा हुआ । रजित । रगीन । उ०-सारंग दशन वसन पुनि सारंग वसन पीत पट डोरी।--मूर (शब्द०)। २ सुदर । सुहावना। उ०-सारंग वचन कहत सारंग सो सारंग रिपु है राखति झीनी ।—सूर (शब्द॰) । ३ सरस । उ०--सारंग नैन बैन वर सारंग सारंग वदन कहै