सितारा सितुही सितारा--सशा पुं० [हिं० सितार] दे० 'सितार' । उ०--जलतरन कानून अमृत कुडली सुवीना। मारगी र रवाव सितारा महुवर कीना।--सूदन (शब्द०)। सिताराचश्म---वि० [फा०] सितारे जैसे नेनोवाला [को०] । सिताराजवीं-वि० [फा०] दे० 'सितारापेशानी' । सितारादाँ-सशा पु० [फा०] नक्षत्रो का जानकार । ज्योतिपी। सितारापरस्त-वि० [फा०] तारो का उपासक किो०) । सितारापेशानो--वि० [फा०] । घोडा) जिसके माथे पर अँगूठे के छिप जाने योग्य सफेद टीका या विंदी हो (ऐमा घोरा बहुत ऐवी समझा जाता है)। सिताराबी-वि० [फा०] ज्योतिपी। नजूमी [को०] । सितारावीनी-सशा सी० [फा०] ग्रहो के द्वारा फलापन का ज्ञान । ज्योतिप विद्या को०)। सिताराशनाम-वि० [फा०] ज्योति पी [को०] । सिताराशनासी-नज्ञा पी० [फा०] ज्योतिप विद्या (को०) । सितारिया-मज्ञा पु० [फा० सितार + हिग्या (प्रत्य॰)] मिनार वजानेवाला। सितारी'-सज्ञा स्त्री॰ [फा० मितार] छोटा मिनार । छोटा नवूग सितारी-वि० [हिं० मितार] मितार बजानेवाला । मितारिया । उ०--कहाँ है रबाबी मृदगी सितारी। कहाँ है गवैये कहां नृत्यकारी। भारतेदु र०, भा॰ २, पृ० ७०५ । सितारेहिंद--सञ्ज्ञा पु० [फा०] एक प्रकार की उपाधि जो स कार की ओर से पम्मानार्थ दी जाती है। उ०-गजा शिवप्रसाद सितारे हिंद थे। -प्रेमघन०, मा० २, पृ० ४१२ । विशेष-यह शब्द वास्तव में अंग्रेजी वाक्य 'स्टार ग्राफ इडिया' का अनुवाद है। सितार्कक--सग पु० [स०] दे० मितालक [को०] । सितार्जक-सा पुं० [म०] श्वेत तुलसी । सितालक, मितालक-संज्ञा पुं० [सं०] श्वन अर्क । सफेद मदार । सितालता--सज्ञा सी" [म०] १ अमृतवल्ली। अमृतन्त्रवा। २ 1 घेरे के गोन पीने फूल लगते है। उसके पानी पी नोक पर वैगनी र ग पा लगा गूत मा निरुता होता है। फनो रे भीतर तिकोने कत्थई रंग के बीज होो है। यही वीज विशेषत' औपध के काम में पाते और मितान' नाम मे पिात है। ये बहुत करवे और गधयुक्त होते है। इस पौधे की जा और पत्तियां भी दवा के काम मे पाती है। द्यर में गिर गरम, कटवी, दम्नावर तथा वात, कफ को नाश करनेवाली, रवि- को शुद्ध करनेवाली, बन, वीर्य और दूध को बचानवानी तथा पित्त के रोगों में लाभवारीपही गई। सितारभेद-सरा सी० [देश॰] एक पौधा जिनके मन अग प्रीपघ के काम में पाते हैं। विशेप-इसकी पत्तियां लवी, गठीली और पटावदार होती है और उनमे से तेल की सी कटु गध पाती है। फूल पीलापन लिए होते है । फलो मे चार बीजपोश होते है जिनमे से प्रत्येक मे या ८ बीज होते है। सितावर--नशा पुं० [०] मिग्यिारी । मुनिष्णरु शाक । मुगना कामाग। सितावरो-मग मी० [सं०] रूची । नोमगजी। सिताश्व- पु० [म०] १ अर्जुन का एक नाम । २ चद्रमा । सितासित-सा पुं० [मं०] १ श्वेन और श्याम । नर और पाला। उ०-कुच ते श्रम जलधार चनि मिलि रोमावलि रा। मनो मेर की तरहट्टी भयो गितानित मग । मतिराम (णन्द०)। २ बलदेव । ३ शुत्र के माहित गनि । ४ जमना ये सहित गगा। सितामितनीर-न पुं० [०] श्वेत प्री- नीला या श्याम वरण का जन । गगा यमुना का सगम । त्रिवेणी । उ०मारिधि मितामित नीर नहाने ।-मानस, २०२०३ । मितासितरोग-ना पुं० [मं०] पाय त एक रोग। सितामिता-मसा पी० [सं०] १ बानी। मोमगजी। २ गगा और यमुना । यमुना और गगा। मिताह्वय-मा पुं० [सं०] १ शुक्र ग्रह। २ श्वेत रोहित वृक्ष । ३ सफेद फूला का महिंजन । ४ मफेद या हरे डठल की तुलसी। मिति'--110 [20] दे० 'शिति' । सिति'-साम्पी० १ श्वत ग श्याम वर्ण । २ बधन । बांधना सिो० । सितिकठ-मज्ञा पुं० [म०] नीलकठ । शिव । महादेव । सितिमा-सश सी० [सं०] श्वेतता । सफेदी। सितिवार, सितिवारक--सरा पुं० [सं० गितिवार] १ शिरियारी शाक । सुसना का साग । २ कुडा । कुटज वृक्ष । कोरया । सितित्रास-मशा पुं० [सं० मितिवासस्] (नीले वस्त्रवाले) बलराम । सितिसारक-सज्ञा पु० [मं०] शाति शाक । शालिंच शाक । सितुई -संज्ञा सी० [म० शुक्नि] ताल की सोपी । सुतही । मितुही । सितुही -संज्ञा स्त्री० [सं० शुक्तिका] ताल की सीपी। सुतुही । सफेद दूब । । सितालि-वि० [न०] श्वेत रेखानो या पक्तियोवाला। सितालिकटभी-सज्ञा स्त्री० [स०] किहिणी वृक्ष । सफेद कटभी। सितालिका--सशा जी० [स०] ताल की सीपी। जलमीप । शुक्ति । सितुही। सिताव-सज्ञा स्त्री॰ [देश॰] बरसात में उगनेवाला एक पोधा जो दवा के काम आता है। मपदप्ट्रा । पीतपुप्पा । विपापहा । दूर्वपना। त्रिकोणवीजा। विणेष--यह पौधा हाथ डेढ हाय ऊँचा और झाडदार होता है। इसकी पत्तियां दूद से मिलती जुलती होती हैं। इसके डठन भी हरे रग के होते है। इसका मूसला कत्थई रंग का और बहुत बारीक रेशो से युक्त होता है। इसमे अगुल डेढ़ अगुल
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