पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/३३८

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सुख ६०५८ सुखचार होता, और हर्प की अपेक्षा अधिक स्थायी होता है । अनेक प्रकार सुखकंदन-वि० [स० सुख+ कन्दन] दे॰ 'मुखपद' । उ०--श्री की चिंताग्यो, कप्टो आदि से निरतर बचे रहने पर और अनेक वृपभानु सुता दुलही दिन जोरी वनी विधना सुखक्दन । रस- प्रकार की वासनायो आदि की तृप्ति होने पर मन मे जो प्रिय खानि न आवत मो पं कह्यो कछ दोउ फंदे छपि प्रेम के अनुभूति होती है, वह सुख है। हमारे यहाँ कुछ लोगो ने सुख कदन ।- रमखान (शब्द०)। को मन का और कुछ लोगो ने प्रात्मा का धर्म माना है । न्याय सुखकदर--वि० [स० सुख+कन्दग] सुख का घर। सुख का और वैशेपिक के अनुसार सुख प्रात्मा का एक गुण है। यह सुख आकर। उ०-सु दर नद महर के मदिर प्रगट्यो पूत मकल दो प्रकार का कहा गया है-(१) नित्य सुख जो परमात्मा के मुजकदर।-सूर (शब्द०)। विशेष सुख के अतर्गत है और (२) जन्य सुख जो जीवात्मा के विशेष सुख के अतर्गत है। यह घन या मित्र की प्राप्ति, सुखक - वि० [म० शुक, हिं० सूखा] सूखा। शुष्क । उ०- सुखक वृक्ष एक जक्त उपाया। समुझि न परी विषय कछु आरोग्य और भोग आदि से उत्पन्न होता है। सात्य और माया।--कवीर (शब्द॰) । पातजल के मत से मुख प्रकृति का धर्म है और इसकी उत्पत्ति सत्य से होती है । गीता मे सुख तीन प्रकार का कहा गया है- सुखकर-वि० [सं०] १ सुख देनेवाला। मुखद। २ जो महज मैं (१) सात्विक जो ज्ञान, वैराग्य और ध्यान आदि के द्वारा प्राप्त सुख से किया जाय । सुकर। ३ सुखद या हलके हाथवाला। होता है। (२) राजमिक जो विपय तथा इद्रियो के सयोग से उ०—परम निपुण सुखकर वर नापित लीन्ह्यो तुरत मुलाई । उत्पन्न होता है । (जैसे सगीत सुनने, सुदर स्प देखने, स्वादिष्ट क्रम सो चारि कुमारन को नृप दिय मुडन करवाई।-रघु- भोजन करने और सभोग आदि से होता है।) और (३) तामस राज (शब्द॰) । जो आलस्य और उन्माद आदि के कारण उत्पन्न होता है। सुखकरए-वि० [म० सुख+ करण] सुख उत्पन्न करनेवाला । आनद पर्या–प्रीति । मोद । आमोद | प्रमोद । आनद । हर्ष । सौत्य । देनेवाला । उ०--सब सुखकरण हरण दुख भारी। जपं जाहि क्रि० प्र०-देना ।--पाना ।-भोगना ।-मिलना। शिव शैलकुमारी।-विश्राम (शब्द०)। मुहा०--सुख मानना = परिस्थिति आदि की अनुकूलता के कारण सुखकरन-वि० [सं० सुख + करण] दे॰ 'सुखकरण' । उ०--सुख- करन सव ते परम करवर वेनु वरकर धरत हैं । सुर मधुर तान ठीक अवस्था मे रहना । जैसे,--यह पेड सभी प्रकार की जमीनो मे सुख मानता है । सुख लूटना = यथेप्ट सुख का भोग करना। बधान तें प्रभु मनहूँ को मन हरत है ।-गिरधरदास मौज करना। आनद करना। सुख की नीद सोना = निश्चित (शब्द०)। होकर पानद से सोना या रहना। खूब मजे मे समय बिताना। सुखकार, सुखकारक-वि० [सं०] सुखदायक। सुख देनेवाला। २ एक प्रकार का वृत्त जिसके प्रत्येक चरण मे ८ सगरण और यानददायक। २ लघु होते हैं । ३ प्रारोग्य । तदुरुस्ती। ४ स्वर्ग। ५ जल। सुखकारी-वि० [सं० सुखकारिन्] सुख देनेवाला । अानददायक । पानी। ६ वृद्धि नाम की अप्टवर्गीय अोपधि । ७ समृद्धि सुखकृत्-वि० [स०] १ जो सुख या पाराम से किया जाय । सुकर । (को०)। ८ आसानी। सुभीता। सहूलियत (को०)। ६. कल्याण । सहज । २ सुख करनेवाला । सुखद (को०)। शुभ । १० अभ्युन्नति । वृद्धि । वढती। सुखक्रिया-सना सी० [स०] १ सुख से किया जानेवाला काम। सुख-वि० [सं०] १ स्वाभाविक । सहज । उ०-जाके सुख मुखबाम सहज काम । २. वह काम जिमे करने से सुख हो। पाराम ते वासित होत दिगत ।-केशव (शब्द॰) । २ सुख देनेवाला। देनेवाला काम। ३ पाराम या सुख देना। सुखद । ३ प्रमन्न । खुश (को०) । ४ रुचिकर । मधुर (को०)। सुखगध--वि० [स० सुखगन्ध] जिसकी गध प्रानद देनेवाली हो। ५ सद्गुणी । पुण्यात्मा (को०)। ६ योग्य । उपयुक्त (को॰) । सुगधित । सुख'--क्रि० वि० १ स्वाभाविक रीति से । साधारण रीति से। उ०- सुखग-वि॰ [म०] सुख से जानेवाला। आराम से चलने या गमन कहुँ द्विज गण मिलि सुख श्रुति पटही। केशव (शब्द०)। करनेवाला। २ शातिपूर्वक । यथेच्छया । सुखपूर्वक । पाराम से। ३ सुखगम---वि० [म०] १ सरल। सुगम । सहज । २ दे० 'मुखगम्य' । प्रमन्नता या हर्प के साथ (को०)। ४ सरलता से। अासानी से (को०)। सुखगम्य--वि० [सं०] सुख से जाने योग्य । आराम से जाने योग्य । २ जिसमे सुखपूर्वक गमन किया जा सके। सुखासन--मज्ञा पु० [सं० सुख + आमन] सुखपाल । पालकी। डोली। उ० --चढि सुखासन नृपति सिधायो। तहाँ कहार सुखग्राह्य-वि० [स०] १. सुख से ग्रहण करने योग्य । जो सहज मे एक दुख पायो।--मूर (शब्द०)। लिया जा सके। २ सुखबोध्य । सुवोध । सुखकद-वि० [स० सुख+ कन्द] सुखमूल । सुख देनेवाला । आनद सुखघात्य-वि० [स०] जिसका घात या हनन सरलता से किया देनेवाला । उ०--अहो पविन प्रभाव यह रुप नयन सुखकद । जा सके। रामायन रचि मुनि दियो वानिहिं परम अनद ।--सीताराम सुखचर-वि० [स०] सुख से चलनेवाला । आराम से चलनेवाला । (शब्द०)। सुखचार-सञ्ज्ञा पुं॰ [स०] उत्तम घोडा । वढ़िया घोडा।