पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/३३२

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सुपलुंठ ६०५२ सुधार ज्वार । २ गुजरात में होनेवाली एक प्रकार की वनस्पति जो काल सो भाव । सत्नु अहै जो करिया कबहुँ सो चोर नाव ।- पशुओ के चारे के काम मे पाती है। (शब्द०)। सुपलुठ--सज्ञा पु० [म० सुम्पलुण्ठ] कर्पूरक । कपूर कचरी। सुअन-सज्ञा पुं० [स० सुत, प्रा० सुग्र] पात्मज। पुन । बेटा । सुबा--सज्ञा पुं॰ [देश०] १ इस्पज । २ दागी हुई तोप या बदूक की लडका । उ०-वहु दिन धौ कब ग्राइहै हहै सुग्रन विवाह । निज गरम नली को ठढा करने के लिये उमपर डाला हुआ गीना नयनन हम देखिहैं है विधि यहु उत्साह ।--स्वामी रामकृष्ण कपडा । पुचारा । (लश०) । ३ तोप की नली माफ करने का (शब्द०)। गज। (लश०) ४ लोहे का एक अौजार जिससे लोहार नोहे मे मुअनजा-मज्ञा पुं० दे० [मुवणं, हिं० गोना + फा० गर्द] दे० सूराख करते है। सोनजर्द' । उ०-कोई मुअनजदं ज्यो केसर । कोइमिगारहार सुवी-मज्ञा स्त्री॰ [देश॰] छेनी जिमसे लोहे मे छेद किया जाता है। नागेसर ।---जायमी (शब्द०) । सुप्रना--कि० अ० [सं० मवन (- प्रमव) अथवा हिं० उगना सुबुल--सज्ञा पु० [फा० सबुल] १ एक सुगधित घास । वालछड । २. गेहूँ या जी की बाल । ३ अलक । जुल्फ । ( = उत्पन्न होना) या हिं० मुग्रन] उत्पन्न होना। उगना । उदय होना । उ०--जसो सांचो ग्यान प्रकाशत पाप दोष सम सुबुला-शा पु० [अ० सुवुलह] १ गेहूँ की वाल । २ कन्या- सुग्रत । धर्म विराग ग्रादि मतगुन से तनमन के सुख मुग्रत |-- राशि [को०] । देवस्वामी (शब्द०)। सुभ'--सज्ञा पु० [स० शुम्भ] दे० 'शुभ' । सुथना-संशा पुं० [सं० शुक] दे० 'मुग्रटा' । सुभ'--सञ्ज्ञा पुं० [म० सुम्भ] दे॰ 'सुम' । सुअर--सज्ञा पुं० [सं० शूकर] । दे० 'भूगर' । सुभा--सञ्ज्ञा पुं॰ [देश॰] दे० 'सुवा' । सुअरदता-वि० [हिं० सुग्रर+दता( = दांतवाला)] मूअर के मे सुभी--सञ्ज्ञा स्त्री॰ [देश॰] लोहा छेदने का एक औजार जिसमे नोक दाँतोवाला। नहीं होती। सुअरदता-सशा पुं० एक प्रकार का हाथी जिसके दाँत पृथ्वी की सुसारी-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [देश॰] एक प्रकार का लबा काला कीडा जो अनाज ओर झुके रहते है । ऐमा हाथी ऐबी समझा जाता है। के लिये हानिकारक होता है। सुअर्गपताली-सशा पुं० [स० म्वर्ग + पातालिका] वह बैल जिनका सु'- उप० [स०] एक उपसर्ग जो सज्ञा के साथ लगकर विशेषण का एक सीग स्वर्ग की ओर दूसरा पाताल की ओर अर्थात् एक काम देता है । जिस शब्द के साथ यह उपसर्ग लगता है, उसमे (१) अच्छा, बढिया, भला, श्रेष्ठ, जैसे, सुगधित (२) सुदर अाकाश की ओर और दूसरा जमीन की ओर रहता है । मनोहर, जैसे, सुकेशी, सुमध्यमा, (३) खूब, सर्वथा, पूरी तरह, सुअवसर-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] अच्छा अवसर । अच्छा मौका । ठीक प्रकार से, जैसे, सुजीर्ण, (४) अासानी से, सुभीते से, मुत्रा-सज्ञा पुं० [सं० शुक] दे॰ 'सूपा'। तुरत, जैसे,--सुकर, सुलभ, (५) अत्यधिक, बहुत अधिक, सुग्राउ@---वि० [० सु + आयु] जिसकी आयु बडी हो । दीर्घायु । जैसे, सुदारुण सुदीर्घ आदि का भाव आ जाता है। जैसे- उ०-सुधन न सुमन सुग्राउ सो। -तुलसी (शब्द॰) । सुनाम, सुपथ, सुशील, सुवास आदि । सुप्राद-सज्ञा पुं० [हिं० अथवा सं० स्मरण या हिं० सु+ फा० याद] सु-वि० १ सु दर । अच्छा। २ उत्तम। श्रेष्ठ । समानयोग्य । स्मरण । याद। ३ शुभ । भला। सुप्राद--सञ्ज्ञा पुं० [सं० स्वाद] दे० 'स्वाद' । सु'--सशा पु० १ उत्कर्प । उन्नति । २ सुदरता । खूबसूरती । हर्प । सुमान-सना पुं० [सं० श्वन्] दे॰ 'श्वान'। उ०-सुप्रान पूछ अानद। प्रसन्नता । ४ पूजा । ५ समृद्धि । ६ अनुमति । जिउ भयो न सूधउ बहुत जतन मैं कोनेउ । -तेगवहा- याज्ञा । ७ कष्ट । तकलीफ । दुर (शब्द०)। सु'---प्रव्य० [सं० सह] तृतीया, पचमी और पष्ठी विभक्ति का चिह्न। सुआना --क्रि० स० [हिं० सूना का प्रेर० रूप] उत्पन्न कराना। पैदा सु:--सर्व० [स० स ] सो । वह । कराना। सूने मे प्रवृत्त करना । सुश्रग-वि० [सं० सुअडग] सुडौल शरीरवाला । सुगठित वदनवाला । सुआमी-सज्ञा पुं० [स० स्वामी] दे० 'स्वामी'। उ०--भुगत सुदर [को०)। मुकति का कारन सुआमी मूढ ताहि विसरावं। जन नानक सुअल-सज्ञा पु० [म० सुत, प्रा० सुअ] दे॰ 'सुमन' । कोटन मैं कोऊ भजन राम को पावै।-तेगबहादुर (शब्द०)। सुअक्ष -वि० [सं०] १ अच्छे सुदर नेनोवाला। २ दृढाग । पुष्ट सुपार--सञ्ज्ञा पुं॰ [स० सूपकार] रसोइया । भोजन बनानेवाला । अगोवाला (को०] । पाककार । उ०--(क) परुसन लगे सुपार सुजाना ।-मानस सुश्रटा-सज्ञा पु० [म० शुक, प्रा० सुत्र, हिं० सूया + टा प्रत्य०] १,३२६ ।, (ख) परुसन लगे सुपार विबुध जन जेवहिं । देहिं सुग्गा । शुक । तोता। उ०-सुपटा रहे खुरुक जिउ अवहिं गारि बरनारि मोद मन भेवहिं।-तुलसी (शब्द॰) ।