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पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/३०९

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सिर ६०२६ सिरखिली ४७ । सिर पर हाथ फेरना = प्यार करना। आश्वासन देना। २ ऊपर की ओर । सिरा। चोटी । ३ किनारा । ४ किसी वस्तु ढारस बंधाना। उ०--वेत रह फेर मे पडे हम है, फेरते हाथ का ऊपरी भाग ४. सरदार। प्रधान । जैसे, सिर से क्यो नही सिर पर ।---चुभते०, पृ०४। सिर फिरना = (१) सिरवाहा । ५ दिमाग । अक्ल । ६ शुरुयात । प्रारभ । सिर घूमना । सिर चकराना। (२) पागल हो जाना। सिर--सज्ञा पुं० [म० शिर] पिपरामूल । पिपलीमूल । उन्माद होना। (३) बुद्धि नष्ट होना। सिर फोडना = (१) सिर-सज्ञा पु० [अ० सिर] रहस्य । मर्म । भेद । राज किो०] । लडाई झगडा करना । (२) कपाल क्रिया करना । सिर फेरना: सिरई--सज्ञा स्त्री० [हिं० सिर + ई (प्रत्य॰)] चारपाई मे सिरहाने कहा न मानना । अवज्ञा करना। अस्वीकार करना। सिर की पट्टी। बाँधना = (१) सिर पर आक्रमण करना। (पटेवाजी) । सिरकटा--वि० [हिं० सिर- कटना] [वि० स्त्री० सिरकटी] १ जिसका (२) चोटी करना। सिर गूंथना। (३) घोडे की लगाम इस सिर कट गया हो । जैसे,--सिरकटी लाश । २ दूसरो के सिर प्रकार पक्डना कि चलते समय घोडे की गर्दन सीधी रहे । काटनेवाला। अनिष्ट करनेवाला। बुराई करनेवाला । सिर बेचना= सिर देना। फौज की नौकरी करना। सिर अपकारी। भारी होना = सिर मे पीडा होना। सिर घूमना। सिर सिरका-सज्ञा पुं० [फा० सिरकह] धूप मे पकाकर खट्टा किया हुआ मारना = (१) समझाते समझाते हैगन होना। (२) सोचने विचारने मे हैरान हाना। सिर खपाना। (३) चिल्लाना। ईख, अगूर, जामुन, आदि का रस । उ०—(क) भई मिथौरी सिरका बरा । सोठ लाय के खरसा धरा ।—जायसी (शब्द०)। पुकारना। (४) वहुत प्रयत्न करना । अत्यत श्रम करना । (ख, हे रे कलाली ते क्या किया। सिरका सातै प्याला दिया। सिर मुंडाना = (१) वाल बनवाना। (२) जोगी बनना । --सतवारणी०, पृ० ३३ । फकीरी लेना। सन्यासी होना। सिर मुंडाते ही ओले पडना= प्रारभ मे ही कार्य विगडना। कार्यारम होते ही विघ्न विशेप-ईख, अगूर, खजूर, जामुन आदि के रस को धूप मे पकाकर सिरका बनाया जाता है। यह स्वाद मे अत्यत खट्टा होता है। पडना । सिर मढना= जिम्मे करना। इच्छा के विरुद्ध सपुर्द वैद्यक मे यह तीक्ष्ण, गरम, रुचिकारी, पाचक, हलका, रूखा, करना । सिर रंगना- सिर फोडना । सिर लोहू लोहान करना। सिर रहना = (१) किसी के पीछ पडना । (२) रात दिन दस्तावर, रक्तपित्तकारक तथा कफ, कृमि और पाडु रोग का नाश करनेवाला कहा गया है। यूनानी मतानुसार यह कुछ परिश्रम करना। सिर सफेद होना= वृद्धावस्था पा जाना । गरमी लिए ठढा ओर रुक्ष, स्निग्धताशोधक, नसो और छिद्रो सिर पर सेहरा होना = किती कार्य का श्रेय प्राप्त हाना । मे शीघ्र ही प्रवेश करनेवाला, गाढे दोषो को छांटनेवाला, वाहवाही मिलना। सिर सहलाना = खुशामद करना। प्यार पाचक, अत्यत क्षुधाकारक तया रोध का उद्घाटक है। यह करना। सिर से बला टालना = वेगार टालना। जी लगाकर वहुत से रोगो के लिये परम उपयोगी है । काम न करना। सिर से बोझ उतरना = (१) झझट दूर सिरकाश--सञ्चा पु० [फा०] अरक खीचने का एक प्रकार का यत्र । होना। (२) निश्चितता होना। सिर से पानो गुजरना: सहने की पराकाष्ठा होना । अमह्य हो जाना। सिर घुटाना या सिरकाफरोश--वि० [फा० सिरकह, फरोश] १ सिरका बेचनेवाला। घोटाना = सिर मुडाना। मिर से पैर तक = प्रारभ से अत जो सिरका बेचता हो। २. रूखी बाते करनेवाला । बेमुरव्वत तक । चोटी से एडी तक । सर्वाग मे। पूर्णतया। सिर से (को०)। पर तक आग लगना = अत्यत क्रोध होना। आग बबूला होना। सिरकी--सज्ञा सी० [हिं० सरकडा] १ सरकडा। सरई। सरहरी । सिर से चनना = बहुत समान करना । सिर के बल चलना । २ सरकडे या सरई की पतली तीलियो की बनी हुई टट्टी जो सिर से सिरवाहा है = मिर के साथ पगडी है। अर्थात् सरदार प्राय दीवार या गाडियो पर धूप और वर्षा से बचाव के लिये के साथ फौज अवश्य रहेगी। मालिक के साथ उसके आश्रित डालते है। उ०----विदित न सनमुख है सके अँखिया बडी अवश्य रहेगे। सिर से कफन बांधना = मरने के लिये उद्यत लजोर । बरुनी सिरफिन प्रोट हेरत गोहन ओर ।-रसनिधि होना । सिर से खेलना- सिर पर भूत पाना। सिर से खेल (शब्द०)। ३ बाँस की पतली नली जिसमे बल बूटे काढने जाना = प्राण दे देना। सिर पर सीग होना = कोई विशेपता का कलावत्तू भरा रहता है। होना। खसूसियत होना । सुरखाव का पर होना। सिर का सिरखप'--वि० [हिं० सिर + खपना] १ सिर खपानेवाला। २ पसीना पैर तक पाना = बहुत परिथम होना । सिर हथेली परिश्रमी। ३ निश्चय का पक्का । पर लेना = मृत्यु के लिये हरदम तैयार रहना (किसी का किसी सिरखप-सञ्ज्ञा सी० दे० "सिरखपी' । उ०-~जो तुमको यही समझ के) सिर होना । (१) पीछे पडना। पीछा न छोडना। साथ साथ होती, तो मुझको इतनी सिरखप क्यो करनी पडती।- लगा रहना। (२) वार वार किसी बात का आग्रह करके तग ठेठ०, पृ०८। करना। (३) उलझ पडना । झगडा करना। (किसी वात के) सिरखपी-मचा स्त्री० [हिं० सिर + खपना] १ परिश्रम। हैरानी। सिर होना = ताड लेना। समझ लेना । (दोष आदि किसी के) २ जोखिम । साहसपूर्ण काय । सिर होना = जिम्मे होना। ऊपर पडना । जैसे,—यह अपराध सिरखिली-सच्चा स्त्री॰ [देश॰] एक प्रकार की चिडिया जिसका तुम्हारे सिर है। सपूर्ण शरीर मटमैला, पर चोच और पैर काले होते हैं।