पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/३०३

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1 सिनट ६०२३ सिपाव सयो० कि० - देना। सिनो-सज्ञा पुं० [देश॰] खेत की पहली जोनाई। सिनट-मा पु० [अ० सेनेट] १ शासन का समस्त अधिकार रखने सिन्न-मज्ञा पुं० [अ०] दे० 'सिन" । वाली ममा। २ विश्वविद्यालय का प्रवध करनेवाली सभा । सिन्नी - सज्ञा सी० [फा० शीरीनी] १ मिठाई । बताशे या सिना--मज्ञा स्त्री॰ [फा०] दे० 'मिनान' [को०] । मिठाई जो विमी खुशी में बांटी जाय। ३ वताणे या मिठाई यी०-सिनाकश = तीरदाज । धनुर्धर । जो किसी पीर या देवता को चढाकर प्रमाद की तरह बांटी जाय। सिनान-सज्ञा स्त्री० [फा० सिना] १ वाण की नोक । अनी । २, वरछा । भाला। ३ बरछी की नोक (को०] । क्रि० प्र०--चढाना ।-बाँटना ।-मानना । सिनिवाली - सज्ञा स्त्री० [स० मिनीवाली] एक नदी। दे० 'मिनी- सिपर---नज्ञा स्त्री० [फा०] वार रोकने का हथियार । ढाल । उ०-- वाली'--५।उ०-मिनिवाली, रजनी, कुहू, मदा, राका, जानु। नूल झूल, लाल तूल लाल तल तूल नौल दील, तूल नील सैल सरस्वती अरु जनुमती सातो नदी बखानु । -केशव (शब्द०) । माथ पै सिपर है।-गिरधर (शब्द०)। सिनी-सञ्ज्ञा पु० [स० शिनि] १ एक यादव का नाम जो सात्यकि का मुहा०-सिपर डालना, सिपर फेकना = लडाई मे हथियार डाल पिता था । उ०-सिनि स्यदन चढि चलेउ लाइ चदन जदु- देना । पराजय स्वीकार कर लेना । सिपर मुंह पर लेना, सिपर नदन । -गोपाल (शब्द॰) । २ क्षत्रियो की एक प्राचीन लेना = ग्राघात मे बचाव के लिये ढाल को पागे करना। शाखा। यौ०-सिपर अदाजी = हार मान लेना। सिनी-सज्ञा पु० [म. शिनि] एक यादव वीर। विशेप दे० सिपरा-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [म० सिप्रा] दे० 'मिप्रा'। 'शिनि'-३। उ०-चलेउ सिनीपति विदित धीर धरनीपति अति मति । गोपाल (शब्द०)। सिपह--सज्ञा पुं० [फा०] 'सिपाह' का लघु रूप । मेना । फौज [को०] । यो०--सिपहगरी, सिपहदार = सेनानायक । मेनापति । सिपहबद, यी०-सिनीपति = क्षत्रियो की एक प्राचीन शाखा का प्रधान । सिपहवुद = मिपहसालार। विशेष दे० 'शिनि'-३। सिनी-सज्ञा स्त्री० [स०] १ 'सिनीवाली'। २. गौर वर्ण की सिपहगरी-सज्ञा स्त्री० [फा०] सिपाही का काम । युद्ध व्यवसाय । स्त्री (को०)। सिपहसालार-सज्ञा पु० [फा०] फौज का सबसे बडा अफसर। सेनापति । सेनानायक । सिनीत-मज्ञा स्त्री॰ [देश॰] सात रस्सियो को वटकर बनाई गई चिपटी रस्सी । (लश्करी)। सिपहसालारी--सज्ञा स्त्री॰ [फा०] सेनापतित्व। सिपहसालार का कार्य सिनीवाली-सशा सी० [स०] १ एक वैदिक देवी, मनो मे जिसका [को॰] । अाह्वान मरस्वती ग्रादि के साथ मिलता है । सिपाई:-सज्ञा पु० [फा० मिपाही] दे० 'सिपाही'। उ०--कह्यो विशेष--ऋग्वेद मे यह चौडी कटिवाली, सुदर भुजाओ और सिपाई अहिं चोराई। इत भागि अब कह सिर नाई। उँगलियोवाली कही गई हे और गर्भप्रसव की अधिष्ठात्री देवी -रघुराज (शब्द०)। मानी गई है। प्रथर्ववेद मे मिनीवाली को विष्ण की पत्नी सिपारसई-मज्ञा स्त्री॰ [फा० मिफारिश] दे० 'सिफारिश' । कहा है । पीछे की श्रुतियो मे जिस प्रकार राका शुक्ल पक्ष की इतिय सिपारम प्रामु किय, देव करण लघु माय । सुनत भूप द्वितीया की अधिष्ठात्री देवी कही गई है, उसी प्रकार सिनी- परिमाल कहि, विम्वा लेहु बुलाय । -T० रामो, पृ० ३० । वाली शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा की, जव कि नया चद्रमा प्रत्यक्ष सिपारसी ---वि० [फा० सिफारिशी] दे० 'मिफारगी'। उ०- निकला नहीं दिखाई देता, देवी बताई गई है। सिपारमी डरपुकने सिट्ट, बोले वात अफामी।-भारतदु ग्र०, २ शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा। ३ अगिरा की एक पुत्री का नाम भा० १, पृ० ३३३ । 9 दुर्गा । ५ मार्कंडेय पुराण में वर्णित एक नदी का नाम । सिपारह-सशा पु० [फा० सिपारह.] दे० 'सिपारा' । उ०-नम निज सिनेट-मज्ञा स्त्री० [अ० सेनेट] दे० 'मिनट' । साइय पच वपत्त । सिपारह तीस पढे दिन रत्त।-पृ० सिनेमा-सधा पु० [अ०] १, वह मकान जहाँ वायस्कोप दिखाया रा०,881 जाता है। २ छाया चिन्न । चल चित्र । सिपारा-सा पु० [फा० मिपारह,] मुसलमानो ये धर्मगथ दुगन के यौं०-सिनेमाघर, सिनेमा हाउस = वह स्थान जहाँ सिनेमा तीस भागो मे मे कोई एक । दिखाया जाय । सिनेरियोमा सो० [अ०] पटकथा। निसी कहानी का नाट्य विशेष-कुरान तीम भागो में विभक्त किया गया है जिनमें से रूप। उ०--कीन सिनेरियो लिखता और किसे डायलॉग का प्रत्येक सिपारा कहलाता है। ठेका मिलता । -तारिका, १०२४ । सिपारी-सशा सी० [फा०] मुपागे। डली । छानिया [को०] । सिनेह+-स पुं० [सं० स्नेह] दे० 'स्नेह' । उ० -(क) खत सिपाव-सरा पुं० [फा० सेहपाव] लकडी की एक प्रकार की टिकठी कुमेटा मन बुझल सिनेह । -विद्यापति, पृ० ५६३ । (ख) या तीन पायो का टांचा जो छवडे ग्रादि मे पागे को और अटान सिनेह और ममता का भूषा ।-नई०, पृ०८१ । के लिये दिया जाता है।