पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/२७४

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सावित्री तीर्थ ५०६४ साष्टी मांगने को कहा। राजा ने बहुत से पुत्रो की कामना की। सावित्रेय-सज्ञा पुं० [मं०] मविता के पुत्र, यम [को०] । देवी ने कहा कि ब्रह्मा की कृपा से तुम्हारे एक कन्या होगी साविनी-सशा सी० [म०] मरिता । नी [को०] । जो बडी तेजस्विनी होगी। कुछ दिनो बाद बडी रानी के गर्भ साविष्कार वि० [स०] १ शक्ति आदि का प्रदशन करनेवाला । से एक कन्या हई। सावित्री की कृपा से वह कन्या हई थी, उद्वत । घमडी। २ प्रकट । ब्यक्त किो०] । इसलिये राजा ने इसका नाम भी सावित्री ही रखा। मावित्री सावेग-कि० वि० [सं०] वेगपूवक । शीघ्रता मे । भटके से (को०] | अद्वितीय सुदरी थी, पर किसी को इसका वरप्रार्थी होते न सावरी-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [म०] एक रागिनी (संगीत)। देखकर अश्वपति ने सावित्री से स्वय अपनी इच्छानुसार वर ढंढकर वरण करने को कहा । तदनुमार सावित्री वृद्ध मनियो साशक-वि० [मे० साश] अाशकायुक्त । भय भीत । शकित [को०] । । के साथ तपोवन मे भ्रमण करने लगी। कुछ दिनो बाद वह सागकता- सज्ञा स्त्री० [स० साशङ्कता] आशका । टर । भय किो०)। तीर्थो और तपोवनो का भ्रमण कर लौट आई और उसने साशस-वि० [स०] अाकाक्षापूरित । इच्छुक । आशान्वित [को०। अपने पिता से कहा शाल्व देश मे चमत्सेन नामक एक प्रसिद्ध साशयदक-श पु० [म० माशयन्दक] छोटी छिपकली [को०)। धर्मात्मा क्षत्रिय राजा थे। वे अवे हो गए है। उनका एक साशिव-सा पु० [मं०] १ एक प्राचीन देश का नाम । पुत्र है जिसका नाम सत्यवान है। एक शत्रु ने उनका राज्य विशेष-अर्जुन के दिग्विजय के प्रकरण में यह उत्तर दिशा में हस्तगत कर लिया है। राजा अपनी पत्नी और पुनमहित बन बतलाया गया है। इसे जीतकर अर्जुन यहां से आठ घोडे मे निवास कर रहे है। मैंने उन्ही सत्यवान् को अपने उपयुक्त लाया था। वर समझकर उन्ही को पति वरण किया है। नारदजी ने २ ऋपीक । ऋपिपुव । कहा- सत्यवान मे और सब गुण तो हैं, पर वह अल्पायु है । साशूक-~सरा पु० [म०] ऊनी कवल किो०] । आज से एक वप पूरा होते ही वह मर जायगा। इसपर भी साश्चर्य-वि० [सं०] १ आश्चर्यान्वित । चकित । भौचक । २ सावित्री ने सत्यवान् से ही विवाह करना निश्चित किया । आश्चर्य या कौतूहलजनक किो०] । विवाह हो गया, एक वर्ष बीतने पर सत्यवान् की मृत्यु हो यौ०-साश्चर्याचय = आश्चर्यजनक व्यवहारवाला। गई। यमराज जब उसका सूक्ष्म शरीर ले चला, तब मावित्री ने उसका पीछा किया। यमराज ने उसे बहुत समझा बुझाकर साथ, सान--वि० [सं०] १ अस्र या कोण युक्त । जिसमे कोण या कोने हो । कोणात्मक । २ अश्रुयुक्त। रोता