पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/२७

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शेखी । मंखिया संक्षर संक्षर- पुं० [म० महार] १ वह स्थान जहाँ दो नदियाँ प्रादि मक्षेपए--मशा पुं० [म० मन्क्षेपण] १ काम मारना । नक्षेप करना । मिलती हो । मगम । २ साथ माय बहना (को०)। काट छाँट गरने की निग। ३. पात्र करना। ढेर करना । टेर लगाना (क)। ४ प्रेपण । भेजना (को)। मामका नाम । सक्षालन-नशा पुं० [, मप्रक्षालन] १ नहाने धोने के काम प्रानेवाला सक्षेपणीय-वि० [स० मड क्षेपणीय] १. फेंकने योच। २ नक्षेप करने योग्य किो०] । जरा । २. प्रक्षालन । धोना (को०। मक्षेपत -प्रव० [म० ना क्षेपतन्] सटोप में। थोडे मे । मागगत । संक्षालना-मना रसी० [म० समक्षालना] १ घोने की क्रिया | सक्षालन । सक्षेपतया-अव्य० [स० सरक्षेपतया] पोडे में । नक्षेप मे । २ मज्जन । म्नान (को०] । सक्षेपदोप-सज्ञा पुं० [स० मट क्षेप दोप] माहित्य में एय प्रकार का संक्षिप्त-वि० [म० राक्षिान, नड क्षिप्त] १ जो सक्षेप में कहा या लिखा दोप । जिम बात को जितने विन्तार से कहने या लिखने की गया हो । जो मक्षेप मे किया गया हो । खुलाना। २ थोडा । अावश्यकता हो, उमे उतने विस्तार मे न कह या निखकर कम ग्रप । छोटा । ३ छोडा या फेका हुना। ४ पुजीकृत । गशी- विस्तार से कहना या लिखना, जिसने प्राय मुनने या पढनेवाले कात (०)। ५. क्षीण किया हुआ । घटाया हुआ (को०) । की समझ मे उमका ठीक ठीक अभिप्रायन पावे। ६ सयत । नियनित (को०) । ७ अधिगृहीत (को०) । सक्षोभ-सञ्ज्ञा पुं० [म० सङ क्षोम] १ चचतता । २ कपन । कांपना। संक्षिप्तत्व-ससा पुं० [म० सडिक्षप्तत्व सक्षिप्त होने का भाव को०] । ३. विप्लव । ४ उलट पुलट । ५ गई। घगड। अभिमान । संक्षिप्तदैर्ध्य-वि० [स० सटिक्षप्त दैर्घ्य] जिमकी दीर्घता कम की गई हो। जो कम लवा हो (को॰] । मख--सहा पुं० [स० सद, प्रा० सख] दे० 'शव' । उ०-झांकि मृदग मब महनाई।--मानम, १।०६३ । सक्षिप्तलिपि-सला रखी० [म०] एका लेखनप्रणाली । मकेत तिपि । विशेष-इसमे ध्वनियो के लिये ऐसे सदिाप्न चिह्न या रेवाएं सखडा-मझा पु० देिशो] कलह । नागडा । मकट [को०] । नियत रहती है जिनके द्वारा लिखने से थोडे काल और सखनारी--सपा सी० [स० शद्धनारी] एक प्रकार का छद जिनके स्थान मे बहुत सी बातें लिखी जा सकती है। व्याय्यान प्रत्येक पद मे दो यगण (य, य) होते हैं। इसे सोमराजी वृत्त अादि के लिखने मे यह गधिक सहायक होती है। व्यापारिक भी कहते हैं। कार्यालयों में भी इसका प्रयोग होता है। सखला-मशा री० [सं० शृखला, प्रा० सपला सखला] दे० 'शृखला'। उ०--आनंदधन कुलकानि गजला जरी तोरि सक्षिप्ता-मला सी० [स० सडिभप्ता] ज्योतिष मे बुध ग्रह की सात महा मदमाती ।-घनानद, पृ० १६६ । प्रकार की गतियो में से एक प्रकार की गति । सखहुली-सक्षा नी० [हिं०] दे० 'णयपुप्पी' । विशेप-बुध जिस समय पुग्य, पुनर्वसु, पूर्व फल्गुनी और उत्तर मखा-तजा पुं० [म० मा कु] चक्की के ऊपरी पाट में लगी हुई फल्गुनी नक्षत्र में होता है, उस समय उनकी गति मक्षिप्ता लाडी की सूंटी जिसमे एक ओर छोटी गपडी उसी रहती है। होती है। यह गति २२ दिन तक रहती है। हथवर । हथ्था । स क्षिप्ति-सरा पी० [मं०] नाटग मे चार प्रकार की शारभटियो मे संखार-मझा पु० [ग] एक प्रकार या पक्षी जिया रंग अबलक ने एक प्रकार सीधारभटी, जही क्रोध आदि उग्र भावो की होता है और जिमयो नोन चिपटी होती है। निवृत्ति होती है (जरो,-रामनद्रजी की यातो से परशुराम सखालां-मंशा पु० [देशी] मृग की एका जाति । गांभर मग [को०) । के कोध की तिति होना) वहाँ यह वृत्ति मानी जाती है। विशेप दे० 'पारमती' । २ गाय माय फायने को किया सखिया--सच्चा पु० [म० शृजिका या शा गविष] १ एक प्रकार की (को०)। ३ क्षेपीकरण। घटाना। ठोस पा घना करना बहन जहरीली प्रमि उपधातु या पत्थर । (को०)। ४. प्रेगण । भेजना (को०)। ५ पात मे रहना । रिसी विशेप-यह उपधातु कुमाऊँ, चित्रान, न्यान दार (नगर), गुप्त स्थान में छिपना (को॰) । उत्तरी वरमा प्रो. चीन यादि में पाई जाती है। प्राय मा रग रेद या नटम होगा है औ. या सक्षेप-सज्ञा पु० [म साक्षेप] १ थोडे में कोई बात कहना । चिगना तथा चनातीना हो, जिम समय यह गाने २ को पटाना। कम करना। ३ गमाहार। मग्रह । निकालता है, मनमर बहामना माई पोर कठिनना गे मान। गुमा " एक साप पकना। प्रेपरण। गलता है। पापात्य वैज्ञानिा नापी गिनतो मी मेजनामो०)। ७ नक्षिप्त करने का माधन (ो। इमी के अतर्गन मानते है। भारतमानी प्राय यही ममनो। अपहरण । मेगना (7) गिी गरे पति कार्य वि पत्थर पर रहनहरीने वि7 मारने । यह मे नहाता परचाना (को०)। १० महार (०)। सविया बनना । सक्षेप:--वि० [९० गोपा] १. माद कनेमा । २ मिने २ उक्त पातु तयार गिमा जो देती नो तोता घाला। ३ सोप कोवाना। योग रप देनेपाना। और विलापनी नौ।