पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/२६१

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are! सारंगचर ५०८१ छवि को री।--मूर (शब्द०)। ४ अनेक रगो से युक्त । विशेष-यह काठ वा बना हुया होता है और इसकी लबाई प्राय चितकबरा (को०)। डेढ हाथ होती है। इसके मामने का भाग, जो परदा कहलाता सारगचर--संज्ञा पुं० [अ० सारटगचर] कांच । शीशा । है, पाँच छह अगल चौडा होता है, और नीचे का मि । अपेक्षा- सारगज--सज्ञा पुं॰ [स० सारडगज] मृग । हिरन [को०] । कृत कुछ अधिक चौडा और मोटा होता है। इसमे ऊपर की सारंगनट-सज्ञा पु० [मं० सारडगनट] सगीत मे सारग और नट के ओर प्राय ४ या ५ खूटियाँ होती है जिन्हे कान कहते है । उन्ही खूटियो से लगे हुए लोहे और पीतल के कई तार होते है सयोग से बना हुया एक प्रकार का सकर राग । जो वाजे की पूरी लबाई मे होते हुए नीचे की ओर बँधे रहते सारगनाथ--मज्ञा पु० [म. सारडगनाथ] काशी के समीप स्थित एक है। इसे बजाने के लिये लकडी का एक लवा और दोनो ओर स्थान जो सारनाथ कहलाता है। विशेष-यही प्राचीन मृगदाव है यह बौद्धो, जैनियो और हिंदुओ कुछ झुका हुआ एक टुकडा होता है जिसमे एक सिरे से दूसरे सिरे तक घोडे की दुम के बाल बँधे होते हैं। इसे कमानी का प्रसिद्ध तीर्थ है। कहते है। बजाने के समय यह कमानी दाहिने हाथ मे ले ली सारगनैनी-वि० [स० सारदग+ हिं० नन] सारग के से नयनवाली । जाती है और उसमे लगे हुए घोडे के बाल से बाजे के तार मृगनैनी । उ०--सारगनैनो री काहे कियौ एतौ मान ।- नद० रेते जाते हैं। उधर वाये हाथ की उँगनियाँ तारो पर रहती ग्र०, पृ० ३६६ ॥ है जो वजाने के लिये स्वरो के अनुसार ऊपर नीचे और एक सारगपारिण--सञ्ज्ञा पु० [सं० सारडगपाणि] सारग नामक धनुष तार से दूसरे तार पर प्राती जाती रहती है। इस वाजे का धारण करनेवाले विष्णु। स्वर बहुत ही मधुर और प्रिय होता है, इसलिये नाचने गाने सारगपानि-अक्षा पु० [म० सारदगपाणि] दे० 'सारगपाणि' । का पेशा करनेवाले लोग अपने गाने के साथ प्राय इसी का उ०-सुमिरत श्री सारगपानि छन मै सब सोचु गयो। चले व्यवहार करते है। मुदित कौसिक कोसलपुर सगुननि साथु दयो ।-तुलसी सारड-सज्ञा पु० [स० सारण्ड] साँप का अडा। (शब्द०)। सारभ--सशा पु० [स० सारम्भ] घपूर्ण वार्तालाप [को०] । सारगलोचना--वि० सी० [स० सारडग लोचना ] जिसकी आँखे हिरन सार--सज्ञा पु० [सं०] १ किसी पदार्थ मे का मूल, मुख्य, काम का, की सी हो । मृगनयनी। या असली भाग। तत्व । सत्त। २ कथन ग्रादि से निकलने- सारगशबल--वि० [स० सारङगशवल] घोडा जो रग विरगा और वाला मुख्य अभिप्राय । निष्कर्प । उ०--तत्त सार इहै अाहे चितकबरा हो (को०)। अवर नाही जान । -जग० बानी, पृ० १५। ३. किसी पदार्थ सारगहर--मज्ञा पु० [स० शार्ड गधर, प्रा० सारगहर] विष्णु । मे से निकला हुमा निर्यास या अर्क अादि । रस। ४ चरक के सारगा--सज्ञा स्त्री० [स० सारडगा] १ एक प्रकार की छोटी नाव जो अनुसार शरीर के अंतर्गत आठ स्थिर पदार्थ जिनके नाम इस एक ही लकडी की बनती है। २ एक प्रकार की वडी नाव प्रकार हैं--त्वक, रक्त, मास, मेद, अस्थि, मज्जा, शुक्र और जिसमे ६००० मन माल लादा जा सकता है। ३ एक सत्व (मन)। ५ जल। पानी। ६ गूदा। मग्ज । ७ वह रागिनी का नाम जो कुछ लोगो के मत से मेघ राग को भूमि जिसमे दो फसलें होती हो । ८ गोशाला। वाडा । । पत्नी है। खाद। १० दूहने के उपरात तुरत प्रौटाया हुअा दूध। ११ सारगाक्षा--वि० सी० [म० सारडगाक्षा] जिसके नेन मृग की तरह औटाए हुए दूध पर की साडो । मलाई । १२ लकडी का हीर। हो । मृगनैनी (को०)। १३ परिणाम । फल। नतीजा। १४ धन । दौलत । नवनीत । मक्खन। १६ अमृत । १७ लोहा। १८ वन । सारगिक--सज्ञा पु० [स० सारडिगक] १ वह जो पक्षियो को जगल । १९ वल । शक्ति । ताकत । २० मज्जा । २१ वज्र- पकडकर अपना निर्वाह करता हो। चिडीमार। बहेलिया। २. एक प्रकार का वृत्त जिसके प्रत्येक चरण मे नगण, यगण क्षार । २२ वायु । हवा । २३ रोग । बीमारी। २४ जूमा श्री सगण (न, य, स) होते है। खेलने का पासा। २५ अनार का पेड । २६ पियाल वृक्ष । विशेष-कवि भिखारीदास ने इसे मात्रिक छद माना है। चिरोजी का पेड। २७ वग। २८ मुद्ग । मूंग । २६ क्वाथ । काढा । ३० नीली वृक्ष । नील का पौधा । ३१ साल । सार । सारगिका--सजा स्त्री० [स० सारदिगका] १ दे० 'सारगिका'। २ ३२ पना। पतला शरवत। ३३ कपूर । ३८ तलवार। दे० 'सारगी'। ३ बहेलिया की स्त्री । (डि०) । ३५ द्रव्य । (डि.)। ३६ हाड । अस्थि । (डि०) । सारगिया--मज्ञा पु० [हिं० सारगी+पा (प्रत्य॰)] सारगी बजाने ३७. एक प्रकार का मात्रिक छद जिसमे २८ मात्राएँ होती वाला । साजिदा। है और सोलहवी मान्ना पर विराम होता है। इसके अत मे सारगी-सा सी० [सं० सारडग] एक प्रकार का बहुत प्रसिद्ध वाजा दो गुरु होते है। प्रभाती नामक गीत इसी छद में होता है। जिसका प्रचार इस देश मे बहुत प्राचीन काल से है। उ०--- ३८ एक प्रकार का वर्णवृत्त जिसमे एक गुरु और एक लघु विविध पखावज पावज सचित बिचबिच मधुर उपग। सुर होता है। इसे 'ग्वाल' और 'शानु' भी कहते है। विशेप दे० सहनाई सरस सारगी उपजत तान तरग।--सूर (शब्द०)। 'ग्वाल' । ३६ एक प्रकार का अर्याल कार जिसमे उत्तरोत्तर