पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/३४४

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सुख्ख ६०६४ सुगघवाला सुख्खा--सञ्ज्ञा पुं० [स० सुख दे० 'सुख' । सरल का गोद, राल, कुदुरु, शिलारस, लोबान, लौंग, जावित्री, सुख्य-वि० [स०] १ सुखकर । सुखद । सुखदायक । २ सुख सवधी । जायफल, छोटी इलायची, बडी इलायची, दालचीनी, तेजपन, सुख का [को०)। नागकेसर, सुगधवाला, खस, वालछड, केसर, गोरोचन, नख, सुख्यात-वि० [म०] प्रसिद्ध । मशहूर । यशस्वी। सुगध, वीरन, नेत्रवाला, जटामांसी, नागरमोथा, मुलेठी, आवा हलदी, कचूर, कपूरकचरी आदि सुगधित पदार्थ कहे गए है। सुख्याति--सआ स्त्री० [म०] प्रसिद्धि । शोहरत । कीर्ति । यश । बडाई। सुगधचद्री--सज्ञा स्त्री॰ [सं० सुगन्धचन्द्री] गधेज घाम। गधारण । सुगध-सज्ञा पुं० [स० सुगन्ध] १ अच्छी और प्रिय महक । सुवास। गधपलाशी । कपूर कचरी। सौरभ । खुशबू । विशेष के 'गध' । सुगधतृए-सज्ञा पुं॰ [स० सुगन्धतृण] गधतृण । स्सा घास। क्रि० प्र०-आना।-उडना ।-निकलना।--फैलना। विशेष-यह शब्द मस्कृत मे पुलिंग है पर हिंदी मे इस अर्थ मे सुगवतैलनिर्याम-सञ्ज्ञा पुं० [स० सुगन्धतैल निर्यास] एक गधद्रव्य । जवादि (को०] । स्त्रीलिंग ही बोलते हैं। सुगवनय-सज्ञा पु० [म० सुगन्धत्रय] चदन, बला और नागकेसर इन २ वह पदार्थ जिससे अच्छी महक निकलती हो। तीनो का समूह । क्रि०प्र०-मलना ।—लगाना । सुगपत्रिफला - सज्ञा स्त्री० [सं० सुगन्धत्रिफला] जायफल, लीग और ३ गधतृण । गधेज घास । रसघास । अगिया घास । ४ श्रीखड। इलायची अथवा जायफल, सुपारी तथा लोग इन तीनो का चदन । ६ गधराज । ७ नीला कमल । ८ राल । धूना। ६ समूह। काला जीरा । १० गठला । ग्रथिपर्ण । गठिवन। ११ एलुगा । सुगवन---सशा पु० [स० सुगन्धन] जीरा। एलवालुक । १२ बृहद् गधनृण । १३ भतण । १४ चना । १५ भूपलाश । १६ लाल सहिजन। रक्तशिग्रु । १७ शालिधान्य । सुगधनाकुली-सज्ञा स्त्री॰ [स० सुगन्धनाकुली] एक प्रकार की रासना । वासमती चावल । १८ मरूपा। मरुवक । १६ माधवीलता। सुगधपत्रा-संज्ञा स्त्री० [स० सुगन्धपना] १ सतावर । शतावरी। २० कमेरू । २१ सफेद ज्वार । २२ शिलारस । २३ तु वुरू । शतमूली । २ कठजामुन । क्षुद्गजबू। ३ वनभटा। कटाई । २४ केवडा । श्वेतकेतकी । २५ रूसा घास जिससे तेल निकलता बृहती। ४ छोटी धमासा । क्षुद्र दुरालभा। ५ अपराजिता। है। २६ एक प्रकार का कीडा। २७ गधक (को०)। २८ ६ लाल अपराजिता। रक्तापराजिता । ७ जीरा। बरियारा। व्यापारी (को०)। २६ एक पर्वत का नाम (को०)। ३० ६ विधारा। वृद्धदार । १० रुद्रजटा । रुद्रलता। एक तीर्थ (को०)। सुगध-वि० सुगधित । सुवासित । महकदार । खुशबूदार। उ०—(क) सुगंधपत्री-सज्ञा स्त्री० [सं० सुगन्धपत्री] १ जावित्री । २ रुद्रजटा । शीतल मद सुगध समीर से मन की कली मानो फूल सी खिल सुगवप्रियगृ-मज्ञा स्त्री० [स० सुगन्धप्रियङगु] फलफेन । फूल प्रियगु । जाती थी ।-शिवप्रसाद (शब्द०) । (ख) अजलिगत शुभ गधप्रियगु । सुमन, जिमि सम सुगध कर दोउ ।--मानस, ११३ । विशेष-वैद्यक मे इसे कसैला, कटु, शीतल और वीर्यजनक तथा सुगधक-सज्ञा पुं० [म. सुगन्धक] १ द्रोणपुप्पी। गूमा। गोमा। २ वमन, दाह, रक्तविकार, ज्वर, प्रमेह, मेद, रोग आदि को नाश २ रक्तशालिधान्य । साठी धान्य । ३ धरणी कद । कदालु । करनेवाला बताया है। ४ गधतुलसी। रक्त तुलसी। ५ गवक । ६ वृहद्गधतृण । सुगधन--सज्ञा पुं० [स०सुगन्धफल] ककोल । कक्कोल । ७ नारगी। ८ अलावु । कटुतुबी (को०)। ६ कर्कोटक । ककोडा। सुगंधवाला-सज्ञा स्त्री० [स० सुगन्ध + हिं० वाला] क्षुप जाति की सुगधकेसर-सज्ञा पु० [म० सुगन्धकेसर] लाल सहिजन । रक्तशिग्रु। एक प्रकार की वनौपधि । सुगधकोकिला--सज्ञा स्त्री॰ [सं० सुगन्ध कोकिला] एक प्रकार का विशेष-यह पश्चिमोत्तर प्रदेश, सिंध, पश्चिमी प्रायद्वीप, लका गधद्रव्य । गधकोकिला। आदि मे अधिकता से होती है। सुगधि के लिये लोग इसे बगीचो विशेष--भावप्रकाश मे इसका गुण गधमालती के समान अर्थात् मे भी लगाते है। इसका पीधा सीधा, गांठ और रोएँदार होता तीक्ष्ण, उष्ण और कफनाशक बताया गया है। है तथा पत्ते ककही के पत्तो के समान २-३ इच के घेरे मे गोलाकार, कटे किनारेवाले तथा ३ से ५ नोकवाले होते हैं । पत्र- सुगधगवक--सक्ष पु० [म० सुगन्धगन्धक गधक । दड लवा होता हैं और शाखाप्रो के अत मे लवे सीको पर गुलाबी सुगधगधा-संज्ञा स्त्री॰ [स० सुगन्धगन्धा दाम हलदी। दारुहरिद्रा। रग के फूल होते हैं। बीजकोप कुछ लवाई लिए गोलाकार सुगधगए--सज्ञा पु० [स० सुगन्धगण] सुगधित द्रव्यो का एक गरण होता है। वैद्यक मे इसका गुण शीतल, स्खा, हलका, दीपक ग वर्ग। तथा केशो को सु दर करनेवाला और कफ पित्त, हुल्लास, ज्वर, विशेष-सुगधगण वर्ग मे कपूर, कस्तूरी, लता कस्तूरी, गधमार्जा अतिसार, रक्तस्राव, रक्तपित्त, रक्तविकार, खुजली और दाह रवीर्य, चोरक, श्रीखडचदन, पीलाचदन, शिलाजतु, लाल चदन, को नाश करनेवाला बताया गया है। अगर, काला अगर, देवदारु, पतग, सरल, तगर, पद्माक, गूगल, पर्या--दालक । वारिद । ह्रीवेर । कुतल । केश्य । वारितोय । बला। ईश्वरी।