पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/२९२

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सिजरा ६०१२ सित' सिजरा-ज्ञा पुं० [अ० शब्रह] वशवृक्ष । वशावली । कृर्सीनामा । मुहा० - मिट्टी गुम हो जाना = २० मिट्टी मृलना'। उ०- उ०--कहि अतर सिजरा लिखि दीन्हा। कहि जादू कहि मंगे अधिकारी वग की मिट्टी गुम हुई।-विनर०, पृ० २६ । कीन्हा ।-- सत० दरिया, पृ० ५५ । मिट्टी पिट्टी मूल जाना = मिटपिटा जाना। मिट्टी मूलना = सिजल-वि० [हिं० सजीला] जो देखने मे अच्छा लगे । सुदर। घबरा जाना। सिटपिटा जाना। सिजली--नज्ञा स्त्री० [देश॰] एक प्रकार का पौधा जो दवा के काम सिटू वि० [हिं० सीटना] बहुन बढ कर गण करनेवाला। बढकर मे पाता हे। वोलनवाला। डीग मारनेवाना उ०-मिपारमी इग्पुकने सिजादर--मज्ञा पुं० [लश ०] पाल के चौयूटे किनारे से बंधा हुआ सिटू बोले बात अकाली-भाग्नेदु ग्र०, मा० १, पृ० ३३३ । रम्सा, जिसके सहारे पान चटाया जाता है । सिट्ठो-मज्ञा री० [३० गिप्ट] वचा हुग्रा । दे० 'मोठी' । सिज्या -सज्ञा स्पी० [स० शय्या, प्रा० सिज्जा] दे० 'शय्या', 'सेज' । सिठनी--मरा नी० [म० अगिष्ट] विवाह में अवमर पर गार जाने- उ०-कोऊ मिज्या सम्हारत है।--दो सो वावन ०, मा० वाली गाली। नीठना। १, पृ० ३३ । सिठाई--मका रसी० हिं० सीठी] १ पीसपन। नीन्मना । २ मदता । यो०-सिज्या भोग = वह भोग जो भगवान् को शयन कराने के सिड-मानी० [हिं० गिडी] १ पागलपन । उन्माद । वावलापन । उपरात मिरहाने रखा जाता है। उ०--वाको श्रीनाथजी एक २ मनक । धन। क्रि० प्र०-चढ़ना। दिन सिज्या भोग को लड्डुवा उहाँई दियो ।-दो सौ वावन०, भा० १, पृ० २११ । मुहा०—सिड सवार होना = मनक होना । धुन होना । सिझना-कि० अ० [म० सिद्ध, प्रा० सिज्झ] आंच पर पकाना । सिडपन, सिडपना-मरा पु० [हिं० मिड + पन (प्रत्य॰)] १ सिझाया जाना। पागलपन । बावनापन । २ सनक । न । सिझाना -क्रि० अ० [स० सिद्ध, प्रा० मिझ + हिं० पाना (प्रत्य॰)] सिविना, सिडविल्ला--नरा पुं० [हिं० मिट्टी + बिलल्ला] [सी. १ आँच पर गलाना। पकाकर मिडग्लिी, मिडविल्ली] १ पागल । बावला । २ वेवकूफ। गलाना। २ पनाना। राधना । उबालना। ३ मिट्टी को पानी देकर पैर से कुचल मोदू । बुढू। और साफ करके वरतन बनाने योग्य बनाना । ४ शरीर को सिडिया-सरा सी० [हिं० मांटी] देट हान लवी तकडी जिसमे वुनते तपाना या कष्ट देना । तपस्या करना। उ०--लेत पूंट भरि समय बादला वेंधा रहता है। पानि सु रस सुरदानि रिझाई। पपीहरयो तप साधि जपी तन सिडी-वि० [म० शृणोक] [म्पी० मिडिन] १ पागन । दीवाना। तपन सिझाई।-सुधाकर (शब्द०)। ५ रासायनिक प्रक्रिया बावला । उन्मत्त। उ०-यह तो सिडी हो गया है उनके माय द्वारा पकाना । विशेप दे० 'चमडा सिमाना'। रहने से मैं भी ऐसी बाते कहने लगा।--गकुतला, पृ० १२१ । सिटकिनी-सज्ञा स्त्री॰ [अनु॰] किवाडो के वद करने या अडाने के २ सनकी। चुनवाना। ३ मनमौजी। मनमाना काम लिये लगी हुई लोहे या पीतल की छड। अगरी। चटकनी। करनेवाला। चटखनी। सिढील-सज्ञा पी० [स० येणो] दे० 'मोटी'। उ०-गहि गशिवृत्त सिटनला तशा पु० [अ० सिगनल] दे० 'सिगनल' । नरिंद मिटी लघत ढहि योरी। काम लता कन्हरी पेम मारत झकझोरी ।-पृ० रा०, २०३८१ । सिटपिटाना-त्रि०अ० [अनु०] १ दब जाना । मद पड जाना। २ किंकर्तव्य विमूढ होना । स्तव्य हो जाना । ३. सकुचाना । सितवर-संशा पुं० [अ० मेप्टेबर] अग्रेजी नवां महीना अक्तूबर से उ०-पहले तो पचजी बहुत सिट पिटाए, किंतु सबो का बहुत पहले और अगस्त के पीछे का महीना। कुछ आग्रह देख सभापति की कुर्सी पर जा डटे ।-बालमुकुद सित'-वि० [सं०] १ श्वेत । सफेद । उजना । शुक्ल । उ०-ग्रमण (शब्द०)। असित सित वपु उनहार। करत जगत मे तुम अवतार । -सूर (शब्द०)। २ उज्ज्वल । शुभ्र । दीप्न। चमकोला । सिटी'-सज्ञा स्त्री० [हिं० सीटना] दे० 'सिट्टी' । ३ स्वच्छ । साफ। निमल । ४ अाबद्ध । वद्ध । बंधा हुआ मुहा० -सिटी विटी भूलना = दे० 'सिट्टीपिट्टी भूलना' । (को०)। ५ घिरा हुअा । परिवेष्टित (को०)। ६, जाना हुआ। उ०-हुश्न का रोव ऐमा छाया कि सब सिटी विटी भूल निश्चित । ज्ञात (को०)। ७ पूर्ण। समाप्त (को०)। ८ किसी गई।—फिसाना०, भा० ३, पृ० २६२ । से सयुक्त । युक्त (को०)। सिटी-सज्ञा स्त्री० [अ०] नगर । शहर । सित-सशा पु० १ शुक्र गह। २ शुक्राचाय । ३ शुक्ल पक्ष । यौ०-सिटी वम = नगर मे चलनेवानी राजकीय बस । सिटी उजाला पाख। ४ चीनी। शक्कर । ५ सफेद कचनार। ६ वस सर्विस = राजकीय नगर परिवहन सेवा । स्कद के एक अनुचर का नाम। ७ मूली । मलक । ८ चदन । सिट्टी--तशा स्त्री० [हिं० सीटना] वहुत बढवढ कर बोलना । वाक् ६ भोजपन्न । १० सफेद तिल । ११ चांदी। १२. श्वेत वर्ण। सफेद रग (को०)। १३ तीर । वाण (को॰) । पटुता।