सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/३२५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

सौधु सीधु-समा पु० [सं०] १ गुड या ईख के रम से बना मद्य । गुड की मुहा०--सीने से लगाना = छाती से लगाना । आलिंगन कर बनी हुई शराब । २ मद्य । पासव । मदिरा (को०) । ३ अमृत । २ स्तन । चूचुक (को०)। सुधा। (लाक्ष०)। मीना--सज्ञा पुं० [स० सीमिक] १ एक प्रकार का कीडा र सीधुगध'--सज्ञा पु० [स० सीधुगन्ध] मौलसिरी । बकुल । कपडो को काट डालता है। सीवाँ । सीधुप-वि० [स०] मदिरा पीनेवाला । मद्यप । शराबी। क्रि० प्र०--लगना। संधुपर्शी--सज्ञा स्त्री० [सं०] गभारी। काश्मरी वृक्ष । २ एक प्रकार का रेशम का कीडा । छोटा पाट । सीधुपान-सज्ञा पु० [म०] मदिरापान । सीनाचाक-वि० [फा० सीनह चावा विदीर्णहृदय । शोकाकुल सीधुपुष्प-सबा पु० [स०] १ कदव । कदम । २. मौलसिरी। सीनाजन-वि० [फा० सीनह जन] छाती पीटनेवाला । शोक या वकुल । मनानेवाला को०)। सीधुपु पी-सञ्ज्ञा स्त्री० [स०] धातकी । धव । धौ । सीनाजनी--सज्ञा स्त्री० [फा० सीनह जनी] छातीपीटना । सीधुरस--सज्ञा पु० [स०] आम का पेड । करना। सीधुराक्ष--सज्ञा पु० [स०] विजौरा नीबू । मातुलुग वृक्ष । सीनाजोर--वि० [फा० सीनह जोर] १ अत्याचारी। जालिम सीधुराक्षिक-सञ्ज्ञा पु० [स०] कसीस । विद्रोही । बागी। ३ उद्दड [को०) । सीधुवृक्ष - सज्ञा पु० [मं०] थूहर । स्नुही वृक्ष । सीनाजोरी--सञ्ज्ञा स्त्री॰ [फा० सीनह जोरी] १, अत्याचार । २ f सीधुज्ञ -सञ्ज्ञा पु० [स०] वकुल का पड। मौलसिरी। ३ उद्दडता। उ०--न कालिदास की चोरी है वलि सीनाजोरी है ।-प्रेमघन॰, भा० २, पृ० ४३३ । सोधे-क्रि० वि० [हिं० सोधा] १ सोध मे । बराबर सामने की ओर। सम्मुख । (२) विना कहा गुडे या रुक । जैसे-सोधे वही सीनातोड़--सञ्ज्ञा पु० [फा० सीनह, + हिं० तोडना] कुश्ती क पच। जाओ । ३ बिना और कहा हात हुए। जैसे-साध राजा साहब के पास जाकर कहा । ४ मुलायामयत स । नरमा स। विशेष-जब पहलवान अपने जोड की पीठ पर रहता है शिष्ट व्यवहार स । जस-वह साध रुपया न दग।। ५ एक हाथ से वह उसकी कमर पकडता है और दूसरे शिष्टता क साथ । शाति क साय । जेस-साध बठी। उसके सामने का हाथ पकड और खीचकर झटके से गिरात सीध्र-सचा पु० [स०] गुदा । मलद्वार । सीनापनाह-ज्ञा पुं० [फा०] जहाज के निचले खड मे लबाई सीन'-सज्ञा पु० [अ०] १ दृश्य । दृश्यपट । २ थियेटर के रगमच का दाना पार का किनारा । (लश०)। काइ परदा ।जसपर नाटक का काई दृश्य चिानत हा । ३. सीनाबद--मचा पुं० [फा०] १ गया। चोली। २ गरेवान का हि घटनामा क घाटत हान का जगह। घटनास्थला-पनाकर ३ वह घाडा जा अगल पैरा स लँगडाता हा । ग्र०, पृ० १८॥ सीनाबसीना'-- वि० [फा० सोनह वसानहJ१ छाती से यौ०-सान सानो रगमच का दृश्यानुरूप सजावट । मिलात हुए। २ मुकाबले में। सीना-सशा पु० [फा० सानह । द० 'साना' । उ०-दोऊ तरफ के सीनाबसीना'-[व० (मत्र प्राद) जा गुरु या वशपरपरा से क्र सुभट हाँकत जुटि गए रिपु सान सा ।-हिम्मत, पृ० २२ । हा का० । यौ०-सान साफ = दे० 'सानासाफ'। उ०--पान साफ मुख सीनावाह-सञ्ज्ञा पुं॰ [फा० सोनह, + हि० बाँह एक प्रकार की व नूर विराज । शाभा सुदर बहु विधि छाजें।-सत० दरिथ जिसम छाता १र थाप दत है। पृ० १३ । सीनाबाज--(वे० [फा० सानह बाज] १ खुलो छाती का । २ सीनरी--सच्चा बा [अ०] प्राकृतिक दृश्य । छातावाला (का०] । सीना--नि० स० [सं० सोवन] १ कपड, चमडे आदि के दो टुकडो सीनाताफ-वि० [फा० सानह साफ निश्चल । निष्कपट [को०) । का सूई कद्वारा तागा पराकर जाडना। टाका से मिलाना सीनासिपर--वि० [फा० सानहासपर डटकर मुकाबला करनेव या जाडना । टाका मारना । जस-पड साना, जूत साना । छाता तानकर लड़नवाला (का०]। उ.-टुकड़े टुकड़ जाई जुगत सा साक अग लिसटानी । कर सीनियर-व० [अ०] १ वडा। वयस्क। २ श्रेष्ठ । पद मे उ डारा मला पापन सा लाभ माह म साना। साच समझ आभमाना।-बार० श०, भा०पू०४। जस-सानियर मबर, सा(नवर पराक्षा। सयो क्रि०-डालना।-दना ।-लना। सीनी-शा बा[फा०] तश्तरी । थाला । यौ०--सोना पिरोना = सिलाई तथा बेलबूटे आदि का काम करना। सोप-सदा पुं० [स० शुक्ति, प्रा० सुत्त] १ कडे यावरण के : सीना'--सञ्ज्ञा पु० [फा० सोनह छातो । वक्षस्थल । बद रहनवाला शख, घाव आदि को जाति का एक जा यो०-सीनाजार । सीनाताड़। सोनाबद। जा छाट वालावा मार झोला से लेकर बड़े बड़े समुद्रो त