हुआ। साश्रु (को०] । लौटाना चाहा, पर उसने उसका पीछा न छोडा। श्रत मे यमराज ने प्रसन्न होकर उसकी मनस्कामना पूर्ण की। मृत साश्रु-वि० [स०] अश्रुपूर्ण । आंसू बहाता हुा । रोता हुआ [फो०] । सत्यवान् जीवित होकर उठ बैठा । सावित्री ने मन ही मन साश्रुधी-सशा सी० [स०] पत्नी या पति की माता । सास । जो कामनाएँ की थी, वे पूरी हुई। राजा द्युमत्सेन को पुन साश्वत - वि० [सं० शाश्वत] दे० 'शाश्वत' । दृष्टि प्राप्त हो गई । उसके शत्रुग्रो का विनाश हुग्रा । सावित्री सापा-सज्ञा सी० [सं० शाखा] दे० 'शाखा'। उ०--मुनि पुनि के मौ पुत्र हुए। साथ ही उसके वृद्ध ससुर के भी सौ पुत्र कर्म फलनि तजि जैसे। अप अपनी श्रुति सापा वैसें।-नद० हुए। उसने यह भी वर प्राप्त कर लिया था कि पति के साथ ग्र०, पृ० २६५। मैं वैकुट जाऊँ। साषि-सज्ञा पुं० [स० साक्षी] गवाह । ६ यमुना नदी। १० सरस्वती नदी। ११ प्लक्ष द्वीप की एक नदी। १२ धार के राजा भोज की स्त्री। १३ सधवा स्त्री। सावित-सज्ञा पुं॰ [में० शाक्त) वह जो शक्ति का उपासक हो । १४ आँवला । १५ प्रकाश की किरण (को०)। १६ पार्वती का शक्ति को माननेवाला । वि० दे० 'शाक्त' । उ०-सापित के तू एक नाम (को०)। १७ सूर्य की रश्मि (को०)। १८ अनामिका हरता करता, हरि भगतन के चेरी।--कबीर ग०, पृ० १५१ । उँगली (को०)। साष्टाग--वि० [म० साष्टादग] आठो अग सहित । सावित्री तीर्थ- मशा पु० [सं०] एक प्राचीन तीर्य का नाम । यौ०-साप्टाग प्रणाम = मस्तक, हाथ, पैर, हृदय, आँस, जांघ, सावित्रीपतित, सावित्रीपरिभ्रष्ट सज्ञा पु० [स०] ब्राह्मण, क्षत्रिय वचन, और मन से भूमि पर लेटकर प्रणाम करना। और वैश्य जाति का वह व्यक्ति जिसका उचित समय पर मुहा०--साष्टाग प्रणाम करना बहुत बचना । दूर रहना। उपनयन सस्कार न हुअा हो (को०] । (व्यग्य) । जैसे-हम यही से उन्हें साष्टाग प्रणाम करते है। सावित्रीपुत्र-सज्ञा पु० [सं०] क्षत्रियो की एक उपजाति या वर्ग । साप्टाग योग-सज्ञा पु० [म० साष्टाङग योग] वह योग जिसमे यम, सावित्री व्रत-सज्ञा पु० [४०] एक प्रकार का व्रत जो स्त्रियाँ पति नियम, प्रामन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और की दीर्घायु की कामना से ज्येष्ठ कृष्ण १४ को करती हैं । समाधि ये आठो अग हो । विशेष दे० 'योग' । विशेष कहते है कि यह व्रत करने से स्त्रियाँ विधवा नहीं होती। साप्टी--सज्ञा पुं॰ [देश॰] एक टापू जो बवई प्रदेश के थाना सावित्रीव्रतक-सज्ञा पु० [स०] सावित्री व्रत । जिले में है। सावित्रीसूत्र--सज्ञा पु० [स०] यज्ञोपवीत जो सावित्री दीक्षा के समय विशेप--इस टापू को वहाँवाले 'फालता' और 'शास्तर' तथा घारण किया जाता है। अंगरेज 'सालसीट' कहते हैं । यह बबई से वीस मील ईशानकोण